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मजदूरों की दर्द भरी दास्तान,यू पी और बंगाल के मजदूर आज भी अपने घर लौटने की जोह रहे है बांट।  आखिर कहा ? जाने  

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 ( डॉ हिमांशु द्विवेदी )  
हरिद्वार।
जिस मेहनत कश मजदूर ने कभी किसी के आगे हाथ ना फैलाया हो उसे आज इस महामारी ने मांग कर भोजन खाने पर विवश कर दिया है ।मजदूरों  की दास्तां सुनते ही आंखें नम हो जाती है। भल्ला स्टेडियम पर पिछले चार -पांच दिनों से उत्तर प्रदेश , वेस्ट बंगाल के लाचार और विवश अपने गंतव्य को जाने के लिए सैकड़ों की संख्या में लोग जमा है। जब भी कभी प्रशासन की कोई गाड़ी आती दिखाई देती है तो जमा मजदूरों के चेहरे पर आशा  की किरण साफ दिखाई देती है। लेकिन उनके संबंध में कोई बात नहीं होती तो वे निराश और मायूस होकर बैठ जाते है। फिर किसी अधिकारी के आने का  इंतजार करते है। 

पिछलेपांच – छः दिनों से वेस्ट बंगाल के जिला मालदा के लगभग 36 मजदूर अपने घर वापसी के इंतजार में भल्ला स्टेडियम पर डेरा डाले पड़े है। उन्हीं में से एक मजदूर रहीम ने बताया कि उन्हें  बंगाल मालदा का ठेकेदार अकमुल सेठ सिदकुल स्थित महेंदा कंपनी में काम के लिए के लिए मालदा से भेजा  था।उन्होंने 21मार्च तक काम भी किया। उसके पश्चात 22 मार्च को प्रधानमंत्री के आवाह्न पर एक दिन का जनता कर्फ्यू लगा। उसके पश्चात दो दिन और काम किया। फिर लॉक डाउन शुरू हो  गया। उसके बाद तो जब तक पैसे रहे तब तक तो घरों पर ही रह कर  इसी उम्मीद में की 31मार्च को लॉक डाउन खुल जाएगा खाना बना कर खाते रहे।लेकिन उसके पश्चात लॉक डाउन दो शुरू हो गया ।अब तो पैसे भी समाप्त हो गए थे। फिर सामाजिक संस्थाओं ने भोजन देना शुरू कर दिया। लेकिन जब काम की आस टूटने लगी और सब्र का  बांध भी तो हम मजदूरों ने सिडकुल थाने से संपर्क साध कर बंगाल जाने की गुहार लगाई।लेकिन थाना प्रभारी ने समझा बुझा कर हमें फिर से अपनी झपडियो में भेज दिया।और हमारे खाने की व्यवस्था होती रही। हम मजदूरो  ने जब ठेकेदार से संपर्क कर लॉक डाउन काल के पैसे मांगे तो उसने साफ इंकार कर दिया ।

इसी बीच तीसरे लॉकडाउन के दौरान हमारा ठेकेदार भाग गया। जब प्रशासन ने बंगाल के लिए ट्रेन की घोषणा की तो हमें खुशी हुई । हमने पुनः सिडकुल थाना प्रभारी से ट्रेन में जाने के लिए अपने नामों की सूची दी। थाना प्रभारी ने हमें आश्वासन दिया कि आप लोगो को बस से स्टेशन छोड़ देंगे। पर ऐसा नहीं हुआ और ट्रेन जाने से मात्र एक घंटा पहले हमें बताया  कि वाहन की व्यवस्था नहीं हो पाएगी । हमें पैदल चले जाने को कहा गया ।लेकिन हमारा तो ट्रेन की सूची में नाम ही नहीं था। बताते चले कि ट्रेन में स्थान रिक्त था। लेकिन हम लोग तो ट्रेन छूटने के पश्चात ही पहुंचे।  अब तो पैसे भी नहीं जो अपना वाहन कर घर को लौट सके।जब सभी तरफ से उम्मीद टूट गई तो भल्ला स्टेडियम पर प्रशासन के रेहमों करम की उम्मीद में डेरा जमा लिया है। और घर जाने की प्रतीक्षा कर रहे है।

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