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आज की ताज़ा खबर :लॉकडाउन बना पर्यावरण के लिए संजीवनी। आखिर कैसे ? जाने 

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*  आमतौर पर अप्रैल महीने में उत्तराखंड के जंगलों में अलग ही नजारा देखने को मिलता है, वो है जंगलों में दावानल. लेकिन, इन दिनों लॉकडाउन की वजह से जंगल नहीं सुलग रहे हैं।

(ज्ञान प्रकाश पाण्डेय )

देहरादून / हरिद्वार । हर साल नई थीम के साथ पृथ्वी दिवस मनाया जाता है। पर इस बार एक ओर जहां महामारी का दंश पूरी दुनियां झेल रही है। तो वहीं लाॅक डाउन पर्यावरण के लिए संजीवनी बनकर सामने आया है। नदियां प्रदुषण रहित नजर आ रही है तो वहीं वन पेड पौधे भी ताजी हवा का घर बने हुए है। पृथ्वी दिवस के मौके पर चलो उत्तराखंड की पर्यावरणीय स्थिति से रूबरू होते है।  आमतौर पर अप्रैल महीने में उत्तराखंड के जंगलों में अलग ही नजारा देखने को मिलता है, वो है जंगलों में दावानल. लेकिन, इन दिनों लॉकडाउन की वजह से जंगल नहीं सुलग रहे हैं। ऐसे में मानवीय हस्तक्षेप और स्वार्थपूर्ति का इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि अप्रैल-मई-जून के महीने में जंगल धू-धू कर जलते हैं, लेकिन कोरोना के खौफ से इंसान घरों में कैद हैं तो जंगल आबाद हैं।

उत्तराखंड में फायर सीजन में हर साल कई हेक्टेयर वन भूमि आग की चपेट में आ जाती है। वन महकमा भी आग पर काबू पाने में नाकाफी साबित होता है। यूं तो आग सुलगने के कई कारण बताए जाते हैं। जंगलों में कई बार गर्मी के वजह से खुद ब खुद आग लग जाती है। ज्यादातर मामलों में इंसान ही घास इत्यादि के लिए जंगलों में आग सुलगा देता है। चीड़ के जंगल में आग आसानी से सुलग जाती है, क्योंकि, चीड़ से लीसा यानी राल निकलता है, जो बेहद ज्वलनशील होता है और जल्दी आग पकड़ लेता है। दावानल से पेड़-पौधे तो जलते ही हैं, उसके साथ जंगलों में उगने वाली बहुमूल्य वन संपदा, जड़ी-बूटी आग की भेंट चढ़ जाते हैं। कई प्रजाति विलुप्त हो जाती हैं। आग से कई जंगली जीव-जंतु, पशु-पक्षी भी जल जाते हैं। साथ ही उनके आशियाने खाक हो जाते हैं।

दावानल से तापमान में बढ़ोत्तरी होती है। इससे ग्लोबल वॉर्मिंग का खतरा बढ़ जाता है। वायु प्रदूषण जैसी समस्याओं से दो चार होना पड़ता है। जैव विविधता पर असर पड़ता है। वहीं, इस बार आग लगने के छिटपुट मामले ही सामने आए हैं।

गंगा यमुना जैसी नदियों का पानी भी इन दिनों साफ सुथरा दिखाई दे रहा है। दरअसल, लॉकडाउन की वजह से लोग अपने घरों पर ही हैं। लोग जंगलों की ओर कम रुख कर रहे हैं। ऐसे में आग लगने की घटनाएं अभी तक कम सामने आई हैं। जाहिर है, इंसान ही अपने निजी हित के लिए जंगलों में आग लगा देता है। हर साल 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाया जाता है। पृथ्वी दिवस पहली बार 1970 में मनाया गया था। हर साल इसे नई थीम के साथ मनाया जाता है। इस बार की क्लाईमेटे एक्शन है। पृथ्वी दिवस का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करना है।

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