* कोरोना का कारण लोगो को नही आ रही नींद।
(ब्यूरो ,न्यूज़ 1 हिन्दुस्तान )
देहरादून। अवसाद ,नकारात्मक विचार का आना स्वाभाविक प्रक्रिया है। इसी कारण आज लॉक डाउन में दुनिया का अधिकांश भाग अवसाद में जीवन जी रहा है। सभी को अपने-अपने भविष्य की चिंता सता रही है। ऐसा क्यों होता है? क्योकि हम केवल भौतिक प्रगति के ही पीछे भागते जा रहे है। हमने कभी भी रुककर, अपने मन या आत्मा में झांकने का प्रयास नही किया है। मन या आत्मा पर ध्यान न देने के कारण हम अंदर से खालीपन ,अकेलापन का शिकार हो गये है। इससे हम भय,चिंता,निराशा और हताशा का जीवन जी रहे। आज हमारे बुद्धि ने प्रकृति के प्रकोप कोरोना ,कोविड19 के सामने सम्पर्ण कर दिया है। क्योंकि हमने अपने भावनात्मक बुद्धि और आध्यत्मिक बुद्धि के विकास पर ध्यान नही दिया है। इसलिये हम मानसिक रूप से बाह्य परिस्थितियों से लड़ने में अपने को कमजोर महसूस कर रहे है। अतः हमें भावनात्क बुद्धि और आध्यत्मिक बुद्धि के विकास पर बल देना होगा तभी हमारे मानसिक शक्ति में वृद्धि होगी। यह अच्छा अवसर है जब हमारे पास पर्याप्त समय भी है , हमे अपने भीतर झांकने का समय मिला है। क्योंकि अभी तक हमें इसी बात की शिकायत रहती थी कि हमे तो अपने लिये समय ही नही मिलता है। वास्तव में हम,वर्तमान स्वयं पर ध्यान फोकस करके अपना मानसिक बल मजबूत कर सकते है। इसके लिये मानसिक बल के आध्यात्मिक चिंतन, योग प्राणायाम की दिनचर्या अपनाना जरूरी है। प्रश्न है कि हम क्यो नकारात्मक चिंतन में आ जाते है। हमारी अवस्था ,ऊपर -नीचे होने का प्रमुख कारण है – व्यर्थ संकल्प। व्यर्थ संकल्प भी इसलिये है ,क्योकि हमारा मन खाली है । इसलिये मन को सकारात्मक कार्य में व्यस्त करना होगा अथवा समर्थ संकल्प,आध्यत्मिक चिंतन में लगाना होगा।
ऐसा करने पर हम व्यर्थ संकल्प अथवा परिस्थितियों के प्रभाव से बच जाते है।
अपने से आगे जाकर दुसरो के बारे में सोचना सेवा कहलाता है।
नकारात्मक विचार से मुक्ति के लिये,सेवा महत्वपूर्ण आधार है।
सेवा और दुआ हमारे लिये एक प्रकार से लिफ्ट का कार्य करता है।
सेवा न करने के कारण हम कमजो महसूस करते है।
सेवा की विधि द्वारा स्व उन्नति की वृद्धि की सिद्धि प्राप्त करते है। लेकिन स्व सेवा और सर्व की सेवा में बैलेंस जरूरी है। यदि सेवा की भाग दौड़ में बैलेंस न हो तब माया भी बुद्धि की भाग दौड़ करा देती है।
सर्व के पहले स्व की सेवा आवश्यक है।
यह बैलेन्स सदैव स्व में और सेवा में उन्नति कराता रहता है।
सेवा मे स्व और सर्व के सहयोग – सन्तुष्टता का फल प्रत्यक्ष दिखाई देता है।
शुभभावना-श्रेष्ठ कामना रख कर प्राप्ति के सेवा,मेवा का अनुभव कराता है।
यथार्थ सेवा में तपस्या का भाव स्वतः आ जाता है।
जिस सेवा में तपस्या नही है वह केवल नामधारी सेवा है।
सेवा आगे बढ़ने का साधन है, क्योंकि सेवा में बिजी रहने के कारण अन्य बातों से स्वतः किनारा हो जाता है। महान सेवा धारी के हर संकल्प द्वारा सेवा होती रहती है। कहते है कि सेवा दान से स्व का ग्रहण समाप्त हो जाता है।
सेवा में सफलता का आधार – त्याग और तपस्या है,यदि त्याग और तपस्या में कमी होती है तब सेवा में भी कमी होती है।
हमे परिस्थितियों के प्रति धैर्यवान होकर समना करना होगा। वास्तव में
धैर्यता की शक्ति एक गहरी समझ है ।
धैर्यता की शक्ति से अन्य विशेषता स्वतः विकसित होने लगती है।
धर्यता की शक्ति से अन्य विशेषताओ में बैलेंस करने की क्षमता आ जाती है।
धैर्य हीन व्यक्ति एक मिनट में विश्वास करेगा और अगले मिनट उस विश्वास को तोड़ देगा।
लेकिन धैर्यवान व्यक्ति विश्वास करने में देरी जरूर लगाएगा लेकिन एक बार विश्वास कर लेने के बाद विश्वास को बहुत मुश्किल से तोड़ेगा।
मासिक कमजोरी के कारण न हम स्वयं से सन्तुष्ट रहेंगे ,न ही सर्व को सन्तुष्ट कर पाएंगे। इसलिये हमे हर परिस्थिति में सन्तुष्ट रहना होगा।
असन्तुष्ट रहते हुए हम सदैव प्रश्न में रहेंगे कि इतना करते हुए भी कोई काम ,क्यो नही होता है?
मन मे हमेशा यही प्रश्न चलता है कि यह ऐसा क्यों करते है? ऐसा नही बल्कि ऐसा होना चाहिये ऐसा होना चाहिए।
हमे अपने मानसिक मजबूती पर भी बल देना होगा।
मानसिक मजबूती लिये दृढ़ निश्चय रखना होगा।
निश्चय अर्थात किसी स्थति, परिस्थिति में किसी भी प्रकार का विघ्न या संशय न हो।
हमे ऐसी धारणा रखनी होगी कि हमारा सब कुछ चला जाये परन्तु हमारी अवस्था और निश्च्य अटल रहे।
अर्थात कितनी भी परिस्थिति बदले हमारी स्थिति न बदले, क्योकि परिस्थितिया तो बदलती ही रहेंगी। यदि नीव मजबूत है तब आधार की जरूरत नही है। हमारी नीव हमारी साधना है और आधार साधन है। यदि साधना है तब साधन की जरूरत ही नही है। यदि निश्चय अटूट है तब पेपर में आने वाले सीन में हमारा निश्च्य अटल-अडोल रहता है। जो पहले से बता कर आये उसे पेपर नही कहा जा सकता है क्योंकि पेपर तो अचानक आता है। यह तो पेपर निकल गया परन्तु क्या आने वाले पेपर के लिये तैयार है। जो बीत गया,जो बीत रहा है और जो आएगा ,सभी कुछ कल्याणकारी है। एकमत-अन्तर्मुखी-अव्यक्त सम्बन्ध की स्थिति के अभ्यास से हम अचल -अडोल और निश्चय-निश्चित -निश्चिन्त अवस्था मे रहते है।
हमे अपने दृढ़ निश्चय के प्रति अर्जुन बनने का लक्ष्य रखना होगा।
अर्जुन बनने की शर्तें-
1- ऐसा व्यक्ति दूसरो के बारे में चिंतन नही करता कि वह व्यक्ति अर्जुन बन रहा है अथवा भीम।
ऐसा व्यक्ति केवल और केवल अर्जुन ही बनना चाहता है।
2- अर्जुन अर्थात जो ज्ञान का अर्जन कर बिंदु स्वरूप स्मृति में स्थित होकर विजयी बनता है।
3 – गीता ज्ञान से नष्टो -मोहा स्मृति रखकर, मनन करने वाला ही अर्जुन बनता है।
4- अर्जुन बनने के लिये केवल बोलना ही नही बल्कि करना भी होगा।
5- ऐसे व्यक्ति को अपने संकल्प ,बोल और कर्म में नवीनता लानी होगी।
6 – अपनी प्रतिज्ञा को प्रत्यक्षता में लानी होगी।
7- समर्थ बनकर ,व्यर्थ बोल ,कर्म और संकल्प से दूर रहना होगा।
8-सदैव खुश रहकर खुशखबरी सुनानी होगी।
9- मान की इच्छा छोड़कर सदैव स्वमान में स्थित रहना होगा।
( लेखक -मनोज श्रीवास्तव , सहायक निदेशक सूचना,विधानसभा मीडिया सेंटर प्रभारी,नोडल अधिकारी कुम्भ मेला 2021)