Haridwar Haridwar in religious beliefs Slider Uttarakhand

धार्मिक मान्यताओं के आईने में हरिद्वार। आखिर  क्या है ? जानने के लिए टैब कर पढ़े

Spread the love

  – ब्रह्मकुण्ड में ब्रह्मा जी ने तो हर की पैड़ी पर भतृहरी ने की थी तपस्या
( ज्ञान प्रकाश पाण्डेय )
हरिद्वार।
महान सांस्कृतिक धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व की धरोहरों को खुद में समेटे हुए उत्तराखंड के प्रवेश द्वार पर स्थित है पौराणिक नगर हरिद्वार। यहां पर हम हरिद्वार के शाब्दिक अर्थ की बात करें तो हरिद्वार का नाम दो तरह से उच्चारित किया जाता है, हरिद्वार से तात्पर्य है भगवान विष्णु का द्वार यानी उत्तराखंड के बद्रीनाथ धाम जाने वाला द्वार।
जबकि कुछ लोग इस नगरी को हरद्वार कहकर पुकारते हैं। यहां पर हर का अर्थ भगवान शिव से है। हरिद्वार यानी भगवान शिव के धाम केदारनाथ के धाम जाने का द्वार। वैदिक शास्त्रों के अनुसार गंगा यहां ब्रह्मा, विष्णु, महेश को स्पर्श करती हुई धरती पर उतरी है। अर्थात साक्षात ईश्वरीय या तत्व युक्ता गंगा यहीं पर गंगा का वास्तविक रूप धारण करती है।


वैदिक संस्कृति वाला एक पौराणिक नगर हरिद्वार मूलतः हिंदू धार्मिक संस्कृति का केंद्र है। पौराणिक और वैदिक ग्रंथ कहते हैं कि हरिद्वार स्वयं सृष्टी के रचयिता जी की तपस्थली रही है। हरिद्वार में हर की पैड़ी के मुख्य कुण्ड ब्रह्मकुंड से है। इसका अर्थ उस स्थान से है जहां ब्रह्मा जी द्वारा तपस्या का विवरण आता है। यहीं पर हरि पादुकाई बनी हुई है। जिसे इस कथानक का प्रतीक माना जाता है। भगवान शिव के ससुराल यानी शिव की पहली पत्नी देवी सती के पिता दक्ष के यज्ञ के विध्वंस के बाद दक्ष को पुनर्जीवन देकर दक्षेश्वर महादेव की स्थापना का प्रश्न यहां सदा सर्वदा प्रसांगिक है। क्योंकि आज भी हिंदू धार्मिक आस्था के प्रतीक दक्षेश्वर महादेव को हरिद्वार का अधिष्ठात्री कहा जाता है।


स्कंद पुराण के केदारखंड में तो यहां तक लिखा है कि कनखल में दक्षेश्वर और माया देवी मंदिर के दर्शन के बिना तीर्थाटन निष्फल होता है। भगवान राम के सूर्यवंशी पूर्वज राजा भागीरथ से जुड़ा गंगा का प्रसंग हो या रावण के वध के बाद भगवान राम द्वारा हरिद्वार सहित कई धर्म स्थलों पर पंडा परंपरा की स्थापना करना ऐसी पौराणिक कथाएं हैं। जो हरिद्वार की पौराणिकता को स्पष्ट करती है। इतना ही नहीं भगवान कृष्ण, अर्जुन और पांडवों से जुड़ी सैकड़ों कहानियों के संदर्भ इधर उधर उपलब्ध हैं। ऐसा नहीं कि हरिद्वार सिर्फ हिंदू धर्म अवतारों और मान्यताओं से जुड़ा है। सिख धर्म के कई पातशाहियों के हरिद्वार आने और धार्मिक आयोजनों के प्रश्न भी साक्ष्य सहित उपलब्ध हैं। वस्तुत पौराणिक नगरी हरिद्वार को इतिहास के लंबे सफर का एहसास भी है। उत्खनन में मौर्य काल के कुछ साक्ष्य पाए जाने के कारण यह माना जाता है कि हरिद्वार एक समय चंद्रगुप्त मौर्य शासन का हिस्सा रहा। इस बात का आधार जनपद देहरादून के कालसी और खिजराबाद, ग्राम टोपरा से प्राप्त शिलालेखों को माना जाता है।
कथानक कहते हैं 38 ईसा पूर्व विक्रम संवत के संस्थापक उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के बड़े भाई राजा भतृहरी ने अपने गृहस्थ जीवन से विमुख होकर हरिद्वार में कई जगह पर तपस्या की, उन जगहों में प्रमुख रूप से हर की पैड़ी और गुरु गोरखनाथ की गुफा है। अपने बड़े भाई भतृहरि की स्मृति में राजा विक्रमादित्य द्वारा गंगा के किनारे बनवाई गई कक्रीट की सीढ़ियों को नाम दिया गया था भतृहरी की पैड़ी। जो कालांतर में उच्चारण के भ्रंश होने से हर की पैड़ी हो गया। यानि यह हरिद्वार नगर में संभवत पहला सार्वजनिक कंस्ट्रक्शन माना जाता है।


चीनी यात्री ह्वेनसांग ने तारीफ की थी हरिद्वार की
राजा हर्षवर्धन के शासनकाल में चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने यात्रा वृतांत में हरिद्वार का विस्तृत वर्णन किया है। चंद्रबरदाई के पृथ्वीराज रासो से लेकर आईने अकबरी में अबुल्फजल ने अकबर काल के वृतान्त में हरिद्वार का विस्तृत वर्णन किया है। ब्रिटिश सरकार द्वारा संचालित आर्कलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के डायरेक्टर जनरल पुरातत्व वेता अलक्जेंडर कंनिगम ने हरिद्वार आकर कई सर्वे किए। उनके यात्रा वृतांत के अनुसार यह कहा जाता है कि हरिद्वार पौराणिक काल ही नहीं ऐतिहासिक काल में भी दुनिया के आकर्षण का केंद्र रहा है। हरिद्वार में कई ख्याति प्राप्त राजाओं और धनी-रईसों ने यहां धर्मशालाएं बनवाई।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि कई छोटे-बड़े धार्मिक पर्व और मेलों का शहर भी हरिद्वार को माना जाता है। विश्व के सबसे बड़े मेले कुंभ मेले का केंद्र होने के कारण सामाजिक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्तर पर विश्व की हर सभ्यता से जुड़ने का ऐसा मंच भी हरिद्वार बना रहा है।
हरिद्वार में लगने वाले कुंभ मेले ने स्वतंत्रता संग्राम में भी बड़ी भूमिका अदा की है। 1857 के कुंभ मेले के दौरान स्वामी दयानंद के बुलावे पर तात्या टोपे, अजीमुल्ला खां, नाना साहेब, बालासाहेब और बाबू कुंवर सिंह हरिद्वार आकर एकजुट हुए। इन क्रांतिकारियों ने आजादी के संग्राम की प्रथम रूपरेखा भी यहीं तय की है। इस तरह आजादी की क्रांति की ज्वाला भी पूरे देश में फैल गई।
हरिद्वार अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के काल में भारतीय व्यापारियों के साथ पर्शीया, नेपाल, श्रीलंका, लाहौर, तांतार, कबूल आदि देशों से व्यापारी आकर राजा और धनपतियों को घोड़े, सांड, हाथी, ऊंट बेचते थे। दस्तावेज कहते हैं कि ईस्ट इंडिया कंपनी अपनी सेना के लिए भी घोड़े हरिद्वार की मंडी से ही खरीदते थे। आज भी हरिद्वार में घोड़ा मंडी नामक जगह हर की पैड़ी के पास मौजूद है।
सन 1837 में हरिद्वार में भीषण अकाल पड़ा। इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने गंगाजल को उपयोगी बनाने की योजना बनाई और कर्नल प्राची काटले के नेतृत्व में सन 1848 में गंगा की एक धारा को सिंचाई की दृष्टि से नहर बांधने का काम शुरू किया। 6 साल की लंबी अवधि में नहर बनकर तैयार हो गई, जिसका लोकार्पण सन 1854 के 8 अप्रैल को गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी ने किया। जिससे पूरे उत्तर प्रदेश को खेती के लिए पानी उपलब्ध हुआ। 1868 में हरिद्वार नगर पालिका का गठन होने से शहर की सफाई, पीने का पानी, पथ प्रकाश मिला। इस तरह सन् 1900 में शिक्षा के नए आयाम के लिए गुरुकुल कांगड़ी की स्थापना हुई। 1964-65 में भारत हेवी इलेक्ट्रिकल के रूप में रोजगार के अवसर हरिद्वार को मिल गए। पहले तहसील बाद में जिला बनने के कारण हरिद्वार के पास आज हर आधुनिक सुविधा और विकास के अवसर हैं। आज हरिद्वार उत्तराखंड राज्य का महत्वपूर्ण जिला है और अपने गौरवशाली इतिहास और सांस्कृतिक विरासत को हरिद्वार विस्तार दे रहा है। हरिद्वार की खासियत यह रही है कि एक धर्म नगरी होने के बाद भी हरिद्वार से धर्मांधता हमेशा कोसों दूर रही है।

news1 hindustan
अब आपका अपना लोकप्रिय चैनल Youtube सहित इन प्लेट फार्म जैसे * jio TV * jio Fibre * Daily hunt * Rock tv * Vi Tv * E- Baba Tv * Shemaroo Tv * Jaguar Ott * Rock Play * Fast way * GTPL केबल नेटवर्क *Top Ten खबरों के साथ देखते रहे News 1 Hindustan* MIB ( Ministry of information & Broadcasting, Government of India) Membership
http://news1hindustan.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *