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चारधाम यात्रा के आयोजन को लेकर उत्तराखंड सरकार ने किए हाथ खड़े।  आखिर क्यों ? जाने 

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*  पर्यटन और धर्मस्व मंत्री सतपाल महाराज का कहना है कि चारों धामों के कपाट तो विधि विधान के साथ मुहुर्तानुसार ही खुलेंगे लेकिन श्रद्धालुओं के लिए यात्रा का फैसला केंद्र को करना है।

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( ब्यूरो ,न्यूज़ 1 हिन्दुस्तान )

देहरादून। उत्तराखंड के लिए अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाली चार धाम यात्रा पर कोरोना वायरस की वजह से संकट गहरा गया है। पहले से इस बात की आशंकाएं जताई जाने लगी थीं कि 26 अप्रैल से शुरु होने वाली चार धाम यात्रा इस बार हो भी पाएगी या नहीं क्योंकि अंतिम तैयारियों के समय प्रदेश में और फिर देश में लॉकडाउन हो गया था। अब जबकि यात्रा शुरु होने में 20 दिन का समय भी नहीं बचा है और कोरोना वायरस फिलहाल नियंत्रण में आता नजर नहीं आ रहा इसलिए राज्य सरकार ने भी यात्रा के आयोजन से हाथ खड़े कर दिए हैं।  प्रदेश के पर्यटन और धर्मस्व मंत्री सतपाल महाराज ने कह दिया है कि चार धाम यात्रा के आयोजन पर फैसला केंद्र सरकार ही करेगी।

( सतपाल महाराज , पर्यटन और धर्मस्व मंत्री , उत्तराखंड )

पर्यटन और धर्मस्व मंत्री सतपाल महाराज का कहना है कि चारों धामों के कपाट तो विधि विधान के साथ मुहुर्तानुसार ही खुलेंगे लेकिन श्रद्धालुओं के लिए यात्रा का फैसला केंद्र को करना है। बता दें कि अक्षय तृतीया के दिन 26 अप्रैल को 12.35 पर सबसे पहले गंगोत्री धाम के कपाट खुलेंगे। इसके बाद इसी दिन 12 बजकर 41 मिनट पर यमुनोत्री के कपाट खुलेंगे। बदरीनाथ धाम के कपाट 30 अप्रैल को ब्रह्म मुहूर्त में सुबह 04.30 बजे खुलेंगे और 11वें ज्योतिर्लिंग केदारनाथ धाम के कपाट 29 अप्रैल को मेष लग्न में सुबह  06.10 पर खोले जाएंगे। पूरी दुनिया में कोरोना वायरस के कारण पर्यटन और तीर्थाटन बुरी तरह प्रभावित हुआ है और इसका असर भारत पर भी पड़ा है। उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जानी वाली चार धाम यात्रा पर भी इस संकट के कारण खतरा पैदा हो गया है। एक अध्ययन के अनुसार 2013 की आपदा से पहले के साल 2012 में 55.30 लाख पर्यटक चार धाम यात्रा पर आए थे। इस साल फिर से इतने ही पर्यटकों के चार धाम यात्रा में आने का अनुमान था. आपदा के बाद पीएचडी चैम्बर की अगस्त 2013 में आई एक रिपोर्ट के अनुसार चारधाम यात्रा में 12 हजार करोड़ के आसपास के व्यापार होने का अनुमान लगाया गया था, जाहिर तौर यह बीते 7 सालों में यह बढ़ जाना था।

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