Big News Dehradun festival of Diwali is a symbol of victory of light over darkness, truth over falsehood and knowledge over ignorance Slider States Uttarakhand

बड़ी खबर : दीपावली का पर्व अंधकार पर प्रकाश, असत्य पर सत्य और अज्ञान पर ज्ञान की विजय का प्रतीक, आधुनिक युग में दीपावली का बदलता स्वरूप। आखिर कैसे और क्यों ? Tap कर जाने 

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ज्ञान प्रकाश पाण्डेय / राजेन्द्र जोशी। 

 देहरादून।  भारतवर्ष में दीपावली का पर्व अंधकार पर प्रकाश, असत्य पर सत्य और अज्ञान पर ज्ञान की विजय का प्रतीक है। किंतु बदलते समय के साथ इस पावन पर्व का स्वरूप भी निरंतर परिवर्तित हो रहा है। आधुनिकता, उपभोक्तावाद, तकनीकी नवाचार और पर्यावरणीय चुनौतियों ने दीपावली की पारंपरिक आत्मा को नए रंग दे दिए हैं।
परंपरागत दीपावली, सादगी और श्रद्धा का पर्व
दीपावली का पर्व सादगी, आस्था और आत्मिक आनंद का त्योहार थी। लोग मिट्टी के दीए जलाकर, घरों को गोबर और मिट्टी से लीपकर, देवी लक्ष्मी की पूजा करते थे। यह पर्व परिवार और समाज को जोड़ने वाला अवसर होता था। आपसी मेल-जोल, मिठाइयों का आदान-प्रदान और सच्चे स्नेह की अभिव्यक्ति इस उत्सव की पहचान थी।
उपभोक्तावादी समाज में बदलती प्राथमिकताएँ
आज दीपावली आस्था के साथ-साथ एक वाणिज्यिक अवसर बन चुकी है। मॉल, ब्रांड और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म इस पर्व को “बिग सेल” के रूप में पेश करते हैं। पूजा और आत्मचिंतन की जगह अब खरीदारी और प्रदर्शन ने ले ली है वहीं सोशल मीडिया ने भी इस परिवर्तन को और तेज़ किया है। घर की सजावट, परिधानों और उपहारों की तस्वीरें साझा कर लोग एक-दूसरे से “बेहतर दिखने” की प्रतिस्पर्धा में लग गए हैं।
आधुनिक युग में दीपावली का बदलता स्वरूप

 भारतवर्ष में दीपावली का पर्व अंधकार पर प्रकाश, असत्य पर सत्य और अज्ञान पर ज्ञान की विजय का प्रतीक है। किंतु बदलते समय के साथ इस पावन पर्व का स्वरूप भी निरंतर परिवर्तित हो रहा है। आधुनिकता, उपभोक्तावाद, तकनीकी नवाचार और पर्यावरणीय चुनौतियों ने दीपावली की पारंपरिक आत्मा को नए रंग दे दिए हैं।
परंपरागत दीपावली, सादगी और श्रद्धा का पर्व

दीपावली का पर्व सादगी, आस्था और आत्मिक आनंद का त्योहार थी। लोग मिट्टी के दीए जलाकर, घरों को गोबर और मिट्टी से लीपकर, देवी लक्ष्मी की पूजा करते थे। यह पर्व परिवार और समाज को जोड़ने वाला अवसर होता था। आपसी मेल-जोल, मिठाइयों का आदान-प्रदान और सच्चे स्नेह की अभिव्यक्ति इस उत्सव की पहचान थी।
उपभोक्तावादी समाज में बदलती प्राथमिकताएँ
आज दीपावली आस्था के साथ-साथ एक वाणिज्यिक अवसर बन चुकी है। मॉल, ब्रांड और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म इस पर्व को “बिग सेल” के रूप में पेश करते हैं। पूजा और आत्मचिंतन की जगह अब खरीदारी और प्रदर्शन ने ले ली है वहीं सोशल मीडिया ने भी इस परिवर्तन को और तेज़ किया है। घर की सजावट, परिधानों और उपहारों की तस्वीरें साझा कर लोग एक-दूसरे से “बेहतर दिखने” की प्रतिस्पर्धा में लग गए हैं।
कृत्रिम प्रकश से मिलती पर्यावरणीय चुनौतियां

पटाखों और कृत्रिम रोशनी ने दीपों के पर्व ‘दीपावली’ की स्वच्छता को प्रभावित किया है। वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण और ऊर्जा की अत्यधिक खपत से पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। हर वर्ष दीपावली के बाद देश के कई शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक  खतरनाक स्तर तक पहुँच जाता है। ऐसे में “ग्रीन दीपावली” की अवधारणा उभरकर सामने आई है, जहाँ लोग मिट्टी के दीये, पौधों के उपहार और सीमित पटाखों का प्रयोग कर इस पर्व को पर्यावरण के अनुकूल बना रहे हैं।
सामाजिक दृष्टि से बदलता रूप
पहले दीपावली परिवार और समाज को जोड़ने का माध्यम थी। आज डिजिटल युग ने रिश्तों की आत्मीयता को कम कर दिया है। लोग शुभकामना देने के लिए मिलने की बजाय मोबाइल संचार (मोजो) से मात्र संदेश भेजना पर्याप्त समझते हैं। फिर भी, आधुनिक समय ने कुछ सकारात्मक बदलाव भी लाए हैं, अब कई लोग दीपावली को सेवा और दान के माध्यम से मनाने लगे हैं। गरीबों, अनाथालयों और वृद्धाश्रमों में जाकर खुशियाँ बाँटना इस पर्व की आत्मा को नई दिशा दे रहा है।
डिजिटल दीपावली, तकनीक का नया आयाम
तकनीकी युग में दीपावली अब ई-गिफ्ट कार्ड, ऑनलाइन पूजा और वर्चुअल दीयों तक सीमित होती जा रही है। इससे सुविधा तो बढ़ी है, पर पारंपरिक पूजा-पद्धति की आत्मीयता कहीं खोती सी लगती है। बच्चों और युवाओं में वास्तविक सहभागिता घटकर “फोटो और वीडियो शेयरिंग” तक सीमित हो रही है। त्योहार का अनुभव अब अधिक प्रदर्शनमुखी बनता जा रहा है।
संतुलन की आवश्यकता
आधुनिकता का विरोध नहीं, बल्कि संतुलन आवश्यक है। दीपावली का सच्चा संदेश है, अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ना, लोभ और अहंकार से मुक्त होकर ज्ञान और करुणा को अपनाना। यदि हम इस पर्व को सादगी, सेवा और पर्यावरण-संवेदनशीलता के साथ मनाएँ, तो दीपावली पुनः अपने मूल स्वरूप में लौट सकती है।
दीपावली चाहे पारंपरिक हो या आधुनिक, उसका सार वही है, प्रकाश का प्रसार और अंधकार का नाश। आज आवश्यकता है कि  हम दिखावे से ऊपर उठकर इसे प्रेम, करुणा, पर्यावरण-संवेदनशीलता और सामाजिक जिम्मेदारी का त्योहार बनाएं। जब हर घर में दीया जले और हर मन में प्रकाश फैले, तभी दीपावली का असली अर्थ सार्थक होगा।
आधुनिकता का विरोध नहीं, बल्कि संतुलन आवश्यक है। दीपावली का सच्चा संदेश है, अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ना, लोभ और अहंकार से मुक्त होकर ज्ञान और करुणा को अपनाना। यदि हम इस पर्व को सादगी, सेवा और पर्यावरण-संवेदनशीलता के साथ मनाएँ, तो दीपावली पुनः अपने मूल स्वरूप में लौट सकती है।

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