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लॉकडाउन का असर, 50 से 80 फीसदी तक साफ हुईं नदियां।आखिर कैसे ? जाने 

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*  दुनियां की गंगा एक अकेली नदी है जिनको माँ का दर्जा है। ये अकेली नदी है जिसके किनारों पर प्रतिवर्ष मेले सजते हैं जिन मेलों में लाखों की संख्या में श्रद्धालु पवित्र स्नान कर के आते है।

( ब्यूरो ,न्यूज़ 1 हिन्दुस्तान )

देहरादून। आजकल माँ गंगा उत्तरकाशी में शांत, निर्मल, अविरल, कल-कल करती अपनी मस्ती में गुनगुनाती तो कभी कभी गुर्राती मदमस्त लहर तरंगों के साथ बह रही है माँ गंगा। सदियों से गंगा नदी भारत की आस्था के साथ साथ आर्थिकी की नदी, जो करोडों देशवासियों की जीवनदायिनी भी है तो मोक्षदायिनी भी है, अत्यधिक उतार चढ़ाव झेलती रही है। पहाड़ी इलाकों से अपना सफर पूरा करते करते ये अपने उद्गम जिले उत्तरकाशी में दो जगह लगभग 40 किलोमीटर सुरंगों में कैद होकर जैसे ही अपना सफर पूरा करती है तो वैसे ही टेहरी डैम के 42 वर्ग किलोमीटर विशालकाय कृत्रिम झील में तब्दील हो जाती है।ऋषिकेश और हरिद्वार के मैदानी इलाकों में पहुंचते इसका अधिकांश जल नहरों में मोड़ दिया गया। अनेक स्थानों शहरों कस्बों पर मेला और कूड़ा करकट तथा उधोगों का दूषित जल गंगा नदी में छोड़ दिया जाता है। घरों की तमाम गंदगी, उद्योगों और खेतों में प्रयोग किये जाने वाले विभिन्न प्रकार के खतरनाक रसायन, रोगनाशक व कीटनाशकों के अवशेष भी बहकर गंगाजल में मिल जाते है। बड़े पैमाने पर जंगलों की अंधाधुंध कटाई के कारण पहले से चिंताजनक स्थिति और भी गंभीर हो गई है। जंगलों की अंधाधुंध वैध व अवैध कटान के परिणामस्वरूप नदी तल में रेत का भराव और बाढ़ का प्रकोप बढ़ गया है तथा नॉवहन की संभावनाएं समाप्त हो गई हैं व गंगा में विचरण करने वाले दुर्लभतम जलीय जीवन समाप्ति की कगार पर है।दुनियां की गंगा एक अकेली नदी है जिनको माँ का दर्जा है। ये अकेली नदी है जिसके किनारों पर प्रतिवर्ष मेले सजते हैं जिन मेलों में लाखों की संख्या में श्रद्धालु पवित्र स्नान कर के आते है।

गंगा नदी के ही किनारों पर प्रत्येक 6 वर्ष में अर्धकुंभ व 12 वर्ष में पूर्ण कुम्भ का मेला सजता है। इन कुम्भ के मेलों में लाखों नहीं करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाते है। गंगा नदी में इतनी गहरी आस्था व विश्वास है कि सरकारी आंकड़े व सर्वे बताते हैं कि गंगा नदी के किनारों पर गंगोत्री से लेकर गंगा सागर तक 30 लाख श्रद्धालु रोजाना पवित्र स्नान करते है। गंगा नदी में बढ़ते प्रदूषण की समस्या की भयावहता को महसूस कर और नदी जल प्रबंधन के मूल तत्व के रूप में जल की गुणवत्ता का महत्व समझ कर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गंगा मंत्रालय व जलशक्ति मंत्रालय का गठन किया है। इसका उद्देश्य गंगा नदी के प्रदूषण की रोकथाम, दुर्लभ जलीय जीवन को बचाने व उनका संरक्षण करने, नदी में फिर से नॉवहन शुरू करने , नदी किनारों पर सघन वृक्षारोपण करना, और गंगा नदी में सभी तरह की गंदगी व प्रदूषण की रोकथाम के लिए, गंगातटों पर स्नानघाट व मोक्षघाट निर्माण के लिए समयबद्ध, चरणबद्ध कार्यक्रम क्रियान्वित किये जा रहे है।

देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व भारत सरकार व नमामि गंगे व जलशक्ति मंत्रालय के मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत व उनके अधिकारी गंगा को अपने पुराने स्वरूप में लौटाने के लिए भागीरथ प्रयास में जुटे हैं, और काफी हद तक इसमें सफलता भी प्राप्त कर ली है। नमामि गंगे मंत्रालय संभाल कर पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती का प्रयास भी सराहनीय रहा। आजकल समूचे विश्व मे कोरोना आपदा के चलते दुनियां लॉकडाउन में है। समूची दुनियां थमी है, कल कारखाने, उद्योग धंधे, ट्रांसपोर्ट, रेल, एयरलाइन्स, स्कूल कॉलेज, सरकारी गैर सरकारी कार्यालय बंद पड़े है, जिसके फलस्वरूप गंगा नदी के साथ साथ देश व दुनियां की तमाम नदियों का प्रदूषण 60 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक साफ और प्रदूषणमुक्त हो चुकी है। सभी नदियां आजकल (क्रिस्टल क्लियर ) साफ सुथरी बह रही हैं। अभी हाल में 20 अप्रैल 2020 को केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत व नमामि गंगे के अधिकारियों की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में गंगा विचार मंच के उत्तराखंड के संयोजक लोकेन्द्र सिंह बिष्ट ने सुझाव दिया था कि आजकल देश के विभिन्न जगहों से गंगा जल को नमूनों के लिए एकत्रित करना चाहिए ताकि भविष्य में इसका तुलनात्मक अध्ययन किया जा सके। आजकल के हालात से लगता है कि जल, नभ, और आकाश के वातावरण को शुद्ध करने के लिये समूचे विश्व मे सालभर में एक बार 10 दिनों का सम्पूर्ण लॉक डाउन होना ही चाहिये।

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