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उत्तराखण्ड में राजनैतिक सियासत : किसी भी सरकार में कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए हरक सिंह रावत। आखिर क्यों ? Tap कर जाने 

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( ब्यूरो ,न्यूज़ 1 हिन्दुस्तान )
देहरादून। उत्तराखण्ड में सियासी पारे को गरमाने वाले भाजपा से बर्खास्त हरक सिंह रावत का भले कांग्रेस में वापसी हो गई है पर इस बीच उनके सरकारों में कार्यकाल को लेकर चली आ रही परम्परा फिर एक बार पुख्ता हो गई है। जी हाँ ,मामला है हरक सिंह रावत किसी भी सरकारों में अपना कार्यकाल पूरा नहीं करने का है। 

पहली बार 1991 में बने थे मंत्री
हरक सिंह रावत अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय में वर्ष 1991 में पौड़ी विधानसभा सीट से चुनाव लड़कर विधायक बने। वह उस वक्त भाजपा में थे। प्रदेश में कल्याण सिंह की सरकार बनी, जिसमें उन्हें पर्यटन राज्यमंत्री की जिम्मेदारी मिली। इसी दौरान राम मंदिर आंदोलन के बीच बाबरी मस्जिद विध्वंस के कारण कल्याण सिंह को इस्तीफा देना पड़ा। इस तरह हरक मंत्री के तौर पर अपना पहला ही कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए।

एनडी तिवारी सरकार में त्यागना पड़ा मंत्री पद
राज्य में 2002 के चुनाव में पहली सरकार कांग्रेस की बनी। इसमें मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने हरक को राजस्व, खाद्य और आपदा प्रबंधन जैसे मंत्रालयों में कैबिनेट मंत्री की जिम्मेदारी दी। मंत्री बनने के करीब डेढ़ साल बाद ही एक महिला ने उन पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया, जिसके बाद उन्हें मंत्री पद त्यागना पड़ा। इस तरह मंत्री के तौर पर हरक दूसरा कार्यकाल भी पूरा नहीं कर पाए।

2012 में कांग्रेस की सरकार आई और विजय बहुगुणा मुख्यमंत्री बने। इस सरकार में हरक को कृषि, चिकित्सा शिक्षा और सैनिक कल्याण विभागों के साथ कैबिनेट मंत्री बनाया गया। विजय बहुगुणा को कांग्रेस ने हटाकर हरीश रावत को मुख्यमंत्री बना दिया।
इसमें हरक का मंत्री पद बरकरार रहा। लेकिन हरीश रावत से हुई अनबन के बाद उन्होंने 4 साल बाद यानी 2016 में अधूरे कार्यकाल में ही कांग्रेस से बगावत कर भाजपा का दामन थाम लिया। इस बार भी मंत्री के तौर पर कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए।

2017 के चुनाव में हरक ने भाजपा के टिकट से चुनाव जीता। उन्हें भाजपा में त्रिवेंद्र सरकार में वन, पर्यावरण संरक्षण, श्रम, कौशल विकास-सेवायोजन, आयुष, आयुष शिक्षा के साथ पर्यावरण मंत्री बना गया। इसके बाद तीरथ और फिर धामी सरकार में हरक को ऊर्जा विभाग भी सौंप दिया गया। कैबिनेट मंत्री के तौर पर उन्होंने काम किया। 10 मार्च को चुनाव के नतीजे आने हैं लेकिन हरक भाजपा की इस सरकार में भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए हैं। भाजपा ने उन्हें पहले ही निष्कासित कर दिया।
भाजपा से अपनी राजनीति की शुरुआत करने वाले हरक ने मनमुटाव होने के बाद 1996 में भाजपा छोड़ दी। उन्होंने बसपा का दामन थामा। बसपा सुप्रीमो मायावती ने उन्हें कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां दीं। वह यहां ज्यादा समय नहीं रुके और 1998 में उन्होंने फिर कांग्रेस का दामन थाम लिया। उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद 2002 के पहले चुनाव में उन्होंने लैंसडोन से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा।

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