( ब्यूरो ,न्यूज़ 1 हिन्दुस्तान )
कर्नाटक। चुनाव 2023 में कांग्रेस की ऐतिहासिक जीत के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए शुरू हुई उठापटक आखिरकार थम गई है। कांग्रेस अलाकमान ने फैसला किया है कि कर्नाटक के नए मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ही होंगे. वहीं, डीके शिवकुमार कांग्रेस की कर्नाटक सरकार में उप-मुख्यमंत्री होंगे। कर्नाटक की खींचतान फिलहाल तो थम गई, लेकिन इस पूरे घटनाक्रम से दो सवाल खड़े होते हैं। पहला, कोई भी नेता पार्टी की जीत के बाद डिप्टी सीएम क्यों नहीं बनना चाहता है? दूसरा, क्या शिवकुमार सरकार में नंबर दो की हैसियत से संतुष्ट हो जाएंगे।
किसी भी राज्य में उपमुख्यमंत्री के जिम्मे कोई विशेष काम नहीं होता है। ये सिर्फ प्रतीकात्मक पद है, जो ये बताता है कि उपमुख्यमंत्री बनाए गए नेता सरकार में नंबर दो की हैसियत रखते हैं। दरअसल, किसी भी राज्य सरकार का नेतृत्व मुख्यमंत्री के हाथों में होता है। राज्यों में एक या दो उपमुख्यमंत्री ज्यादातर बार जातीय समीकरणों को साधने के लिए बनाए जाते हैं। कई बार किसी नेता को संतुष्ट करने के लिए डिप्टी सीएम बना दिया जाता है। आसान भाषा में कहें तो डिप्टी सीएम का होना पार्टी के लिए तो अहमियत रख सकता है, लेकिन राज्य सरकार में उनके होने या ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ता है। संवैधानिक तौर पर राज्य सरकार में ऐसा कोई पद होती ही नहीं है।
संविधान में डिप्टी सीएम पद का जिक्र तक नहीं
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता विराग गुप्ता के मुताबिक, राज्यों के मुख्यमंत्री और मंत्रियों के बारे में अनुच्छेद 164 में प्रावधान हैं। वहीं, संविधान में उपमुख्यमंत्री ही नहीं, उप-प्रधानमंत्री पद का भी कहीं जिक्र नहीं है। जहां तक किसी राज्य में उपमुख्यमंत्री की बात है तो वह केवल मुख्यमंत्री की ओर से दिए गए विभाग या मंत्रालय को ही देख सकता है। उपमुख्यमंत्री का वेतन, अन्य भत्ते और सुविधाएं कैबिनेट मंत्री के बराबर ही होती हैं। वह बताते हैं कि उपमुख्यमंत्री पद उप-प्रधानमंत्री पद बनने के बाद शुरू हुआ है।
क्या हैं उपमुख्यमंत्री के संविधानिक अधिकार
किसी भी राज्य सरकार में उपमुख्यमंत्री बाकी सामान्य मंत्रियों की तरह ही कैबिनेट मीटिंग या किसी निर्णय में अपना सुझाव भर दे सकते हैं। इसके बाद सुझाव को मानना या नहीं मानना पूरी तरह से मुख्यमंत्री पर निर्भर करता है। संविधान में उपमुख्यमंत्री जैसे किसी पद का जिक्र नहीं है। लिहाजा, उपमुख्यमंत्री को मुख्यमंत्री की तरह विशेष अधिकार नहीं मिलते हैं। यही नहीं, डिप्टी सीएम राज्य की सत्ता में किसी भी तरह से हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं. जब राज्यपाल उपमुख्यमंत्री को पद व गोपनीयता की शपथ दिलाते हैं तो वह कैबिनेट मंत्री के तौर पर ही शपथ लेते हैं।
देश में पहली बार डिप्टी सीएम कौन बना था
अधिवक्ता विराग गुप्ता बताते हैं कि डिप्टी सीएम बनने की परंपरा बहुत पुरानी है। संविधान बनाए जाने के बाद देश का पहला डिप्टी सीएम बनाए जाने का मामला नीलम संजीव रेड्डी से जुड़ा है। उन्होंने बताया कि साल 1953 में मद्रास प्रेसिडेंसी से तेलुगु भाषी इलाकों को काटकर आंध्र राज्य बनाया गया। इसके बाद टी. प्रकाशम नए राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने। उन्होंने नीलम संजीव रेड्डी को अपना उपमुख्यमंत्री बनाया। इसके बाद देशभर में डिप्टी सीएम बनाने की परंपरा शुरू हो गई। अब तो कुछ राज्यों में दो या ज्यादा डिप्टी सीएम भी देखने को मिल जाते हैं। डिप्टी सीएम बनाने के पीछे ज्यादातर बार राजनीति कारण ही होते हैं। गठबंधन सरकारों में सभी दलों को सरकार में प्रतिनिधित्व देने के लिए भी ऐसा किया जाता है।
डिप्टी पीएम के अधिकारों पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला
हरियाणा के दिग्गज नेता और राष्ट्रीय लोक दल के मुखिया चौधरी देवी लाल दो बार देश के उप-प्रधानमंत्री रहे हैं। पहली बार वह साल 1989 से 1990 और दूसरी बार 1990 से 1991 तक डिप्टी पीएम रहे। उनके उप-प्रधानमंत्री रहते हुए इस पद के अधिकारों को स्पष्ट करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद फैसला दिया कि देश में उप-प्रधानमंत्री का पद संविधानिक नहीं है। उप-प्रधानमंत्री बाकी कैबिनेट मंत्रियों की ही तरह मंत्रिमंडल का सदस्य है। डिप्टी पीएम को भी बाकी मंत्रियों के बराबर अधिकार ही मिलेंगे।
कैसे शुरू हुआ था उप-प्रधानमंत्री पद पर विवाद
उप-प्रधानमंत्री पद को लेकर विवाद तब शुरू हुआ, जब शपथ ग्रहण समारोह में चौधरी देवी लाल बार-बार कैबिनेट मंत्री के बजाय उप-प्रधानमंत्री बोल रहे थे। तत्कालीन राष्ट्रपति आर. वेंकटरमण ने अपनी किताब ‘कमीशन फॉर ऑमिशन ऑफ इंडियन प्रेसीडेंट’ में लिखा है कि मैं चौधरी देवी लाल को मंत्री पद की शपथ दिला रहा था और वह बार-बार मंत्री के बजाय उप-प्रधानमंत्री बोल रहे थे।