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हिदी साहित्य सम्मेलन-प्रयाग के 72वें अधिवेशन : हिंदी को सर्वमान्य भाषा बनाने को सोलन में जुटे हिंदी सेवी। आखिर क्या कहा हिमाचल राज्यपाल ने ? जाने 

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*  साहित्य अकादमी के पूर्व सदस्य डॉ योगेंद्र नाथ शर्मा अरुण,प्रसिद्ध कवि सोम ठाकुर, माधव कौशिक, डॉ. जयप्रकाश  को सम्मेलन की सर्वोच्च उपाधि साहित्य वाचस्पति से सम्मानित किया।
(डॉ श्रीगोपाल नारसन)
सोलन।
हिमाचल के सोलन में आयोजित हुए तीन दिवसीय हिदी साहित्य सम्मेलन-प्रयाग के 72वें अधिवेशन एवं परिसंवाद कार्यक्रम में देशभर से आए कई सौ हिंदी विद्वानों की उपस्थिति में  अस्सी हिंदी सेवियों ने अपने शोध लेख प्रस्तुत कर हिंदी को देश की सर्वमान्य भाषा बनाये जाने की खुलकर पैरवी की।हिमाचल के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री एवं साहित्यकार शांता कुमार ,साहित्य अकादमी के पूर्व सदस्य डॉ योगेंद्र नाथ शर्मा अरुण,प्रसिद्ध कवि सोम ठाकुर, माधव कौशिक, डॉ. जयप्रकाश  को सम्मेलन की सर्वोच्च उपाधि साहित्य वाचस्पति से सम्मानित किया।  


राज्यपाल दत्तात्रेय ने पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार की पत्नी संतोष शैलजा, भाषा कला एवं संस्कृति विभाग के पूर्व निदेशक डॉ. प्रेम शर्मा ,विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ के उपकुलसचिव श्रीगोपाल नारसन, दैनिक ट्रिब्यून के वरिष्ठ उपसम्पादक अरुण नैथानी, हरियाणा अभिलेखागार विभाग की उपनिदेशक रही राजवंती मान सहित अन्य कई विभूतियों को सम्मेलन सम्मान से विभूषित किया। इस अवसर पर डॉ. गरिमा सिंह के उपन्यास ख्वाहिशें अपनी-अपनी व कृष्ण मुरारी अग्रवाल की पुस्तक भाषा प्रवाह का विमोचन भी किया गया। हिमाचल के राज्यपाल बंडारू  दत्तात्रेय ने कहा कि विश्व का प्रत्येक देश मातृभाषा को अपनी पहचान के रूप में परिभाषित करता है। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी सीखना भी आवश्यक है, लेकिन अंग्रेजी के लिए हमें अपनी राजभाषा को नहीं भूलना चाहिए। विश्व के 132 से भी अधिक देशों में हिंदी भाषा विद्यमान है। इस दिशा में हिंदी सिनेमा का महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने कहा कि हिंदी की शब्द संपदा 10 हजार शब्दों से भी अधिक है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विश्व में हिंदी के दूत बनकर उभरे हैं। उन्होंने आग्रह किया कि विश्व की विभिन्न तकनीकों को हिंदी के माध्यम से देश के जन-जन तक पहुंचाया जाना चाहिए।पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार ने कहा कि लेखन की पीड़ा भी प्रसव की पीड़ा की तरह ही है जो साहित्य सृजन के साथ ही शांत होती है। उन्होंने कहा कि हिंदी ही हमारा सम्मान है और इस सम्मान की रक्षा हम सभी का कर्तव्य है। आज हम सभी को यह प्रण लेना होगा कि मातृभाषा एवं राजभाषा हिंदी को जीवन का अभिन्न अंग बनाएंगे और हिंदी भाषी राज्य में कम से कम विवाह के निमंत्रण पत्र हिंदी में मुद्रित करेंगे। उन्होंने कहा कि यही इस सम्मेलन की सफलता होगी। शांता कुमार ने कहा कि वे प्रधानमंत्री से आग्रह करेंगे कि संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को उसका उच्च स्थान मिले और हिंदी वास्तविक अर्थों में देश की राजभाषा बने।महामना मदन मोहन मालवीय द्वारा स्थापित हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग
देशव्यापी व्यवहारों और कार्यों में सहजता लाने के लिए राष्ट्रलिपि देवनागरी और राष्ट्रभाषा हिन्दी का प्रचार करती है।उसके द्वारा किये जा रहे कार्यों में हिन्दीभाषी प्रदेशों में सरकारी तन्त्र, सरकारी, अर्द्धसरकारी, गैर सरकारी निगम, प्रतिष्ठान, कारखानों, पाठशालाओं, विश्वविद्यालयों, नगर-निगमों, व्यापार और न्यायालयों तथा अन्य संस्थाओं, समाजो, समूहों में देवनागरी लिपि और हिन्दी का प्रयोग कराने का प्रयत्न करना,हिन्दी साहित्य की श्रीवृद्धि के लिए मानविकी, समाजशास्त्र, वाणिज्य, विधि तथा विज्ञान और तकनीकी विषयों की पुस्तकें लिखवाना और प्रकाशित करना,हिन्दी की हस्तलिखित और प्राचीन सामग्री तथा हिन्दी भाषा और साहित्य के निर्माताओं के स्मृति-चिह्नों की खोज करना और उनका तथा प्रकाशित पुस्तकों का संग्रह करना,अहिन्दीभाषी प्रदेशों में वहाँ की प्रदेश सरकारों, बुद्धिजीवियों, लेखकों, साहित्यकारों आदि से सम्पर्क करके उन्हें देवनागरी लिपि में हिन्दी के प्रयोग के लिए तथा सम्पर्क भाषा के रूप में भी हिन्दी के प्रयोग के लिए प्रेरित करना,हिन्दीतर भाषा में उपलब्ध साहित्य का हिन्दी में अनुवाद करवाने और प्रकाशन करने के लिए हर सम्भव प्रयत्न करना और ग्रन्थकारों, लेखकों, कवियों, पत्र-सम्पादकों, प्रचारकों को पारितोषिक, प्रशंसापत्र, पदक, उपाधि से सम्मानित करना है।
अखिल भारतीय स्तर पर हिंदी की तात्कालिक समस्याओं पर विचार करने के लिए देश भर के हिंदी के साहित्यकारों और प्रेमियों के प्रथम सम्मेलन की अध्यक्षता महामना पण्डित मदनमोहन मालवीय ने की थी। इस अधिवेशन में यह निश्चय हुआ था कि  हिंदी के साहित्यकारों का सम्मेलन प्रतिवर्ष किया जाए, जिससे हिंदी की उन्नति के प्रयत्नों के साथ साथ उसकी कठिनाइयों को दूर करने का भी उपाय किया जाए। सम्मेलन ने इस दिशा में अनेक उपयोगी कार्य किए। उसने अपने वार्षिक अधिवेशनों में जनता और शासन से हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में अपनाने के संबंध में विविध प्रस्ताव पारित किए और हिंदी के मार्ग में आनेवाली बाधाओं को दूर करने के भी उपाय किए।  महात्मा गांधी इसके दो बार सभापति हुए। महात्मा गांधी के प्रयत्नों से अहिंदीभाषी प्रदेशों में इस संस्था के द्वारा हिंदी का व्यापक प्रचार हुआ।  पुरुषोत्तमदास टंडन सम्मेलन के प्रथम प्रधान मंत्री थे। उन्हीं के प्रयत्नों से इस संस्था की इतनी उन्नति हुई।
हिंदी साहित्य सम्मेलन की शाखाएँ देश के निम्नलिखित राज्यों में हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, पंजाब, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र तथा बंगाल। अहिंदीभाषी प्रदेशों में कार्य करने के लिए इसकी एक शाखा वर्धा में भी है, जिसका नाम “राष्ट्रभाषा प्रचार समिति” है। इसके कार्यालय महाराष्ट्र, बंबई, गुजरात, हैदराबाद, उत्कल, बंगाल तथा असम में हैं। हिंदी साहित्य सम्मेलन और उसकी प्रादेशिक शाखाओं द्वारा हिंदी का जो सार्वदेशिक प्रचार हुआ, उसके परिणामस्वरूप देश की स्वतंत्रता के आंदोलन के साथ साथ हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार किए जाने का आंदोलन तीव्रतर हुआ लेकिन स्वतंत्रताप्राप्ति के बाद भारतीय संविधान में हिंदी को राष्ट्रभाषा का सम्मान आज तक नही दिया गया।जिसके लिए सम्मेलन में एक स्वर से हिंदी को सर्व मान्य भाषा के रूप में स्वीकारने,हिंदी को राजभाषा बनाने और हिंदी को समर्द्ध करने का संकल्प लिया गया।
इस अवसर पर विधायक डॉ. कर्नल धनीराम शांडिल, पूर्व शिक्षा मंत्री डॉ. राधा रमण शास्त्री,सम्मेलन के सभापति प्रोफेसर सूर्य प्रसाद दीक्षित, सम्मेलन के प्रधानमंत्री विभूति मिश्र,यथावत के सम्पादक प्रभात ओझा,राजेंद्र उपाध्याय, डॉ सुरेखा, आदि उपस्थित रहे।

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