* 16 विधायकों से मिलने की हर कोशिश हुई नाकाम, ज्योतिरादित्य, दिग्विजय, कमलनाथ की तिगरी को नहीं संभाल पाई कांग्रेस
* भाजपा और शिवराज के लिए आसान नहीं है आगे की राह
* कर्नाटक फार्मूले के तहत ज्योतिरादित्य के समर्थक पूर्व विधायकों को मिलेगा रोजगार
(ब्यूरो ,न्यूज़ 1 हिन्दुस्तान )
मध्य प्रदेश। ज्योतिरादित्य सिंधिया का साथ छोड़ना कांग्रेस नहीं संभाल पाई और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इस्तीफा दे दिया। सुप्रीम कोर्ट का फ्लोर टेस्ट का निर्णय और सिंधिया समर्थक 16 विधायकों को विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति के मंजूर किए जाने के बाद कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने कमलनाथ के इस्तीफा देने की संभावना जता दी थी। दिग्विजय सिंह ने कह दिया था कि उनके पास बहुमत नहीं है, लेकिन कमलनाथ के इस्तीफा देने के बाद भाजपा और शिवराज सिंह चौहान के लिए राज्य में सरकार बनाना, चलाना बहुत आसान नहीं होगा।
राजनीति में कल और परसों भी आता है :
कमलनाथकमलनाथ ने इस्तीफा देने से पहले अपनी 40 साल की भरोसे की राजनीति का हवाला दिया और कहा कि राजनीति में आज के बाद कल और परसों भी आता है। उन्हें ज्योतिरादित्य सिंधिया के धोखे और सौदेबाजी की राजनीति पर भी निशाना साधा। उन्हें भाजपा के सौदेबाजी की राजनीति को भी आड़े लिया और अंत में राज्यपाल को इस्तीफा देने की घोषणा कर दी।
इससे पहले भाजपा के विधायक शरद कौल ने भी विधानसभा में सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। विधानसभा अध्यक्ष ने कौल का इस्तीफा मंजूर कर लिया है। कांग्रेस पार्टी के खेमे में कौल समेत करीब तीन-चार विधायकों के कमलनाथ सरकार का साथ देने की उम्मीद थी।
लेकिन सूत्र बताते हैं कि ताजा घटनाक्रम का विश्लेषण करने के बाद कमलनाथ से इस्तीफा देने का मन बना लिया। उन्होंने इसके बाबत कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने टेलीफोन पर चर्चा की और इसके बाद प्रेसवार्ता में इसकी घोषणा कर दी।
कहां हुए फेल, कहां हुए पास
कमलनाथ को मध्य प्रदेश में पार्टी की जिम्मेदारी से लेकर मुख्यमंत्री का पद मिलना कांटों भरा था। उनके रास्ते में हर पग पर सबसे बड़ा कांटा ज्योतिरादित्य सिंधिया थे। कमलनाथ के साथ जहां मध्य प्रदेश के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह और कुछ सीनियर नेताओं का हौसला था।
इसके सहारे कमलनाथ 38 साल की केंद्रीय राजनीति करने के बाद 2018 में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने में सफल हो गए। कमलनाथ के सामानांतर ज्योतिरादित्य सीधे राहुल, प्रियंका तक सीधी पहुंच रखते थे।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी तक भी उनकी बेधड़क पहुंच थी। कांग्रेस पार्टी के भीतर भी माना जा रहा है कि कमलनाथ ज्योतिरादित्य और दिग्विजय के बीच में समीकरण नहीं बना पाए। पार्टी का शीर्ष नेतृत्व तीनों नेताओं को नहीं संभाल पाया।
लोकसभा चुनाव 2019 हारने के बाद ज्योतिरादित्य लगातार दबाव की राजनीति करते रहे और इससे इतर कमलनाथ और दिग्विजय सिंह सत्ता में चाल में चल रहे थे। शीर्ष स्तर के सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस अध्यक्ष पद से राहुल गांधी के इस्तीफा देने के बाद ज्योतिरादित्य लगातार दबाव बढ़ाते रहे। अक्टूबर-नवंबर 2019 में उन्होंने संकेत देना शुरू किया, जनवरी और फरवरी 2020 में सभी दांव अजमाने के बाद वह भाजपा में चले गए।
बागी विधायकों से एक भेंट पर टिकी थी कांग्रेस की उम्मीद
गुलाम नबी आजाद ने पिछले सप्ताह कहा था कि राज्य में कांग्रेस की सरकार बच पाई तो केवल कमलनाथ बचा पाएंगे। हालांकि आजाद को इसकी संभावना कम थी। दिग्विजय सिंह कमलनाथ की सरकार गिरने का दाग अपने ऊपर नहीं लेना चाहते थे। हालांकि पार्टी के तमाम नेता इसकी मुख्य वजह उन्हें ही मानते हैं।
इसके सामानांतर कमलनाथ और दिग्विजय दोनों को उम्मीद थी कि बागी विधायकों से एक भेंट के बाद समीकरण बदल जाएगा। इसी उम्मीद में कोरोना वायरस संक्रमण का सहारा लेकर मध्य प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष ने 26 मार्च तक विधानसभा की कार्यवाही को स्थगित कर दिया था।
बागी विधायकों से भेंट के लिए कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने हर स्तर पर प्रयास किया, लेकिन भाजपा के रणनीतिकारों ने ज्योतिरादित्य, शिवराज, कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के सहयोग से इसे सफल नहीं होने दिया। सुप्रीम कोर्ट के 20 दिसंबर को फ्लोर टेस्ट के निर्णय ने भी कमलनाथ का हाथ बांध दिया।
ऑपरेशन लोटस सफल लेकिन आसान नहीं होगी राह
कर्नाटक के बाद मध्य प्रदेश में भाजपा का ऑपरेशन लोटस सफल रहा। यहां कर्नाटक की तरह कई बार प्रयास नहीं करने पड़े और राहुल गांधी के दाहिने हाथ कहे जाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया के सहयोग से केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा, नरोत्तम मिश्रा ने इस लक्ष्य को आसानी से साध लिया।
कमलनाथ के इस्तीफा देने के बाद भाजपा नेता शिवराज सिंह चौहान राज्य में सरकार बनाने का दावा पेश कर सकते हैं। माना जा रहा है कि राज्य के अगला मुख्यमंत्री वही बनेंगे। इस बारे में अंतिम निर्णय शीर्ष नेतृत्व को ही करना है। हालांकि शिवराज को मुख्यमंत्री बनाए जाने के लेकर भी भाजपा के भीतर काफी अंतर्विरोध है। भाजपा के मुख्यमंत्री को शपथ लेने के बाद सदन में बहुमत भी साबित करना है। माना जा रहा है कि यहां भी भोपाल में राजनीति नया रंग दिखा सकती है।
केंद्र में ज्योतिरादित्य बनेंगे मंत्री और 22 पूर्व विधायक लड़ेंगे चुनाव
ज्योतिरादित्य सिंधिया के राज्यसभा के लिए चुनकर आने के बाद उन्हें केंद्र सरकार में मंत्री बनाए जाने की संभावना है। ज्योतिरादित्य को ऊर्जा मंत्रालय का प्रभार दिया जा सकता है और संसद का बजट सत्र समाप्त होने के बाद कभी केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल, विस्तार संभव है। भाजपा ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ आए विधायकों के साथ कर्नाटक फार्मूले पर आगे बढ़ेगी।
ज्योतिरादित्य समर्थक सभी 22 विधायकों का विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति ने इस्तीफा मंजूर कर लिया है। सूत्र बताते हैं कि ये सभी विधायक अब भाजपा के टिकट पर उप चुनाव के जरिए विधानसभा में चुनकर आएंगे। चुनकर आने के बाद इनमें से नौ विधायकों को मंत्री पद मिल सकता है।