( ब्यूरो ,न्यूज़ 1 हिन्दुस्तान )
देहरादून। उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमन्त्री और कांग्रेस के कद्दावर नेता हरीश रावत अच्ची तरह से जानते है कि सुर्खियों में कैसे रहा जाता है। क्यों कि हाल ही में एक टीवी चैनल द्वारा जब पूछा गया कि वह आगामी 2022 चुनाव किस सीट से लड़ेंगे ? उन्होंने ऐसा जबाब दिया जिसके कई मतलब निकाले जा सकते है। उन्होंने कहा ,चुनाव लड़ना नहीं ,लड़वाना जरुरी। बस इसके बाद सियासी पंडितो ने तो इस पर अपना और दुसरो का मगज खपाना शुरू कर दिया है ,कि क्या हरीश रावत अब पूरा फोकस पंजाब पर करेंगे। वही हरीश रावत के चाहने वालो मानना है कि वह अपना ध्यान पंजाब के साथ – साथ उत्तराखण्ड पर भी केन्दित करे।
आपको बता दे कि साल 2017 में पूर्व सीएम हरीश रावत किच्छा और हरिद्वार ग्रामीण दो सीट से चुनाव लड़े थे और दोनों ही हार गए थे। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि 2022 में हरीश रावत किस सीट से चुनाव लड़ेंगे और क्या उन्होंने कोई सीट तय की है? हालांकि रावत ने इस सवाल का सीधा जवाब देने के बजाय यह कह दिया कि चुनाव लड़ने से ज़रूरी, लड़वाना है, पर सियासी पंडितो और कांगेस के दूसरे गुटों के नेताओ के दिमाग में इसी बात को लेकर उहापोह स्थिति बानी हुई है। क्योकि राजनीति में बयानों के मायने निकाले जाते हैं और इस बार भी यही हो रहा है। तो क्या हरीश रावत का अब पूरा फ़ोकस पंजाब में चुनाव लड़वाने पर होगा? जहां कांग्रेस में सिर-फुटव्वल के बीच राष्ट्रीय नेतृत्व ने उन्हें प्रभारी बनाया है।
यहां हरदा के लिए है चुनौती
पंजाब और उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव 2022 में होने हैं. ऐसे में दो राज्यों में ध्यान लगाना हरीश रावत के लिए आसान नहीं होगा लेकिन 2017 की हार के बाद भी कई कांग्रेस नेता ऐसे हैं जो चाहते हैं कि हरीश रावत ही पार्टी को लीड करें। तो कई कोंग्रेसी नेताओ के जेहन में एक ही सावल है कि आखिर अब हरीश रावत कहा से चुनाव लड़ेंगे ? यह एक यक्ष प्रश्न भी है। वही पूर्व मंत्री मंत्री प्रसाद नैथानी का कहना है कि 2002 और 2012 में हरीश रावत सीएम नहीं बन पाए। लेकिन संगठन की ताकत हरदा ही थे। इसलिए 2022 में वो मेहनत की बात कर रहे हैं, मुख्यमंत्री बनने की नहीं। जबकि उत्तराखण्ड कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष किशोर उपाध्याय का खान है कि चुनाव लड़ना या लड़वाना केंद्रीय नेतत्व का फैसला होता है। उन्होंने कहा कि पिछली बार मई चुनाव नहीं लड़ना चाहता था पर नेतृत्व के आदेश अपर चुनाव लड़ा वैसे भी रावत जी cwc के सदस्य है। उनके लिए टिप्पड़ी करना मेरे लिए उचित नहीं है।
हरीश रावत को हाई कमान ने पंजाब का प्रभारी बनाकर पार्टी में उनका कद भी बढ़ाया है और पद भी। साफ़ है कि पार्टी पंजाब में हरीश रावत के राजनीतिक अनुभव से फ़ायदा लेना चाहती है। ऐसे में सवाल है कि क्या उत्तराखंड में हरीश रावत अब संरक्षक बन कर रहेंगे, विधायक बनकर नहीं? क्योंकि वह खुद कह चुके हैं कि लड़ने से ज़्यादा ज़रूरी, चुनाव लड़वाना है। फिर एक सवाल सियासी पंडितो के मगज़ में उमड़ रहा है कि ऐसे में आगामी चुनाव की बागडोर ( सीएम के चेहरा ) किसके हाथ होगी ?