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बड़ी खबर : उत्तराखण्ड के बॉर्डर एरिया के गाँवो में पर्यटन को बढ़ावा देने पहुंचे कुछ पूर्व नौकरशाह व पैरामिलिट्री फ़ोर्स से जुड़े लोग ,बदलेगी तस्वीर। आखिर कैसे ? Tap कर जाने

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( ब्यूरो ,न्यूज़ 1 हिन्दुस्तान )
पिथौरागढ़।
उत्तराखण्ड के सीमावर्ती गाँवो के विकास के लिए आजकल कुछ नौकरशाह व पैरामिलिट्री फ़ोर्स से जुड़े लोग एक साथ आये है। यह इलाका जोहर घाटी के सीमावर्ती गाँवो का है। इन अधिकारियों ने फैसला किया है कि रिटायरमेंट के बाद की लाइफ वे इन दर्जनों गांवों को बनाने, बसाने में बितायेंगे। अधिकारियों की इस पहल से बॉर्डर एरिया के गांव फिर से गुलजार हो सकते हैं।
केंद्र व राज्य सरकार से मदद
पूर्व आईएएस अधिकारी सुरेंद्र सिंह पंगति की अगुवाई में सोमवार को मुंशियारी में एक बैठक की गई। जहां वक्ताओं ने कहा कि इन गांवों में पारंपरिक उद्योग और एडवेंचर स्पोर्ट्स को बढ़ावा देने के लिए केंद्र व राज्य सरकारों की मदद ली जाएगी। केंद्रीय व राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं के माध्यम से यह काम संभव है।
एडवेंचर स्पोर्ट्स की दरकार
अधिकारियों ने कहा कि हाल ही में ब्यास वैली में साइकिल रैली आयोजित की गई जो काफी सफल रही। इस तरह के एडवेंचर स्पोर्ट्स जोहार वैली में भी कराये जाने चाहिए। इसके साथ ही गांवों में कनेक्टिविटी में सुधार होना चाहिए। जाड़े के दिनों में लोगों का पलायन रोकने के लिए इनकी मदद की जानी चाहिए। पुराने रूट को फिर से शुरू किया जाना चाहिए, ताकि आवागमन बेहतर हो सके।
पर्यटकों को मिले सुविधा
मीटिंग के दौरान वक्ताओं ने यह भी कहा कि पर्यटकों को इनर लाइन परमिट कानून में छूट मिलनी चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा पर्यटक यहां पहुंच सकें। कहा कि एशिया के सबसे बड़े ग्लेशियर मिलान को देखने आने वाले पर्यटकों के लिए पीने के शुद्ध पानी, अच्छी सड़कों और लाइट की व्यवस्था हो, ताकि इन गांवों को भी विकसित किया जा सके।
क्यों पड़ी जरूरत 
पूर्व ब्यूरोक्रेट्स व पैरामिलिट्री अधिकारियों का मानना है कि इन गांवों को बेहतर बनाना है तो यहां के पारंपरिक उद्योग को बहाल करना होगा। इनका यह भी कहना है कि इन गांवों के आसपास एडवेंचर स्पोर्ट्स को बढ़ावा देने से विकास होगा। गांव में रोजगार के साधन बनेंगे और स्थानीय पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। ऐसा इसलिए भी जरूरी है क्योंकि उत्तराखंड के बॉर्डर एरिया से पलायन ज्यादा होता है। रोजगार की तलाश में लोग इन जगहों को छोड़कर दूसरे शहरों में जाते हैं।
क्या कहते हैं अधिकारी
मल्ला जोहार विकास समिति के बैनर तले हुई मीटिंग में समिति के प्रमुख व पूर्व आईटीवीपी अधिकारी श्रीराम सिंह धर्मसक्तू ने कहा कि 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध के बाद से यहां के पारंपरिक उद्योग बर्बाद हो गये। जिसके बाद गांव के लोग दूसरे उद्योगों की तलाश में यहां से पलायन करने लगे। मीटिंग में शामिल ज्यादातर अधिकारियों ने माना कि सरकार के सहयोग से यहां लकड़ी के उद्योग और मेडिकल प्लांट्स की खेती शुरू कराई जानी चाहिए।

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