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बड़ी खबर : उपजाऊ साबित हुई हरिद्वार की धरती फिर भी मायावती और पासवान को यहाँ से मिली थी हार। आखिर क्यों ? Tap कर जाने

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( ब्यूरो ,न्यूज़ 1 हिन्दुस्तान )
हरिद्वार। यदि हरिद्वार के कुछ अपवादों को छोड़ दें तो बाहरी जनपदों से आने वालों के लिए हरिद्वार की धरती बड़ी  उपजाऊ साबित हुई। धर्मनगरी में राजनैतिक जमीन हो या न हो, शर्त यह है कि किसी पार्टी का टिकट ले आइये और सदन में पहुंच जाइये। यहां सहारनपुर से आए महावीर राणा भी जीत जाते हैं और सुप्रीमकोर्ट से आए कामरेड आरके गर्ग भी। अलबत्ता यह अपवाद भी हरिद्वार के साथ जुड़ा है कि हरिद्वार ने बाहरी प्रत्याशी मायावती को भी हरा दिया और रामविलास पासवान को भी। पर उन दोनों को जिन रामसिंह मांडेबांस ने हराया, वे भी हरिद्वार के नहीं, सहारनपुर के निवासी थे।
हरिद्वार यात्री बाहुल्य तीर्थस्थली है। यहां की रोटी-रोजी बाहर से आने वाले यात्रियों पर ही निर्भर रही। इसी तरह प्रत्याशी भी पैराशूट से उतरते रहे और विधानसभा या संसद में पहुंचते रहे। सहारनपुर के अजित प्रसाद जैन, बिजनौर के सुंदरलाल, देहरादून के महावीर त्यागी, ऋषिकेश के शांतिप्रपन्न शर्मा, सहारनपुर के ही जगपाल सिंह और रामसिंह मांडेबांस न केवल हरिद्वार से चुनाव लड़ने पैराशूट से उतरे अपितु जीतकर सदन की शोभा भी बढ़ाई।
दिल्ली सुप्रीमकोर्ट के अधिवक्ता कम्युनिस्ट पार्टी के कामरेड आरके जैन को 1974 में  हुए गठजोड़ में विधानसभा चुनाव लड़ने हरिद्वार भेजा गया। वे भारी मतों से विजयी हुए। 
संसदीय चुनाव लड़ने मायावती दो बार हरिद्वार आई
सहारनपुर के महावीर जैन, हरिद्वार के अम्बरीष कुमार को हराकर लखनऊ विधानसभा पहुंचे। हरिद्वार विधानसभा चुनाव जीते रामयश सिंह मूलत पूर्वांचल के थे और जगदीश मुनि हरियाणा के। सतपाल ब्रह्मचारी अब बेशक हरिद्वार में बस गए, उनका घर आज भी हरियाणा में ही है।
बिजनौर के निवासी वीरेंद्र सिंह ने वीपी सिंह के कहे से हरिद्वार विधानसभा चुनाव लड़ा और विजयश्री ने उनका वरण किया। जब से मदन कौशिक ने हरिद्वार की राजनीति में प्रवेश किया, बाहरी नेताओं का यहां लड़ना बंद हो गया। वैसे हरीश रावत भी हरिद्वार के सांसद रहे और डा. निशंक आज भी सांसद हैं। दोनों का मूल हरिद्वार जनपद नहीं है।
संसदीय चुनाव लड़ने मायावती दो बार हरिद्वार आई। अजीब बात है कि दोनों बार उन्हें रामसिंह मांडेबांस ने पराजित किया। 1985 के उपचुनाव में भी हरिद्वार सीट पर चुनाव लड़ने आए। पासवान का चुनाव प्रचार करने तो खुद चंद्रशेखर भी आए और संजय सेतु पर जनसभा की। यह और बात है कि उस चुनाव में मायावती और पासवान दोनों की ही जमानत जप्त हो गई।

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