( ब्यूरो ,न्यूज़ 1 हिंदुस्तान )
देहरादून। उत्तराखण्ड में विधानसभा चुनाव को लेकर सभी राजनैतिक पार्टियों ने अपनी पूरी ताकत झोक रखी है। लेकिन BJP – कांग्रेस में कड़ा मुकाबला है। दरअसल पिछले वर्ष जुलाई में उत्तराखंड के सबसे युवा मुख्यमंत्री बनने के केवल छह महीने बाद पुष्कर सिंह धामी के सामने सत्ता में वापसी के लिए ‘करो या मरो’ का युद्ध कांग्रेस लड़ रही है। वहीं, धामी के सामने कांग्रेस की अगुवाई कर रहे हरीश रावत जैसे महारथी के खिलाफ भाजपा का सफल नेतृत्व करते हुए फिर से सरकार बनाने की चुनौती है।
हालांकि धामी एक नया चेहरा है और उनका छह महीने का कार्यकाल भी अच्छा माना जा रहा है, लेकिन अनुभवी रावत के सामने भाजपा के लिए 60 से अधिक सीटें जिताने का लक्ष्य हासिल करना धामी के लिए आसान नहीं है। वर्ष 2017 के पिछले विधानसभा चुनावों में मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए रावत दो सीटों से चुनाव हारने के बावजूद उत्तराखंड की राजनीति में सबसे लोकप्रिय चेहरों में से एक हैं। कई ओपिनियन पोल सर्वेक्षणों में भी वह मुख्यमंत्री पद के सबसे पसंदीदा उम्मीदवारों के रूप में सामने आए हैं। रावत को उम्मीद है कि भाजपा सरकार के खिलाफ चल रही सत्ता विरोधी लहर का फायदा कांग्रेस को जरूर मिलेगा, जहां भी वह जा रहे हैं वहां प्रदेश में बड़े बहुमत के साथ सत्ता में आने के बावजूद भाजपा द्वारा पांच साल में तीन मुख्यमंत्री देने, मंहगाई और बेरोजगारी के बढ़ने की बात उठा रहे हैं।

कांग्रेस को इस बात से मिल रही राहत
प्रदेश में बारी-बारी से दोनों पार्टियों के सत्ता में आने की अब तक की परंपरा को देखते हुए भी इस बार कांग्रेस की उम्मीदों को पंख लगे हुए हैं। दूसरी तरफ भाजपा पिछले पांच साल में विभिन्न क्षेत्रों में शुरू हुई विभिन्न विकास परियोजनाओं के कारण अपनी जीत को लेकर आश्वस्त है।
डबल इंजन की सरकार पर भरोसा
अपनी वर्चुअल सभाओं में भाजपा के नेता जनता से ‘डबल इंजन की सरकार’ को एक और मौका देने को कह रहे हैं जिससे इन परियोजनाओं को पूरा किया जा सके। धामी ने खुद माना कि उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में कम समय मिला, लेकिन उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात का संतोष है कि उन्होंने अपने कार्यकाल का एक-एक क्षण प्रदेश की 1.25 करोड लोगों की सेवा में लगाया. धामी ने कहा, ‘केवल छह महीने के छोटे से समय में हमने 550 से अधिक निर्णय लिए और उन पर कार्रवाई की। कांग्रेस की पिछली सरकार ने केवल घोषणाएं कीं जो कभी पूरी नहीं हुईं। ’
चुनौती भरा रहा है धामी का सफर

छोटा होने के बावजूद धामी का कार्यकाल चुनौतियों से भरा रहा जहां उन्हें चारधाम देवस्थानम बोर्ड के गठन को लेकर तीर्थ पुरोहितों के आक्रोश, कोविड की दूसरी लहर के प्रकोप और हरिद्वार कुंभ पर लगे ‘सुपरस्प्रेडर’ के आरोपों का सामना करना पड़ा। इसके बाद पिछले साल नवंबर में बारिश से मची तबाही और इसमें अनेक लोगों के मारे जाने की घटना ने भी उनका इम्तहान लिया जिसमें व्यापक नुकसान के बावजूद सरकारी मशीनरी की तत्परता को सराहा गया। धामी ने चारधाम देवस्थानम बोर्ड को भंग करने का निर्णय लेकर तीर्थ पुरोहितों की नाराजगी को समाप्त कर दिया और अपने राजनीतिक कौशल का जबरदस्त परिचय दिया। राज्य मंत्रिमंडल में अपने से अधिक अनुभवी मंत्रियों के होने के बावजूद धामी सबको साथ लेकर चले। इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सार्वजनिक मंचों से धामी की तारीफ की।
क्या धामी ने सत्ता विरोधी लहर को थाम लिया?
एक राजनीतिक पर्यवेक्षक ने कहा कि अपनी मेहनत और व्यर्थ की बातें न करने वाले द्रष्टिकोण के जरिये धामी ने काफी हद तक अपने दो पूर्ववर्ती मुख्यमंत्रियों द्वारा पैदा की गई सत्ता विरोधी लहर को थाम लिया है। हालांकि चुनावों में अपनी पार्टी को दोबारा सत्तासीन करने के अलावा उनके पास दूसरी चुनौती मुख्यमंत्रियों के स्वयं चुनाव में हार जाने की परंपरा को भी तोड़ना है। राजनीतिक विश्लेषक जेएस रावत ने कहा, ‘उत्तराखंड में मुख्यमंत्री कभी भी नहीं जीतते। वर्ष 2002 में नित्यानंद स्वामी हारे, 2012 में भुवनचंद्र खंडूरी हारे और 2017 में हरीश रावत दोनों सीटों से हार गए। ’उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले एकमात्र मुख्यमंत्री नारायणदत्त तिवारी ने चुनाव ही नहीं लड़ा था।

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