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उत्तराखण्ड : CM त्रिवेन्द्र रावत से कई मन्त्री ,विधायक और सांसद नाराज़। आखिर क्या झारखण्ड से केंद्रीय नेतृत्व लेगा सबक या फिर ………? टैब कर जाने 

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( ब्यूरो,न्यूज़ 1 हिन्दुस्तान )

देहरादून / नई दिल्ली। उत्तराखण्ड में राजनैतिक परिस्थित लगातार जा रही है। उत्तराखण्ड में सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत  कार्यशैली से उनकी ही पार्टी के कई विधायक और मंत्री सहित सांसद नाराज़ बताये जा रहे है। जिस कारन से भाजपा आलाकमान भी राज्य की परिस्थितियों पर पल – पल नज़र बनाये हुए है। वही केंद्रीय नेतृत्व झारखण्ड से सबक लेकर फ़िलहाल उत्तराखंड मामले में कोई रिस्क नहीं लेना चाहता है। सूत्रों की माने तो त्रिवेंद्र सरकार के कई मंत्री ,विधायक और सांसदो का आरोप है कि ना तो सीएम त्रिवेंद्र रावत उनकी समस्याओं के समाधान पर ध्यान देते है और ना ही उनके अधिकारी उनको गंभीरता से लेते है। असंतुष्ट विधायक और मंत्री पार्टी आलाकमान से मुख्यमंत्री की कार्यशैली को लेकर लागातार शिकायतें करते रहे है।  राज्य में विधानसभा चुनावों को लेकर अब क़रीब एक साल का ही समय शेष रह गया है।  ऐसे में यदि सूत्रों की मानें तो पार्टी संगठन ने राज्य सरकार के लेखा जोखा को लेकर एक इंटरनल सर्वे कराया था, जिसमें झारखंड जैसा ही परिणाम मिलने की बात सामने आ रही थी।  इस गंभीर स्थिति को देखकर पार्टी आलाकमान ने अचानक पार्टी के 2 वरिष्ठ नेताओं को ऑब्ज़र्वर के तौर पर देहरादून भेजने का निर्णय लिया। 

( फाइल फोटो )

छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह के साथ राष्ट्रीय महासचिव और उत्तराखंड मामलों के प्रभारी दुष्यंत गौतम को शनिवार को ही ऑब्ज़र्वर के तौर पर देहरादून पहुंच गये थे और उन दोनों ने उत्तराखंड बीजेपी कोर ग्रुप के साथ मीटिंग करके राजनीतिक हालातों का जायज़ा लिया।  इसके साथ ही दोनों ऑब्ज़र्वर ने बीजेपी के असंतुष्ट विधायकों से भी मुलाक़ात की थी। सूत्रों के मुताबिक़, कुम्भ की अधूरी तैयारी, उत्तराखंड के प्रमुख धाम बद्रीनाथ और केदारनाथ सहित 70 से ज्यादा मंदिरों के सरकारीकरण, हरिद्वार में कत्लखाने जैसे मुद्दों पर रावत की शिकायत की गई है।  एक दर्जन से ज्यादा विधायक रावत के नेतृत्व में पार्टी आलाकमान के सामने चुनाव न लड़ने की इच्छा जता चुके हैं।  रावत सरकार के 4 मंत्री भी मौजूदा नेतृत्व के साथ चुनाव में नहीं जाने की इच्छा जता चुके हैं।  केन्द्र में मोदी सरकार के बनने के बाद से रिकॉर्ड रहा है कि बीजेपी शासित राज्यों में सीएम के ख़िलाफ़ कई विरोधाभासों के बाबजूद भी पार्टी आलाकमान ने किसी भी सीएम को चेंज नहीं किया। 


कमोबेश ऐसी ही स्थिति झारखंड में तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवरदास के समय में थी।  तमाम सर्वे और प्रदेश संगठन ने रिपोर्ट दी थी कि यदि रघुवर दास को मुख्यमंत्री पद से नहीं हटाया गया तो झारखंड में सत्ता में वापिसी मुश्किल होगी।  लेकिन इसके बाबजूद भी केन्द्रीय नेतृत्व ने रघुवर दास पर भरोसा रखा और उनके नेतृत्व में ही चुनाव लड़ा लेकिन नतीजा अब सभी के सामने है।  माना जा रहा है कि झारखंड से सबक़ लेकर केन्द्रीय नेतृत्व फ़िलहाल उत्तराखंड के मामले में कोई रिस्क नहीं लेना चाहता. इसलिये अपनी लीक से हटकर आनन फ़ानन में देहरादून में पर्यवेक्षक भेज दिये.
सूत्रों का दावा है कि पर्यवेक्षकों ने अपनी रिपोर्ट पार्टी आलाकमान को सौंप दी है।  सूत्रों की मानें तो इस रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में पार्टी को लेकर कोई नाराज़गी जनता में नहीं है।  लेकिन सीएम रावत को लेकर स्थिति बिल्कुल इसके उलट है।  हालांकि इससे पहले ही उत्तराखंड के क़रीब दर्जनभर विधायकों ने राजधानी दिल्ली में डेरा डाल दिया है।  बताया जा रहा है कि उत्तराखंड के 4 मंत्री व 10 विधायक दिल्ली में मौजूद हैं।  मंत्री अरविंद पांडेय, सतपाल महाराज, सुबोध उनियाल दिल्ली में पहुंच गये हैं।  पूर्व सांसद बलराज पासी, विधायक खजान दास, हरबंस कपूर, हरबजन सिंह चीमा भी दिल्ली में ही मौजूद बताये जा रहे हैं।  जबकि आज से संसद सत्र की वजह से मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक, सांसद अजय भट्ट, अजय टम्टा व अन्य सांसद पहले से ही दिल्ली में मौजूद हैं।  विधायक मुन्ना सिंह चौहान, पुष्कर धामी, सुरेश राठोड़ भी दिल्ली पहुंचने वाले हैं। 
उधर गैरसेड़ में अपने कार्यक्रम को निरस्त करके मुख्यमंत्री रावत भी दिल्ली आ चुके हैं।  रावत पार्टी आलाकमान से मिलकर अपनी स्थिति स्पष्ट करने की कोशिश करेंगे।  महाराष्ट्र के गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी भी आज दिल्ली मे ही है।   ऐसे में माना जा रहा है कि पार्टी आलाकमान उत्तराखंड की राजनीतिक स्थिति पर उनसे चर्चा कर सकता है।  जितनी तेज़ी से उत्तराखंड का राजनीतिक घटनाक्रम बढ़ रहा है उससे लग रहा है कि पार्टी आलाकमान बड़ा फ़ैसला उत्तराखंड में ले सकता है।  वहीं, रावत के विकल्प के तौर बीजेपी के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी और राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी, सांसद अजय भट्ट, धन सिंह रावत और सतपाल महाराज का नाम भी चर्चा में सामने आ रहा है। 

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