( ब्यूरो ,न्यूज़ 1 हिन्दुस्तान )
देहरादून / हरिद्वार। अंकिता हत्याकांड में जेल में बंद तीनो अभियुक्तों में से मास्टर माइंड पुलकित आर्य पर ” पूत के पांव पलने में ” दिखने वाली कहावत चिरतार्थ होती दिख रही है। जी हाँ ,आपको थोड़ अजीब जरूर लगेगा पर यह कहावत सिलहाने उस पर सही और स्टिक बैठती है। आप भी जाने ले कैसे ?
अब अंकिता हत्याकांड के मुख्य आरोपी के तौर पर नाम उछलने पर उसकी डिग्री पर सवाल उठने लगे हैं। हालांकि प्रभारी कुलसचिव का कहना है कि वह पास जरूर हुआ है लेकिन उसे डिग्री अवॉर्ड नहीं की गई है।
आपको बता दे कि उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय ने फर्जी दस्तावेज, प्रवेश परीक्षा में नकल, हरिद्वार में मुकदमा और दो साल तक निष्कासन के बावजूद पुलकित आर्य को उसके पिता की पहुंच और राजनैतिक रसूक के चलते तय कोर्स अवधि में BAMS की डिग्री दे दी।
पुलकित आर्य ने वर्ष 2013 की यूएपीएमटी प्रवेश परीक्षा में टॉप किया था। उसे ऋषिकुल आयुर्वेद कॉलेज हरिद्वार में दाखिला मिला था। वर्ष 2014 में यूएपीएमटी में कई मुन्नाभाई पकड़े गए। पूछताछ में उन्होंने पहले भी दूसरे छात्रों की जगह शामिल होने की बात स्वीकारी। इस पर विवि ने 2012 से 2015 तक प्रवेश लेने वाले सभी छात्रों की जांच कराई।
कॉलेज ने जाँच कमिटी बनाई ,जिसके अध्यक्ष बनाये गए डॉ के के शर्मा। जाँच में कुल 52 छात्र ऐसे मिले जिन्होंने दूसरे छात्रों से परीक्षा दिलाकर यूएपीएमटी पास की थी। इनमें 2013-14 बैच के 29 और 2014-15 बैच के 23 छात्र थे। विवि ने इन सभी को निलंबित कर दिया। इस मामले में हरिद्वार कोतवाली में मुकदमा भी दर्ज हुआ। निलंबन के खिलाफ छात्रों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। हाईकोर्ट ने उनका पक्ष दोबारा सुनने को कहा, जिसके बाद आयुर्वेद विवि ने छात्रों का निलंबन बरकरार रखा।
दो साल निलंबित, अचानक हुआ बहाल
पुलकित करीब दो साल तक निलंबित रहा। 29 मार्च 2017 को अचानक पुलकित और एक अन्य छात्र दीदार सिंह को तत्कालीन कुलपति डॉ. सौदान सिंह के अनुमोदन से कैंपस निदेशक प्रो. सुनील जोशी ने बहाल कर दिया। इसके बाद पुलकित ने 2018-19 में BAMS पूरा भी कर लिया।
लगातार दो साल टॉपर, फिर सेमेस्टर में फेल
वर्ष 2012 में दस्तावेज के फर्जीवाड़े के चलते पुलकित को दाखिला नहीं मिल पाया। 2013 में उसने यूएपीएमटी टॉपर किया। पहले दो साल उसने टॉप भी किया फिर अगले सेमेस्टर में फेल हो गया। विवि तत्कालीन अधिकारियों को हैरानी तब हुई जबकि टॉप करने वाले छात्र सेमेस्टर परीक्षाओं में फेल होने लगे।
राजनीतिक रसूख का फायदा तो नहीं मिला
पुलकित के पिता विनोद आर्य त्रिवेंद्र सरकार में दर्जाधारी रह चुके हैं। वर्तमान में भी पुलकित का भाई पिछड़ा वर्ग आयोग में उपाध्यक्ष था। माना जा रहा है कि पुलकित को डॉक्टर बनाने में सभी नियम कायदों को दरकिनार करने में राजनीतिक रसूख का फायदा मिला है।
उठ रहे सवाल यह
– दस्तावेज में फर्जीवाड़ा मिलने पर उसका दाखिला रद्द क्यों नहीं किया गया?
– निष्कासन के बाद किस आधार पर दो छात्रों को क्लास लेने की अनुमति मिली?
– 52 निष्कासित छात्रों में से केवल दो छात्रों को ही कक्षाओं में बैठने का आदेश क्यों?
– कोर्स पूरा होने के चार साल बाद भी विवि ने इस मामले में कार्रवाई क्यों नहीं की?
क्या कहते है आयुर्वेद विवि के प्रभारी कुलसचिव
इस पुरे मामले पर आर्युवेद विवि के प्रभारी कुलसचिव डॉ राजेश कुमार का कहना है कि मामले में जांच के बाद पुलिस ने मुकदमा दर्ज किया था जो कि कोर्ट में विचाराधीन है। चूंकि पुलकित आर्य व अन्य छात्र अभी दोषी साबित नहीं हुए, इसलिए उन्हें पढ़ने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता था। वह पास जरूर हुआ है लेकिन अभी डिग्री अवॉर्ड नहीं की गई।