योगायु रिसर्च के द्वारा योग-आयुर्वेद के प्राचीन भारतीय ज्ञान को वैश्विक स्तर पर स्थापित करेंगे: आचार्य बालकृष्ण
- आज वेदों को विज्ञान से जोड़ने की आवश्यकता है: आचार्य बालकृष्ण
- ‘योगायु रिसर्च’ के द्वारा हमने योग और आयुर्वेद को आधुनिक वैज्ञानिक मापदण्डों पर परिभाषित किया: डॉ. वार्ष्णेय
- पतंजलि ने पहली बार विश्वस्तरीय शोध पत्रों के शोध का सार संस्कृत तथा हिन्दी में किया प्रकाशित
( ब्यूरो ,न्यूज़ 1 हिन्दुस्तान )
हरिद्वार। भारतवर्ष विद्वान अनुसंधानकर्ताओं की भूमि रही है। नालंदा व तक्षशिला जैसे कई विश्वप्रसिद्ध प्राचीन विश्वविद्यालय इस तथ्य की पुष्टि करते हैं। दुर्भाग्य से, हमारी विरासत और संस्कृति को विदेशी आतताइयों व आक्रमणकारियों द्वारा बार-बार लूटा और नष्ट किया गया है।इस राजनैतिक अस्थिरता के कारण हमने न केवल धन-सम्पदा अपितु प्राचीन विज्ञान को भी खो दिया। नतीजतन, हमने वैज्ञानिक मार्गदर्शन के लिए अपने बुनियादी सिद्धांतों व मान्यताओं को छोड़कर पाश्चात्य सभ्यता पर निर्भरता को स्वीकार कर लिया। लंबे समय से पश्चिमी विज्ञान और प्रौद्योगिकी भारत के सम्मुख अपने वर्चस्व का प्रदर्शन कर रहा था। अब समय आ गया है कि हम अपनी ऋषि परम्परा, ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान को वरीयता देते हुए पश्चिम के विद्वतापूर्ण बंधनों से मुक्त हों और पुनः अपनी प्राचीन वैज्ञानिक महिमा को पहचानें। इस प्रक्रिया में यह सुनिश्चित करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि प्राचीन भारतीय वैज्ञानिक ज्ञान की उस भव्यता को पूरा विश्व देखे भी और समझे भी। इसी उद्देश्य से पतंजलि अनुसंधान संस्थान और पतंजलि आयुर्वेद कॉलेज के सहयोग से पतंजलि विश्वविद्यालय ने ‘योगायु रिसर्च’ के माध्यम से योग और आयुर्वेद के प्राचीन विज्ञान व अनुसंधान को वैश्विक स्तर पर प्रबल करने का कार्य किया है। योगायु रिसर्च आचार्य बालकिशन महाराज की अतुलनीय दूरदर्शिता के भव्य परिणामों में से एक है, जो निश्चित ही स्वामी रामदेव के आशीर्वाद से विश्वस्तर के अंतरराष्ट्रीय जर्नल के रूप में विकसित होगी। यह स्वामी रामदेव और परम श्रद्धेय आचार्य जी का मार्गदर्शिता है जो हमारी वैज्ञानिक संस्कृति को विश्वस्तर पर प्रतिष्ठित करने के लिए प्रेरित करती है।इस अवसर पर स्वामी रामदेव ने कहा कि अभी तक केवल अंग्रेजी तथा कुछ अन्य विदेशी भाषाओं में विदेशी जर्नल्स में ही शोध पत्र प्रकाशित किए जाते थे। हिन्दी तथा संस्कृत में तो शोध पत्रें को स्थान ही नहीं मिलता था। अब योगायु रिसर्च के माध्यम से हम शोध पत्रों को हिन्दी और संस्कृत में प्रकाशित करेंगे, बाद में अंग्रेजी में इनका प्रकाशन किया जाएगा। इससे राष्ट्रभाषा से लेकर हमारे योग, आयुर्वेद व अनुसंधान को हम राष्ट्र व विश्वस्तर पर गौरव दे पाएँगे। योगायु रिसर्च दुनिया के टॉप रिसर्च जर्नल्स में होगा।
आचार्य बालक्रष्ण ने महर्षि दयानन्द के वचनों को दोहराते हुए कहा कि वेदों में सम्पूर्ण विज्ञान है। आज वेदों को विज्ञान से जोड़ने की आवश्यकता है, हम उस पर गहन अध्ययन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि योगायु रिसर्च का उद्देश्य योग और आयुर्वेद के प्राचीन विज्ञान को हिंदी और संस्कृत भाषाओं में साक्ष्य-आधारित शोध के रूप में प्रस्तुत करना है। इसका प्रारंभ पतंजलि ने पहली बार विश्वस्तरीय शोध पत्रों का सार संस्कृत तथा हिन्दी में प्रकाशित करके किया है। यह जर्नल वैश्विक मंच पर योग और आयुर्वेद के प्राचीन गौरव को पुनर्जिवित करने के लिए एक अनूठी अभूतपूर्व अवधारणा है।इस अवसर पर पतंजलि अनुसंधान संस्थान के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. अनुराग वार्ष्णेय ने कहा कि यह त्रैमासिक जर्नल योग और आयुर्वेद के क्षेत्र में सर्वाेत्तम समकक्षों द्वारा समीक्षित अनुभवजन्य शोध निष्कर्षों के साथ अपना वैश्विक पुनरावलोकन प्रस्तुत करेगा। हमने योग और आयुर्वेद को आधुनिक वैज्ञानिक मापदण्डों पर परिभाषित करके समग्र रूप से प्रस्तुतिकरण का कार्य ‘योगायु रिसर्च’ द्वारा किया है। यह एक विश्वस्तरीय रिसर्च जर्नल का पोर्टल है जिसमें अंतर्राष्ट्रीय स्तर के शोध पत्र प्रकाशित होंगे। आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि योगायु रिसर्च ऐसा अन्तर्राष्ट्रीय जर्नल होगा जिसमें शोध पत्र प्रकाशित होना गौरव का विषय माना जाएगा। यह भारत की सांस्कृतिक विरासत योग-आयुर्वेद के उत्थान में अहम भूमिका निभाएगा। उन्होंने जानकारी दी कि रामनवमी के पावन अवसर पर इसके पोर्टल का विधिवत लोकार्पण स्वामी रामदेव महाराज तथा पूज्य मोरारी बापू के कर-कमलों से किया जा चुका है।