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सचिन पायलट अशोक गहलोत को जवाब क्यों नहीं देते ! आखिर किन कारणों से कांग्रेस में रह कर गहलोत के नेतृत्व को चुनौती दी जा रही है? जाने 

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* अभी अकेले अशोक गहलोत का बड़बोल पन है।
( ब्यूरो ,न्यूज़ 1 हिन्दुस्तान )
जयपुर।
राजस्थान में अशोक गहलोत के नेतृत्व को कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष रहे और सरकार में डिप्टी सीएम रहते ही सचिन पायलट ने चुनौती दी है। अब पायलट अपने समर्थक 18 विधायकों के साथ दिल्ली हरियाणा में अज्ञात स्थान पर जमे हुए हैं। लेकिन इधर जयपुर-जैसलमेर में सीएम अशोक गहलोत लगातार भाजपा पर आरोप लगा रहे हैं। सीएम का कथन माने तो केन्द्रीय गृहमंत्री अमितशाह के इशारों पर पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान और रेल मंत्री पीयूष गोयल उनकी सरकार गिरा रहे हैं। गहलोत का यह भी कहना है कि केन्द्रीय जलशक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत अब राजस्थान का मुख्यमंत्री बनने का ख्वाब देख रहे हैं और इस काम में भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया और प्रतिपक्ष के उपनेता राजेन्द्र सिंह राठौड़ की सक्रिय भूमिका है।

गहलोत के बयानों से प्रतीत होता है कि सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायक दूध पीते बच्चे हैं जो भाजपा नेताओं के बहकावे में आ गए हैं। ऐसे मासूम बच्चे अब भाजपा के इशारे पर उनकी सरकार गिरा रहे हैं। गहलोत रोजाना पायलट से ज्यादा भाजपा के नेताओं को कोसते हैं। जब सरकार सकंट में है, तब मुख्यमंत्री को गुस्सा आना स्वाभाविक है, लेकिन सवाल उठता है कि गहलोत के आरोपों का जवाब पायलट क्यों नहीं देते हैं? 9 जुलाई की रात से पायलट अपने समर्थक विधायकों के साथ दिल्ली में बेठे हैं। इन 25 दिनों में पायलट ने प्रदेश की राजनीति पर मुश्किल से तीन बार ट्वीट में प्रतिक्रिया दी होगी। यह माना कि अब खामौशी ही पायलट का सबसे बड़ा हथियार बन गया है, लेकिन प्रदेश के मौजूदा हालातों में पायलट को यह बताना चाहिए कि उन्होंने किन कारणों से गहलोत के नेतृत्व को चुनौती दी है। पायलट माने या नहीं, लेकिन गहलोत ने ऐसा माहौल खड़ा किया है जिससे प्रतीत होता है कि पायलट समर्थक विधायकों ने भाजपा से करोड़ों रुपया लिया है। गहलोत ने पायलट को गद्दार, निकम्मा, धोखेबाज, नकारा तक कहा है, लेकिन इसके बावजूद भी पायलट का गुस्सा बाहर नहीं आया है। अब जब पायलट पर करोड़ों रुपया लेने का खुला आरोप लगाया जा रहा है, तब पायलट की खामौशी आश्चर्य वाली है। हो सकता है कि पायलट की खामौशी रणनीति का हिस्सा हो, लेकिन ऐसी रणनीति भी कोई काम की नहीं जिसमें सार्वजनिक तौर पर बदनामी हो रही हो। आखिर सचिन पायलट निर्वाचित प्रतिनिधि हैं और सात वर्षों तक अशोक गहलोत वाली कांग्रेस पार्टी का प्रदेश में नेतृत्व किया है। डेढ़ वर्ष तक सरकार में डिप्टी सीएम के पद पर भी काम किया है। एक तरफ अपने अपमान की दुहाई देकर पायलट जयपुर से दिल्ली चले गए तो दूसरी ओर गद्दार, नकारा, निकम्मा, धोखेबाज और बिकाऊ कहे जाने के बाद पायलट चुप हैं। पायलट पर ऐसे गंभीर आरोप सीएम गहलोत ने सार्वजनिक तौर पर लगाए हैं। आखिर सचिन पायलट यह सब क्यों बर्दाश्त कर रहे हैं?

पायलट ने पिछले सात वर्षों पर कार्यकर्ताओं की नई फौज तैयार की थी, पायलट को कम से कम अपने समर्थकों का तो ख्याल ही रखना चाहिए। जो कार्यकर्ता पायलट का नाम लेकर सीना फुलाए घूमते थे, उन्हीं कार्यकर्ताओं को अब पायलट के बारे में गद्दार, निकम्मा, नकारा, बिकाऊ सुनना पड़ रहा है। यदि पायलट ऐसे व्यक्ति नहीं है तो उन्हें सीएम गहलोत के आरोपों का जवाब देना चाहिए। जहां तक गहलोत का भाजपा पर आरोप लगाने का सवाल है तो जब गहलोत स्वयं ही कांग्रेस विधायकों को मंडी में खड़े बकरे बता चुके हैं तब ऐसे आरोप के कोई मायने नहीं है क्योंकि जब बकरे बिकने के लिए मंडी में खड़े हैं तो खरीददार ईद क्यों नहीं मनाएगा? यह अशोक गहलोत की भी जिम्मेदारी थी कि बकरों को मंडी में जाने से रोका जाता? 19 बकरे जयपुर से निकल दिल्ली हरियाणा की मंडी में चले गए और रखवाले अशोक गहलोत को पता भी नहीं चला। यह बात तब और गंभीर हो जाती है, जब बकरे कई दिनों से मंडी की ओर मुंह करके खड़े थे। अब गहलोत अपने बकरों को तो कोई दोष नहीं दे रहे, लेकिन खरीददारों पर गुस्सा जता रहे है। जबकि सितम्बर 2019 में स्वयं अशोक गहलोत ने 6 बकरों को खरीद कर लाए थे। गहलोत के बकरे तो हाथी के समान थे। जब पायलट वाले एक बकरे की कीमत मुख्यमंत्री ने 35 करोड़ रुपए तक की बताई है, तब हाथी के वजन वाले 6 बकरों की कीमत का अंदाजा लगाया जा सकता है। जिस पार्टी के 6 बकरे सितम्बर में बिक अब उसी पार्टी के नेता गहजोत पर धोखेबाजी का आरोप लगा रहे हैं। असल में राजनीति में राजनेताओं का चरित्र एक जैसा होता है। 

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