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न्यूजीलैंड में शिवम की हत्या से ग़मज़दा उत्तराखंड। आखिर क्यों ? जाने 

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(श्रीगोपाल नारसन )

रूड़की। कुछ अच्छा करने की चाह,कुछ अच्छा बनने की चाह किसमे नही होती।विशेष कर जब कैरियर की दिशा और दशा तय होनी हो।हर मां बाप अपने लाडलो को इसी लिए स्कूल,कालेज से लेकर विश्वविद्यालय तक भेजते है और ऊंची उड़ान के लिए विदेश तक भेजते है कि लाडलो का भविष्य उज्ज्वल हो सके।लेकिन जब उज्ज्वल भविष्य के बजाए लाडलो का जीवन ही मौत के आगोश में जाने लगे तो दिल दहलना स्वाभाविक है।रुड़की के जाने माने साहित्यकार डॉ योगेंद्र नाथ शर्मा ‘अरुण’के पौत्र शिवम के साथ भी ऐसा ही हुआ।वह तो अपना भविष्य बनाने न्यूजीलैंड गया था लेकिन एक सिरफिरे हत्यारे ने उसकी जान ही ले ली।यानि 26 वर्ष की आयु में ही शिवम सदा के लिए सो गया।

शिवम के पिता शैलेंद्र शर्मा बैंक में बड़े अधिकारी है जबकि दादा राष्ट्रीय साहित्य अकादमी के सदस्य रह चुके है।साहित्यकार उमेश महादोषी सवाल उठाते है कि हम लोग अक्सर विकसित देशों में उच्चस्तरीय शिक्षा और अच्छे वातावरण की अपेक्षा के साथ अपने बच्चों को भेजते हैं, लेकिन क्या वास्तव में उन अपेक्षाओं की पूर्ति हो पा रही है! कई विकसित देशों में भारतीय प्रतिभाओं के साथ बदसलूकी और उनकी हत्याओं तक के समाचार आते रहे हैं। जो देश एक प्रतिभा के होने का मूल्य नहीं समझ सकते, क्या उन्हें विकसित माना जाना चाहिए? क्या विकास की परिभाषा में मानवीय मूल्यों और मानवता को सूचकांक की उच्चता की ओर ले जाने वाली प्रतिभाओं के आदर और स्वतंत्रता के स्तर को शामिल नहीं किया जाना चाहिए? वरिष्ठ साहित्यकार डॉ योगेंद्र नाथ शर्मा ‘अरुण’  के पौत्र  शुभम की न्यूज़ीलैंड में हुई हत्या यह सब सोचने पर मजबूर कर रही है।

शुभम की प्रतिभा और उच्च संस्कारों की पहचान उसके व्यक्तित्व में सहज ही देखी जा सकती थी। शुभम के अंदर अपनी प्रतिभा को लगातार तराशने की विनम्र भावना और अपने बड़ों को भारतीय परंपराओं के अनुरूप सम्मान देने का भाव सदैव देखने को मिलता था। हमारे लिए यह समझना ही मुश्किल हो रहा है कि उस जैसे हंसमुख प्रतिभावान युवा से किसी को क्या समस्या  हो सकती थी जो उसकी हत्या कर दी गई। कहीं यह न्यूज़ीलैंड की विकास वृत्ति का कोई चारित्रिक प्रतीक तो नहीं, जो दूसरे देशों की प्रतिभाओं को बर्दास्त ही न कर पाता हो! भारत सरकार को न्यूज़ीलैंड ही नहीं तमाम विकसित देशों में पढ़ रहे भारतीय छात्रों की सुरक्षा के मुद्दे को संवेदनशील स्तर पर उठाना चाहिए। 2 जुलाई,सन1994 को जन्मे  शिवम शर्मा ने स्वामी राम हिमालयन मेडिकल विश्वविद्यालय,जॉलीग्रांट से बेचेलर ऑफ फिजियोथेरेफी की परीक्षा में सर्वोच्च अंक प्राप्त किये थे,जिसपर उन्हें विश्वविद्यालय की ओर से तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने भव्य दीक्षांत समारोह में स्वर्णपदक प्रदान किया था
इसके बाद शिवम एमपीटी यानि मास्टर ऑफ फिजियोथेरेपी का कोर्स करने न्यूज़ीलैंड गया और मास्टर्स ऑफ फिज़ियोथेरेफी की डिग्री भी ले ली और वहीं चिकित्सा सेवा करने लगा।शिवम की नृशंस हत्या पर शिवम के दादा वरिष्ठ साहित्यकार डॉ योगेंद्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ का ह्रदय विदारक उदगार उन्ही के शब्दों में,
     “शिवम  ‘शिवमय’ हो गया,
      हुआ शिवम का रूप।
      पिंजरा   तोड़   उड़   गया,
      शिवम  चिरंतन  भूप।”
इस घटना की सूचना न्यूजीलैंड के भारतीय दूतावास से मिलने के बाद केन्द्रीय मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल”निशंक”  के प्रयासों से  शिवम की देह “ताबूत” में बन्द होकर 16 जून को भारत आ पाएगी।
केंद्रीय मंत्री डॉ निशंक जहां शिवम की हत्या से आहत है, वही पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत,प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह,कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय,श्री वैकेंटश्वर विश्वविद्यालय के प्रति कुलाधिपति डॉ राजीव त्यागी,न्यायमूर्ति बीएस वर्मा ने शिवम की न्यूजीलैंड में हुई हत्या पर गहरा दुःख व्यक्त किया है।
 कुछ दिन पहले ही शिवम ने लिखा था-“We all are stories in the end.Just make it a good one.” यह तो कोई दिव्य आत्मा ही लिख सकता है।
     “हम सब गाथा हैं यहाँ,
      लिखते हैं परमेश।
      गाथा  हम  ऐसी  गढ़ें,
      बन  जाएं दरवेश।”
सचमुच शिवम तो ऐसी ही अनूठी गाथा लिख गया है,जो उसकी आदर्श सोच का प्रतीक है।

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