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उत्तराखण्ड के नए CM तीरथ सिंह रावत के आदेश से लाखो तीर्थ यात्रियों की कुम्भ में डुबकी लगाने की जगी उम्मीद। आखिर क्यों पलट रहे है पूर्व सीएम त्रिवेन्द्र के फैसलों को ? टैब कर जाने

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 ( ब्यूरो ,न्यूज़ 1 हिन्दुस्तान )

देहरादून। उत्तराखण्ड के नए CM तीरथ सिंह रावत जबसे मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है तभी से एक्शन मुद है,इतना ही नहीं इसके कारण मीडिआ की सुखिया भी बटोर रहे है। दरअसल ,सुर्खिया बनाने की वजह पिछली सरकार के विवादास्पद फैसले हैं जिनको तीरथ सिंह रावत पलट रहे हैं।  सबसे बड़ा फैसला हरिद्वार कुंभ से जुड़ाहै।  एक अप्रैल से कुंभ मेले की विधिवत शुरुआत होगी।  पिछली सरकार ने कोविड-19 के मद्देनजर यात्रियों के लिए यह जरूरी किया था कि वे कोविड-19 की निगटिव रिपोर्ट के साथ लेकर आएं, साथ ही हरिद्वार में यात्रियों की सीमित संख्या को लेकर भी निर्देश जारी हए थे।  मुख्यमंत्री तीरथ ने एक ही झटके में इन निर्देशों से किनारा किया है।  इससे सीएम तीरथ की छवि साधु समाज में एक हीरो की मानिंद बनी है।  वहीं दूसरी तरफ कुंभ में डुबकी लगाने का प्लान कर रहे लाखों तीर्थ यात्रियों में भी उम्मीद जगी है। 
बीजेपी की राजनीति के केंद्र में हिंदू और गंगा प्रमुख कारक रहे हैं।  कुंभ को मुख्यमंत्री के फैसले पार्टी लाइन के साथ जाते दिख रहे हैं।  इसके अलावा, कोविड के दौरान नियमों का पालन ना करने के आरोप में जिन लोगों पर पिछली सरकार ने मुकदमे लगाए थे।  उनको भी तीरथ रावत ने वापस लेने की घोषणा की है।  इस दूसरे फैसले से कई लोग जो मुकदमे और कोर्ट, कचहरी की वजह से परेशान थे।  वह खुश है और इस फैसले ने आम लोगों में तीरथ की उम्मीदें बढ़ाई हैं  ।  

देवस्थानम बोर्ड से जुड़े मसले पर भी तीरथ नरम
उत्तराखंड में सबसे विवादास्पद देवस्थानम बोर्ड से जुड़े मसले पर भी तीरथ सिंह रावत नरम हुए हैं।  उन्होंने साफ कहा है कि बद्रीनाथ-केदारनाथ-यमुनोत्री और गंगोत्री समेत जो मंदिर हैं, उन पर जो सालों से व्यवस्था चली आ रही थी, इस साल भी बरकरार रहेगी।  सीएम ने साफ किया है कि वह देवस्थानम बोर्ड के मसले को उलझाए नहीं रखना चाहते। 
त्रिवेंद्र सिंह रावत गैरसैंण कमिश्नरी बनाने का जो ऐलान कर गए थे।  उसके बाद उपजी नाराजगी को भी नए सीएम ने दूर करने की कोशिश की है।  उन्होंने ऐलान किया है कि वह इस मुद्दे पर जन भावनाओं के साथ हैं।  एक और मजेदार तथ्य यह है कि पिछले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत जहां नौकरशाहों पर बहुत विश्वास करते थे वही तीरथ सिंह रावत ने साफ किया है कि वह नौकरशाहों से ज्यादा अपने जनप्रतिनिधियों को तवज्जो देना चाहेंगे।  इस बात से उन्होंने ब्यूरोक्रेसी को संदेश देने की कोशिश की है।  वही अपने पार्टी कैडर को भी खुश किया है।  इन सारी बातों के पीछे चुनावी राजनीति है। 

विवादों दूर रहने की कोशिश
उत्तराखंड में अगले साल जनवरी में विधानसभा चुनाव होने हैं।  चंद महीने बचे हैं और इन चंद महीनों में सीएम तीरथ चाहते हैं कि वह उस एंटी इनकंबेंसी फैक्टर को दूर करने की कोशिश करें जो पिछली सरकार ने अपने निर्णयों की वजह से पैदा किए थे।  नए सीएम के तौर पर तीरथ सिंह रावत अपने को जनता से जुड़ा, पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए सुलभ और नौकरशाहों के लिए कठोर सीएम के तौर पर छवि बनाने की कोशिश करते दिख रहे हैं।  अपने मंत्रिमंडल के चयन में सीएम ने विवादों से दूर रहने की कोशिश की है।  पिछली सरकार के साथ चेहरों को न सिर्फ अपनी कैबिनेट में लिया है बल्कि उनको वहीं विभाग दे दिए हैं जिसमें वह पिछली सरकार के रहते कंफर्टेबल थे।  यानी ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर की लाइन पर चलते हुए सीएम विवादों से दूर रहना चाहते दिख रहे हैं। 

पार्टी को दोबारा सत्ता में वापस लाने की चुनौती

मुख्यमंत्री के करीबी लोगों का मानना है किसी सीएम की इमेज सरल व्यक्ति की रही है और इस छवि को वो तोड़ना भी नहीं चाहते।  आरएसएस बैकग्राउंड से आने वाले तीरथ को मुख्यमंत्री के तौर पर सरकार चलाने का एक बड़ा मौका मिला है।  इस मौके को सीएम तीरथ चैलेंज और अपॉर्चुनिटी के तौर पर भी देखते लग रहे हैं।  चैलेंज इसलिए कि उनको अपनी पार्टी को दोबारा सत्ता में वापस लाना है और अवसर इसलिए कि अगर वह बीजेपी को दोबारा सत्ता में लाने में कामयाब रहे तो वह 6 साल तक मुख्यमंत्री बने रहने का एक नया कीर्तिमान बना सकते हैं।  चैलेंज और अवसर के बीच में समय बहुत बड़ा फैक्टर है और ऐसा लगता है सीएम पिछली सरकार के हर उस आलोकप्रिय फैसले से अपने आपको अलग रखना चाहते हैं जिससे पार्टी को आने वाले समय में नुकसान हो सकता था। 

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