( ब्यूरो ,न्यूज़ 1 हिन्दुस्तान )
देहरादून। उत्तराखण्ड में 70 विधानसभा सीटों पर सोमवार को मतदान समाप्त होने और सभी का भविष्य मतपेटियों बंद होने के बाद पुरे प्रदेश के सियासी हलकों से लेकर आम जनमानस की जुबान पर सिर्फ एक ही सवाल फ़िजा की हवाओं में तैर रहा है कि आखिर किसकी सरकार बनेगी। स्पष्ट जनादेश मिलेगा या 2012 की कहानी दोहराई जाएगी। उत्तराखंड के चुनावी समर में जोर लगाने वाले 632 उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में कैद हो गई है।
इनमें मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत सहित तमाम ऐसे दिग्गज और बड़े नेता हैं, जिनका राजनीतिक भविष्य भी इससे तय होगा। इस बार के चुनाव में पिछले चुनाव के मुकाबले कम प्रत्याशी मैदान में थे। सोमवार को मतदान संपन्न होने के साथ ही सभी प्रत्याशियों का भविष्य भी ईवीएम में कैद हो गया।
इनका राजनीतिक भविष्य भी होगा तय

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी खटीमा विधानसभा से 2017 में नजदीकी मुकाबले में जीते थे। इस बार बतौर मुख्यमंत्री उनके नेेतृत्व में भाजपा ने चुनाव लड़ा है। अब दस मार्च को नतीजे आने के बाद तय होगा कि धामी का राजनीतिक भविष्य कैसा बदलाव लाएगा।
2017 के चुनाव में दोनों चुनाव हार गए थे हरीश रावत

लालकुआं से कांग्रेस के उम्मीदवार और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का भविष्य ईवीएम में कैद हो गया है। 2017 के चुनाव में वह दोनों चुनाव हार गए थे। इस बार उनकी अगुवाई में चुनाव लड़ा गया है। अब उनकी अपनी जीत और पार्टी की जीत पर उनका भविष्य भी काफी हद तक निर्भर करेगा।
अनुपमा रावत, कांग्रेस प्रत्याशी हरिद्वार ग्रामीण

भाजपा की मजबूत सीट मानी जाने वाली हरिद्वार ग्रामीण सीट से 2017 के चुनाव में पूर्व सीएम हरीश रावत को हार मिली थी। यतीश्वरानंद को चुनौती देने वाली अनुपमा का यह पहला विधानसभा चुनाव है। इस चुनाव के नतीजे निश्चित तौर पर अनुपमा के राजनीतिक कॅरियर को नई दिशा देंगे।
ऋतु खंडूड़ी भूषण, भाजपा प्रत्याशी कोटद्वार

2017 में यमकेश्वर से विधायक चुनी गई पूर्व सीएम जनरल बीसी खंडूड़ी की बेटी ऋतु खंडूड़ी को पार्टी ने कोटद्वार से टिकट दिया था। उनका मुकाबला पूर्व मंत्री और कांग्रेस के मजबूत प्रत्याशी सुरेंद्र सिंह नेगी से है। ऋतु उसी सीट से मैदान में हैं, जहां सुरेंद्र नेगी ने उनके पिता जनरल बीसी खंडूड़ी को हराया था। दस मार्च को आने वाले नतीजे ऋतु के राजनैतिक कॅरियर को नई दिशा देंगे।
किशोर उपाध्याय ने चुनाव से ठीक पहले थामा भाजपा का दामन

उत्तराखंड के चार विधानसभा चुनावों में से तीन बार नरेंद्रनगर विधानसभा सीट पर सुबोध उनियाल ने जीत दर्ज की। 2002 के पहले चुनाव, 2012 और फिर 2017 में सुबोध जीते। इस बार उनके सामने 2007 में इसी सीट पर यूकेडीडी से विधायक रहे ओम गोपाल रावत मैदान में हैं। कांग्रेस ने उन्हें प्रत्याशी बनाया है। मुकाबला कड़ा है। दस मार्च को सुबोध उनियाल का भविष्य भी खुलेगा।
मिथक रहा है कि जो भी शिक्षा मंत्री बनता है, वह अगला चुनाव नहीं जीतता

उत्तराखंड के विधानसभा चुनाव में एक मिथक यह रहा है कि जो भी शिक्षा मंत्री बनता है, वह अगला चुनाव नहीं जीतता। 2002 में कांग्रेस के टिकट से पौड़ी चुनाव जीतने वाले नरेंद्र सिंह भंडारी शिक्षा मंत्री बने लेकिन 2007 के चुनाव में पौड़ी सीट पर तीसरे नंबर पर रहे। 2007 में मदन कौशिक शिक्षा मंत्री बने लेकिन 2012 में भी वह जीते। इसके बाद 2012 में देवप्रयाग सीट से निर्दलीय चुनाव जीतने वाले मंत्री प्रसाद नैथानी को कांग्रेस सरकार ने शिक्षा मंत्री बनाया। लेकिन 2017 के चुनाव में देवप्रयाग सीट से वह हार गए। अब 2017 के चुनाव में अरविंद पांडेय को शिक्षा मंत्री बनाया गया था। 10 मार्च को ही स्पष्ट होगा कि शिक्षा मंत्री के चुनाव हारने का मिथक चलेगा या टूटेगा।
धन सिंह रावत ने इन पांच साल में खूब नाम कमाया

2017 में श्रीनगर से पहली बार विधानसभा पहुंचने वाले डॉ. धन सिंह रावत ने इन पांच साल में खूब नाम कमाया। पहले राज्यमंत्री और फिर कैबिनेट मंत्री होने के साथ ही उनके पास उच्च शिक्षा और स्वास्थ्य जैसा अहम विभाग रहा। इस बार श्रीनगर सीट पर उनका सामना कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल से होना है। अब यह देेखने वाली बात होगी कि नतीजा क्या आएगा।

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