( ब्यूरो ,न्यूज़ 1 हिन्दुस्तान )
देहरादून। कभी अपने सोचा होगा कि एक राजनेता अपने आपको को नर्तक और अपने चुनावी हार जीत को घुंगरू और नृत्य से जोड़ेगा। नहीं ना ,पर यह सत्य है। उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमन्त्री और कांग्रेस के राष्ट्रिय महासचिव हरीश रावत ने अपने आपको राजनैतिक नर्तक और अपनी चुनावी हार -जीत को घुंघरू और नृत्य से जोड़ा है। जी हाँ , आपको भी विश्वास नहीं हो रहा है ना। पर यह सच्चाई है। हरीश रावत ने ट्वीट कर ऐसी बात कही है। उन्होंने कहा है कि सच ये है कि वो जितने चुनाव जीते हैं, अब उससे एकाध ज्यादा हार गये हैं। हरीशदा आगे लिखते हैं कि ‘घुंघरू के कुछ दाने टूट गये, तो इससे नर्तक के पांव थिरकना नहीं छोड़ते हैं। सामाजिक और राजनैतिक धुन कहीं भी बजेगी, कहीं भी संगीत के स्वर उभरेंगे तो हरीश रावत के पांव थिरकेंगे। समझ नहीं पा रहा हूं कि, किस मंदिर में जाऊं और कौन सा नृत्य करूं कि, मेरे खबरची भाई, मेरे उत्तराखंड के भाई-बहन, अपने-पराए, सबको मेरा नृत्य अच्छा लगे। खैर कोरोनाकाल में मैं, नृत्य की उस थिरकन को खोज रहा हूं’ ।
हरीश रावत के इस ट्वीट में उनके विधानसभा चुनाव हारने की टीस साफ दिखाई दे रही है। हरीश रावत की इस पोस्ट के मायने ये हैं कि वो आगे चुनाव लड़ने की तैयारी और जनता को रिझाने की कोशिशों में लगे हैं ताकि जनता का ध्यान कभी तो हरीश रावत तक पहुंचे।
वही पुरे कोरोनाकाल में हरीश रावत सक्रिय रहे है। सबसे पहले पाने आप को दिल्ली से लौटते ही होम कोरोंटाइन करना। उसके पश्चात् हालही में देहरादून में बैलगाड़ी पर बैठ कर डीजल – पेट्रोल की कीमतों के खिलाफ प्रदर्शन करना। इतना ही नहीं हरीश रावत समय बे- समय राज्य व् केंद्र सरकार की कार्य प्रणाली पर प्रश्न चिन्ह लगते रहे है। हरीश रावत समय-समय पर कई रूपों में सामने आए। कभी वो जलेबी छानने तो कभी चाय बनाते नज़र आये। हरीश रावत वह नाम है जिसको जानना और पहचानना बहुत ही मुश्किल है। उनके कुछ सहयोगियों की माने तो ” आज तक हम लोग उनको समझ नहीं पाए ,जोकि हर पल उनके साथ रहे है,तो औरो की क्या बिसात ?