( धीरज कुमार )
बक्सर ( बिहार )। मिनी काशी,महर्षि विश्वामित्र की तपोस्थली और श्री रामचंद्र जी का शिक्षा स्थली कहे जाने वाला बक्सर धाम के पवित्र छवि को सवारने में हमारे ऋषि-मुनियों को सैकड़ों वर्ष लगे होगे लेकिन आज के परिवेश में कलयुगी लोग इस पवित्रता को बड़े ही घिनौने तरीके से बेच रहे हैं तो बात करते हैं बक्सर के मुक्तिधाम की। यहां का आलम यह है कि अगर किसी अमीर के घर का कोई व्यक्ति मरता है तो भले ही इस जगह पर मुक्ति हो लेकिन अगर कोई गरीब व्यक्ति के घर के सदस्य मरने वाला है तो वह व्यक्ति बरबस ईश्वर से यही आराधना करता होगा कि हे प्रभु! हमलोग मरने के बाद अपने परिवार को कष्ट नहीं देना चाहते, इसलिए अभी हमारे बीच मौत का वारंट लेकर मत आइएगा।
जी हाँ ,बक्सर के मुक्ति धाम में दाह संस्कार के नाम पर लूट मची है। एक लाश के अंतिम संस्कार में 15000 से लेकर 20000 रुपए का खर्च आता है, ऊपर से मुखाग्नि देने वाला कर्मी की मनमानी अलग। श्मशान घाट पर पीने के पानी तक की व्यवस्था नहीं, ऐसे में अगर मर गए तो परिवार के लोग परेशान ही होंगे, । परेशानी की वजह यह है कि अंतिम संस्कार कराने वाले व्यक्तियों द्वारा मृत परिवार के परिजनों से मनमाना शुल्क वसूला जाता है। नहीं देने पर परिजनों के साथ बदसलूकी की जाती है। परिजनों से उसकी आर्थिक स्थिति के अनुसार राशि निर्धारित कर दी जाती है। यह राशि 5100 से लेकर 51 हजार तक हो सकती है। घास काटने और पंचकाठी के समय भी डोम राजा द्वारा काफी मोलभाव और बहस के बाद मुखाग्नि दी जाती है।
सरकार देती है 3 हजार, खर्च हो जाता है 30,920
अंत्येष्टि अनुदान योजना के तहत किसी परिवार के सदस्य की मृत्यु पर बिहार सरकार द्वारा मृतक की अंत्येष्टि के लिए 3 हजार रुपए की सहायता दी जाती है, जबकि घाट की व्यवस्था देख रहे लोग एक आम आदमी से इसका दस गुना ज्यादा पैसा खर्च करवा देते हैं। कर्ज लेकर अंतिम संस्कार कराने की नौबत आ जाती है।