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पितरो के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने के दिन होते हैं श्राद्ध पक्ष। आखिर क्यों ? जाने 

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-श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन श्रद्धालुओं ने श्रवण की कथा

( ब्यूरो ,न्यूज़ 1 हिन्दुस्तान )
हरिद्वार।
पितरों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने के दिन होते हैं श्राद्धपक्ष। श्राद्धपक्ष के सोलह दिनों में मनुष्य अपने मृत पूर्वजों की संतुष्टि के लिए तर्पण, पिंडदान, अन्न्दान, वस्त्रदान आदि तरह के दान करते हैं। ताकि पितृ प्रसन्न् होकर अच्छे आशीर्वाद प्रदान करें। लेकिन अधिकांश लोगों को पता नहीं होता है कि श्राद्धपक्ष के दौरान क्या करना चाहिए और क्या नहीं। अनजाने में वे ऐसे कार्य कर जाते हैं जो इस दौरान करना निषेध होते हैं। कुछ काम ऐसे होते हैं जिन्हें पितरों के नाम से जरूर करना चाहिए। यह विचार कथाव्यास महंत केशवानंद महाराज ने श्रीमद्भागवत के मध्य व्यक्त किये।


उत्तरी हरिद्वार के रामगढ़ स्थित श्री गरीबदास परमानंद आश्रम में श्रीमद्भागवत के दूसरे दिन भगवान श्रीकृष्ण के भजनों पर श्रद्धालु जमकर झूमे। इससे पूर्व कथा श्रवण कराते हुए कथाव्यास महंत केशवानंद महाराज ने कहा कि श्राद्धकर्म से पितृगण के साथ देवता भी तृप्त होते हैं। श्राद्ध-तर्पण हमारे पूर्वजों के प्रति हमारा सम्मान है। इसी से पितृ ऋण भी चुकता होता है। श्राद्ध के 16 दिनों में अष्टमुखी रुद्राक्ष धारण करें। इन दिनों में घर में 16 या 21 मोर के पंख अवश्य लाकर रखें। शिवलिंग पर जल मिश्रित दुग्ध अर्पित करें। घर में प्रतिदिन खीर बनाएं। भोजन में से सर्वप्रथम गाय, कुत्ते और कौए के लिए ग्रास अलग से निकालें। माना जाता है कि यह सभी जीव यम के काफी निकट हैं। श्राद्ध पक्ष में व्यसनों से दूर रहें। पवित्र रहकर ही श्राद्ध किया जाता है। श्राद्ध पक्ष में शुभ कार्य भी वर्जित माने गए हैं। इस दौरान मुख्य यजमान राहुल गिरि, पत्नी टिंकल शर्मा, सोनू गिरि, टीना देवी, बाला देवी, प्रीति देवी ने परिवार सहित व्यासपीठ की पूजा अर्चना की।

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