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बड़ी खबर : सुमेरुपीठाधीश्वर स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती का बड़ा वयान ,शास्त्रीय नहीं है शंकराचार्य ,शास्त्रार्थ की चुनौती। आखिर क्यों और क्या ? Tap कर जाने 

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( ब्यूरो ,न्यूज़ 1 हिन्दुस्तान )
प्रयागराज। शंकराचार्यो को लेकर एक बार फिर सुमेरुपीठाधीश्वर स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती ने महानुशासन का हवाला देते हुए दावा किया है कि शंकराचार्याें की नियुक्ति शास्त्रीय नहीं है। इतना ही नहीं उन्होंने इस मुद्दे पर शंकराचार्यों और विद्वानों को शास्त्रार्थ की भी चुनौती दी है।
स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती के मुताबिक, आम्नाय के अनुसार मौजूदा शंकराचार्य शास्त्रीय नहीं हैं। इनके अभिषेक के लिए दो ही परंपराएं हैं। एक, गुरु-शिष्य परंपरा। दूसरी है शास्त्रीय। चारों पीठों के शंकराचार्य के लिए इनका पालन नहीं किया गया है।
उनका कहना है कि गुरु-शिष्य परंपरा के मुताबिक, गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य निरंजन देव तीर्थ थे। सो, चेला तीर्थ होना चाहिए, न कि सरस्वती। ज्योर्तिमठ में स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के पहले कृष्णबोधाश्रम को मानते हैं तो उनका शिष्य आश्रम होगा, न कि सरस्वती।
उन्होंने कहा कि स्वरूपानंद से पहले द्वारका पीठ के शंकराचार्य अभिनव सच्चिदानंद तीर्थ थे। वहां भी तीर्थ होना चाहिए। शृंगेरी मठ में विराजमान स्वामी भारती तीर्थ भी अनुचित हैं क्योंकि यह पीठ सरस्वती और भारती वालों की है। शृंगेरी वाले कांची को अपनी शाखा मठ मानते हैं। इनकी 27 शाखाएं हैं और सब खुद को जगदगुरु बताते हैं।
मठाम्नाय महानुशासन के हवाले से स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती कहते हैं, गोवर्धन पीठ पर ऋग्वेद की अष्टविकृति से पढ़ा हुआ वन-अरण्य विराजना चाहिए। शारदापीठ पर आश्रम-तीर्थ, ज्योर्तिमठ में सामवेद का ज्ञाता गिरि-पर्वत और शृंगेरी में यजुर्वेद का ज्ञाता सरस्वती-भारती होना चाहिए। सुमेरुपीठ पर वेदांत का पंडित, कांची पीठ पर तंत्र और सर्वज्ञ पीठ कश्मीर पर 14 विद्याओं के ज्ञाता को विराजना चाहिए। वेदांत सार प्रवेश से लेकर खंडन खंड खाद्यम, अद्वैत सिद्धि ग्रंथों में पारंगत होना भी अनिवार्य है।
 सुमेरूपीठाधीश्वर ने कहा कि धर्माचार्यों को राजनीतिक भाषा नहीं बोलनी चाहिए। महाकुंभ में सीएम योगी जैसे काम किसी ने नहीं कराए। उनसे त्यागपत्र मांगने वाले अज्ञानता और मूर्खता का परिचय ही दे रहे हैं। 
शंकराचार्य ने गठित की थीं सात पीठें, चार का ही प्रचार-प्रसार

स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती ने कहा, आदि शंकराचार्य ने सात पीठ स्थापित की थीं। यह गोवर्धन, शारदा, ज्योर्तिमठ, शृंगेरी, सुमेरू, कांची और सर्वज्ञ मठ हैं। लेकिन, स्वार्थवश चार का ही प्रचार किया गया। देश की चारों सीमाओं में से पश्चिम पीठ (शारदा) के शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती, उत्तर पीठ (ज्योतिष) के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती, पूर्व पीठ (गोवर्धन) के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती और दक्षिण पीठ (शृंगेरी) के शंकराचार्य स्वामी भारती तीर्थ हैं।
महाकुंभ में छिड़े विवाद

आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरि के मॉडल हर्षा रिछारिया को शाही रथ पर बैठाने पर कई संतों ने तीखी आलोचना की। आहत हर्षा का रोते हुए वीडियो भी वायरल हुआ।  

पूर्व अभिनेत्री ममता कुलकर्णी को किन्नर अखाड़े का महामंडलेश्वर बनाने पर अखाड़े के संस्थापक रहे ऋषि अजय दास ने विरोध किया और ममता व आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी को पद से हटा दिया। कहा गया कि अजय दास अखाड़े से निष्कासित हैं।
आईआईटी मुंबई से बीटेक और कनाडा में एयरोस्पेस इंजीनियर के रूप में लाखों कमाने वाले हिसार के आईआईटियन बाबा अभय सिंह भी विवादों और सुर्खियों में रहे। आखिर में उन्हें महाकुंभ से जाना पड़ा।
कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर ने सनातन बोर्ड निर्माण के लिए धर्म संसद बुलाई, लेकिन अखाड़ा परिषद ने इससे किनारा कर लिया।  
शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने मौनी हादसे को लेकर सीएम योगी का इस्तीफा मांगा तो संतों का ही दूसरा खेमा उन पर हमलावर रहा। उसने उन्हें महाकुंभ से बाहर निकालने की मांग की। 

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