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बड़ा लक्ष्य और आलस्य, विरोधी अवधारणा है। लेकिन करने की दृढ़ इच्छा हो तो कोई असम्भव कार्य भी सम्भव होता है।आखिर कैसे ? जाने 

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*  कुछ पाने के लिए कुछ त्याग करना पड़ता है। त्याग किये बिना भाग्य नहीं बनता है। प्रवृत्ति में रहते हुए वैराग्य वृत्ति में रहना है। लेकिन आधी बात हमें याद रहती है और आधी हम भूल जाते हैं।

 (ब्यूरो ,न्यूज़ 1 हिन्दुस्तान )
देहरादून।
आराम करने की प्रवृत्ति ही बहाने बाजी है। हम आराम करने के लिए कार्य न करने के उपाय खोजते हैं। इसके लिए हम विभिन्न प्रकार के बहानों का सहारा लेते हैं। कहा जाता है कि किसी भी कार्य को न करने के सौ बहाने हैं, यदि यह कम पड़े तो और भी निकल जाते हैं। लेकिन करने की दृढ़ इच्छा हो तो कोई असम्भव कार्य भी, सम्भव होता है। यह कहना है सहायक निदेशक ( सूचना ) मनोज श्रीवास्तव का। 
News 1 Hindustan से विशेष बातचीत में मनोज श्रीवास्तव का कहना है कि बहाने बाजी के पूर्व हमें आलस्य आता है। आलस्य हमारे ईगो का  पहला रूप है। हमारा आलस्य, सुस्ती और उदासी हमें अपनी क्षमताओं से दूर कर देता है। सुस्ती के कई रूप हैं। प्रमुख रूप से सुस्ती मानसिक और शारीरिक स्तर पर आती है। 
सुस्ती के कारण हम सोचते हैं कि चलो अभी नहीं तो यह कार्य कभी और कर लेंगे। अभी इतनी जल्दी क्या पड़ी है। जब आई.ए.एस.,पी.सी.एस., इंजीनियरिंग, मेडिकल, कैट इत्यादि परीक्षाओं के तैयारी के लिए कम से कम छः से आठ घण्टे स्टडी की जरूरत पड़ती है, तब कामचोर स्टूडेंट कहते हैं कि आखिर इतने लम्बे समय तक इतनी मेहतन किया कैसे जा सकता है।


कुछ स्टूडेंट सोचते हैं कि सीट बहुत कम हैं अथवा सीट तो सबकी फिक्स हैं। इसलिए हमसे नहीं होगा। दूसरे के अधिक हिम्मत और मेहनत को देखकर बुद्धि से सोच लेते हैं कि इतना तो आगे हम जा ही नहीं सकते हैं। हमारे लिये बस इतना ही ठीक है। यह भी सुस्ती और आलस्य का रूप है।
सुस्ती, आलस्य के प्रभाव से सोचते हैं, इतना त्याग करना कैसे सम्भव है। छः से आठ घण्टे का मेहनत परीक्षा के अंतिम दिनों में हो सकता है, लगातार सम्भव नहीं है। यह भी सुस्ती का राॅयल रूप है।  अच्छा फिर करुगा, अच्छा सोचेंगे देखूगा यह सब सुस्ती और आलस्य का रूप है। बड़े लक्ष्य या टारगेट को पूरा करने के लिए आलस्य व सुस्ती का त्याग कराना होगा। कठोर परिश्रम करते हुए आने वाली कठिनाई को हाई जम्प देकर पार कर जाना होता है। क्योंकि आलस्य हमें सुस्त बना देता है। जब इन बातों को चेक करके चेंज कर लेंगे तब हम उदाहरण प्रस्तुत करके रोल माॅडल बन जायेंगे। हम दूसरों के मार्गदर्शन के लिए लाॅ बनाकर लाॅ मेकर्स बन जायेंगे।


जब तक हम अपने आप से प्रतिज्ञा नहीं करेंगे तब तक हमारे अन्दर परिपक्वता आ नहीं सकती है। कभी कर लेंगे नहीं बल्कि स्लोगन होना चाहिए कि अभी नहीं तो कभी नहीं। हम इसे पूरा कर दिखायेंगे, हम बन कर दिखायेंगे। जितनी प्रतिज्ञा करेंगे उतना ही अधिक हमारे अन्दर परिपक्वता और हिम्मत आयेगी।
हमें समय के आगे रहना है। समय से पहले परीक्षा की तैयारी पूर्ण कर लेनी है। दूरदर्शी बनकर जितना हम सीट फिक्स करेंगे, उतना ही अधिक आगे हमें रिजल्ट भी फिक्स मिलेगा। यदि प्रोग्राम फिक्स होगा तब प्रोग्रेस भी फिक्स होगा यदि प्रोग्राम हिलता है तब प्रोग्रेस भी हिलता है। जितनी बुद्धि फिक्स रहती है उतना प्रोग्राम भी फिक्स रहता है।
उन्होंने कहा कि कुछ पाने के लिए कुछ त्याग करना पड़ता है। त्याग किये बिना भाग्य नहीं बनता है। प्रवृत्ति में रहते हुए वैराग्य वृत्ति में रहना है। लेकिन आधी बात हमें याद रहती है और आधी हम भूल जाते हैं। हमारा टारगेट का विजन एकदम क्लियर होना चाहिए। इसमें किसी प्रकार की मिलावट नहीं होनी चाहिए। जिस प्रकार सरकारी इंस्पेक्टर मिलावट को चेक करते हैं और सरकारी इंस्पेक्टर को देखते ही मिलावट करने वाले का पसीना छूट जाता है। उसी प्रकार हम भी अपने ऊपर शासन करने वाले अधिकारी हैं। किसी भी टारगेट को पूरा करने के लिए अपने ऊपर नियंत्रण रखना बहुत जरूरी होता है। हम अधिकारी होते हुए भी किसी के अधीन नहीं हो सकते हैं। अपने अधिकार को भूलने पर लोग हमें अधिकारी नहीं समझेंगे। अधिकारी न समझने के कारण हम लोगों के अधीन हो जाते हैं।

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