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प्रकृति की मार झेलने वाले रैणी गाँव प्रकृति की मार के साथ साथ प्रसाशन की मार भी खा रहा है,जबकि उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने उनपर लगाया 10 -10 हज़ार का जुर्माना। आखिर क्यों ? Tap कर जाने

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( मानसी जोशी )
चमोली।
उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित रैणी गाँव एक बार फिर प्रकृति की मार खा रहा है। या ये कहना ज्यादा सटीक होगा की प्रकृति की मार के साथ साथ आज ये ऐतिहासिक गाँव प्रसाशन की मार भी खा रहा है। उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आर एस चौहान व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने रैणी तपोवन आपदा प्रभावितों की ओर से उच्च न्यायलय में दायर याचिका को ख़ारिज कर दिया है। इस याचिका को न केवल खारिज किया गया बल्कि याचिकर्ताओं के ऊपर 10 -10 हज़ार रुपयों का जुरमाना भी लगा दिया गया।


याचिकाकर्ताओं में पूर्व बीडीसी मेंबर संग्राम सिंह, वल्ली रैणी के ग्राम प्रधान भवान सिंह, चिपको आंदोलन की नेत्री गौरा देवी के पोते सोहन सिंह राणा, जोशीमठ के भापका माले के राज्य कमिटी सदस्य अतुल सती और जोशीमठ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमल रतूड़ी शामिल थे। इस याचिका में ऋषि गंगा और तपोवन विष्णुगाड़ जलविद्युत परियोजना के लिए वन और पर्यावरण मंजूरी को रद्द करने की मांग करी गयी थी। साथ ही इस याचिका में जिन कंपनियों की लापरवाही के चलते 7 फरवरी 2021 को 200  से ज्यादा लोगों की मौत हो गयी थी उन मौतों की जिम्मेदारी लेने की मांग की गयी थी। आपदा के बाद रैणी गाँव की भौगोलिक स्तिथि बदलने के कारण परियोजनाओं की रद्द करने की मांग की गयी थी। आपदा के समय परियोजना के चलते जान गवाने वाले मजदूरों के लिए मुआवजे की मांग की गयी थी।
 संग्राम सिंह ने बताया कि जब वे अपने साथियों के साथ न्यायालय पहुंचे और उन्होंने अपने याचिका पर विचार करने की मांग की तो उनकी याचिका पर ध्यान ही नहीं गया साथ ही सुनवाई के दौरान एनटीपीसी के अधिवक्ता डॉ कार्तिकेय गुप्ता ने कहा की तपोवन विष्णुगाड़ उत्तराखंड और एनटीपीसी के लिए बेहद महत्वपूर्ण है और प्रोजेक्ट हमेशा पर्यावरण मंजूरी के साथ काम करता है। जिसके बाद न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं को अविश्वसनीय बताकर उनकी याचिका को खारिज कर दिया और उनके ऊपर जुर्माना भी लगा दिया।


याचिकाकर्ता संग्राम सिंह का कहना है कि इस प्रकार के हाइड्रो प्रोजेक्ट शुरूआती दौर से ही प्रकृति के लिए हानिकारक रहे है साथ ही ऐसे प्रोजेक्ट्स में पर्यावरणीय नियमों की अनदेखी होती रही है। इसलिए इन परियोजनाओं को रद्द करने की मांग काफी समय से की जा रही थी । लेकिन याचिका को ख़ारिज कर दिया गया। संग्राम सिंह कहते है कि आने वाले कुछ दिनों में वे इस पर न्यायालय से पुनर्विचार की मांग करेंगे और यदि इसके बाद भी न्यायालय से उनको मदद नहीं मिली तो वे सर्वोच्च न्यायालय का द्वार भी खटखटाएंगे। इससे पहले भी रैणी गाँव के निवासियों ने कई बार न्यायालय में याचिका दायर की थी जिसमे उन्होंने इस परियाजनाओं के कारण रैणी गाँव में होने वाले अवैध खनन और पर्यावरण को नुकसान पहुंचने जैसी शिकायतों को दायर किया था  पर  इसका कोई भी परिणाम नहीं निकला। उलटा जिस कंपनी की शिकायत लेकर वो न्यायालय पहुंचे थे उस कंपनी ने उन पर ही शांति भांग करने का आरोप लगा दिया था।


क्या हुआ था आपदा के बाद
7 फरवरी 2021  को उत्तराखंड के चमोली जिले में बसे रैणी गाँव के ठीक नीचे बहने वाली ऋषिगंगा नदी ने ग्लेशियर के काटने के कारण रौद्र रूप ले लिया था। जिसके बाद एक भयानक बाढ़ आई और अपने साथ ऋषिगंगा नदी पर बने ऋषिगंगा हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट और तपोवन पावर प्रोजेक्ट में काम करने वाले सैकड़ो मजदूरों को अपने साथ बहा कर ले गयी। सरकारी आकड़ों की माने तो इस जलप्रलय में 205 लोग लापता हो गए थे जिसमे से 77 लोगों के शव बरामद कर लिए गए और 128 लोग अभी भी लापता हैं।
ऋषि गंगा नदी का बहाव इतना तेज़ था कि नदी कि ऊपर स्थित रैणी गाँव के निचले हिस्से में मिट्टी का कटाओ होने लगा था। ऋषि गंगा नदी के ऊपरी भाग पर स्थित रैणी गाँव के लोगों के सर पर भूस्खलन खतरा मंडराने लगा था। गाँव वालों को डर था कि आपदा के बाद, बरसात के महीने में उन्हें भूस्खलन जैसे भयानक घटना का सामना करना पड़ सकता है।

( फाइल फोटो )


अब बरसात का महीना आते ही रैणी गाँव के लोगों के अंदर का डर सच हो गया। पिछले 20 -25  दिनों में हुई बरसात के कारण ऋषिगंगा नदी का स्तर बढ़ गया जिसके कारण वल्ली रैणी में मिट्टी का कटाव हो गया है और वल्ली रैणी में स्थित प्राथमिक विद्यालय रैणी, बरसात के पानी में बह गया। इतना ही नहीं, बरसात के कारण रैणी गाँव को आपस में जोड़ने वाला एक रास्ता भी क्षतिग्रस्त हो गया। हलाकि अभी गाँव वालों के पास आवा जाही के लिए दूसरा रास्ता हैं। पर सबसे ज्यादा दुखद बात यह रही कि रैणी गाँव कि पहचान, चिपको आंदोलन को जिस मार्ग से शुरू किया गया था वो मार्ग पूरी तरह से क्षतिग्रश हो गया। गाँव वालों का कहना हैं कि, गौरा देवी ने इसी मार्ग से चिपको आंदोलन को शुरू किया था। जिसके बाद उस मार्ग का नाम “चिपको आंदोलन पथ” रख दिया गया था। चिपको आंदोलन की शुरुआत करने वाली नेत्री गौरा देवी के नाम पर रैणी गाँव में गौरा देवी म्यूजियम भी बरसाती पानी में बह गया। म्यूजियम में गौरा देवी के वस्त्र उनके गहने और कुछ किताबें थी । बरसात के कारण रैणी गाँव के लगभग कई  मकानों में भी दरार आ चुकी है।  जिसमे रहने वाले लगभग 55 परिवार प्रभावित हुए है । जिसके कारण गाँव वालों को डर है कि अगर यही स्थिति  बनी रही तो भूस्खलन हो सकता है। उन्हें डर है कि यदि कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो उनके मकान जल्द ही किसी हादसे का शिकार बन सकते हैं। लेकिन उन्हें प्रसाशन से किसी भी प्रकार की मदद नहीं मिल रही है।
इससे पहले  2 जून 2021 को रैणी गाँव के एक निवासी सोहन सिंह ने  इसी खतरे कि शिकायत मुख्यमंत्री हेल्पलाइन नंबर 1905 पर की लेकिन उन्हें वहां से यह जवाब मिला कि पहले आप प्रसाशन को अपनी शिकायत दर्ज करवाए उसके बाद हमसे संपर्क करें। जिसके बाद उन्होंने चमोली जिले के उपजिलाधिकारी को एक पत्र लिखकर शिकायत की । जिसमे उन्होंने रैणी गाँव में भूस्खलन के खतरे का जिक्र किया पर आज तक उन्हें प्रसाशन से कोई भी मदद नहीं मिली।
बरसात के कारण पहाड़ी क्षेत्रों कि मिट्टी कमज़ोर होने लगती हैं जिसके कारण भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता हैं। एक हल्का सा भूस्खलन भी इन इलाकों में किसी कि जान लेने के लिए काफी हैं। नंदादेवी नेशनल पार्क के अंदर स्थित रैणी गाँव जिस हिस्से में आता है वह काफी संवेदनशील हिस्सा हैं। जिसमे भूस्खलन जैसी घटनाये थोड़ी सी लापरवाही के कारण हो सकती हैं। यही खतरा अभी रैणी गाँव को भी है। चिपको आंदोलन जैसी आग को जन्म देने वाला ये गाँव आज प्रसाशन के सामने लाचार है। गाँव वालों ने पहले प्रकृति की मार खायी अब वो प्रसाशन की मार भी खा रहे है। ऐसे में गाँव वालों का सर्वोच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाना अत्यधिक आवश्यक है।

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