( सुनील तनेजा / ज्ञान प्रकाश पाण्डेय )
देहरादून / नई दिल्ली। कांग्रेस के लिए कल तक पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत जहा बागी के रूप में देखे जा रहे थे वही अब पार्टी की राजनीतिक जमीन को हर-भरा बनाने के लिए काम करेंगे। उनकी वापसी से होने वाले नफा-नुकसान का गुणा-भाग करने के बाद ही कांग्रेस पार्टी में उनकी एंट्री हुई है। ऐसे में पार्टी हरक के प्रभाव वाली गढ़वाल संसदीय क्षेत्र की सभी सीटों पर उन्हें बतौर स्टार प्रचारक मैदान में उतार सकती है।
भाजपा पर सियासी हमला करने के लिए हरक सिंह पार्टी के लिए तुरूप का इक्का साबित हो सकते हैं। भाजपा से निष्कासित होने के पांच दिन बाद कांग्रेस पार्टी में एंट्री के साथ ही हरक सिंह रावत को पार्टी में लिए जाने से होने वाले नफा-नुकसान को लेकर भी बहस शुरू हो गई है। वर्ष 2016 की घटना के बाद जिस तरह से पूर्व सीएम हरीश रावत और हरक सिंह रावत के बीच जुबानी जंग चली, उससे उनकी पार्टी में पुन: एंट्री को लेकर तमाम तरह के कयास लगाए जा रहे थे। लेकिन अब उनकी पार्टी में वापसी के बाद यह भी तय हो गया है कि कांग्रेस हरक सिंह रावत के सियासी रूतबे को अपनी खोई सियासी जमीन को वापस पाने के लिए बखूबी इस्तेमाल करेगी।
आठ सीटों पर मजबूत पकड़
हरक सिंह रावत की गढ़वाल संसदीय क्षेत्र की आठ सीटों पर मजबूत पकड़ मानी जाती है। राज्य बनने के बाद लैंसडौन, रुद्रप्रयाग और कोटद्वार से वह विधायक रह चुके हैं। इन सीटों के अलावा रुद्रप्रयाग, केदारनाथ, पौड़ी, श्रीनगर और चौबट्टाखाल क्षेत्र में उनकी अच्छी पैठ मानी जाती है। श्रीनगर उनका घर भी है तो छात्र राजनीति की शुरूआत भी हरक ने यहीं से की।
हरक सिंह रावत वर्ष 2002 में कांग्रेस के टिकट पर लैंसडौन सीट से जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। इसी सीट पर उन्होंने वर्ष 2007 के चुनाव में भी जीत दर्ज की। इसके बाद वर्ष 2012 के चुनाव में सीट बदलकर वह रुद्रप्रयाग जा पहुंचे। यहां भी उन्होंने अपनी सियासी धमक जारी रखते हुए जीत दर्ज की। वर्ष 2016 की बगावत के बाद उन्होंने फिर सीट बदलते हुए वर्ष 2017 का चुनाव कोटद्वार से भाजपा के टिकट पर लड़ा और जीत दर्ज की।
इससे पहले वह वर्ष 1991 और 1993 में पौड़ी सीट से भाजपा के टिकट पर जीत दर्ज कर चुके हैं। उस दौरान वह कल्याण सिंह सरकार में सबसे कम उम्र के मंत्री बने। उन्होंने 31 साल पहले अपना सियासी सफर भाजपा से ही शुरू किया था। राज्य बनने के बाद वह तीन सरकारों में कैबिनेट मंत्री रहे और पांच साल नेता प्रतिपक्ष भी रहे।
माना जा रहा है कि हरक की पार्टी में एक टिकट (उनकी पुत्रवधू के लिए) की शर्त पर एंट्री हुई। इसके साथ ही यह भी कहा गया है कि वह पूरे प्रदेश विशेषकर गढ़वाल की सभी सीटों पर पार्टी के लिए प्रचार करेंगे। पार्टी जानती है हरक सिंह के समर्थक भाजपा-कांग्रेस दोनों ही पार्टियों में हैं। जिनको वह पार्टी के लिए वोट में तब्दील करना चाहती है।
राज्य बनने से पहले से है हरक की सियासी हनक
श्रीनगर में छात्र जीवन से ही राजनीति में कदम रखने वाले हरक सिंह रावत ने 1989 में पौड़ी सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा। उन्हें जीत नहीं मिली, लेकिन 1991 चुनाव में वह पौड़ी सीट से ही चुनाव जीत कर पहली बार विधायक बने। तब मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने उन्हें पर्यटन राज्य मंत्री बनाया। 1993 चुनाव में भी वह पौड़ी से जीते।
1996 में वे भाजपा छोड़ बसपा में शामिल हो गए, तब तत्कालीन सीएम मायावती ने पर्वतीय विकास परिषद में उपाध्यक्ष बनाया। एक महीने बाद ही वे उत्तर प्रदेश खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड और महिला और बाल विकास बोर्ड के अध्यक्ष बनाए गए। रावत उत्तर प्रदेश बसपा के महामंत्री के साथ ही उत्तराखंड इकाई के अध्यक्ष भी रहे हैं। 1998 चुनाव में वह बसपा के टिकट से पौड़ी गढ़वाल सीट पर जीत नहीं दर्ज कर पाए। इसके बाद उन्होंने कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली।
हरीश और कांग्रेस को उज्याडू बैल स्वीकार : भाजपा
भाजपा से निकाले गए पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत के कांग्रेस में शामिल होने पर भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता सुरेश जोशी ने निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि हरीश रावत हरक सिंह को उज्याडू बैल कहकर कोसते थे, आज वही उन्हें स्वीकार है। उन्होंने कहा कि गलत बयानी के लिए हरीश रावत को सार्वजनिक माफी मांगनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि कल तक सार्वजनिक और मीडिया मंचों पर उनकी पोल खोलने वाले हरक को पार्टी में शामिल करने का तो यही अर्थ है कि उन्हें वह सभी आरोप स्वीकार हैं। कल तक हरीश रावत उनको लोकतंत्र का हत्यारा बताते हुए पानी पी-पी कर अनेकों अलंकारों से सुशोभित कर रहे थे। आज उनको और कांग्रेस को वही उज्याडू बैल स्वीकार है।
उन्हें जनता के सामने अपने इस हृदय परिवर्तन के कारणों को स्पष्ट करना चाहिए अन्यथा जनता से गलतबयानी के लिए सार्वजनिक माफी मांगनी चाहिए। इस सारे प्रकरण के बाद जनता में भी उनकी पोल खुल गई है और न केवल हरीश रावत और बल्कि किसी भी कांग्रेस नेता की बातों पर भरोसा नहीं किया जा सकता। इसलिए उनका सकारात्मक वोट प्रदेश में भाजपा की पुन: सरकार बनाने के पक्ष में पड़ने वाला है।