( ब्यूरो ,न्यूज़ 1 हिन्दुस्तान )
देहरादून। उत्तराखण्ड में भाजपा ने एक महीने में तीन विधायकों को भाजपा में शामिल कराकर चुनाव से पहले विरोधीयो को कड़ा झटका दिया है। इस बीच शुक्रवार को भीमताल से निर्दलीय विधायक रामसिंह कैड़ा ने भी अटकलों के मुताबिक औपचारिक तौर पर राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी जॉइन कर ली। अब दो सवाल खड़े हो रहा हैं, पहला कि क्या बीजेपी इन नये चेहरों को टिकट देने में तरजीह देगी? और दूसरा यह कि 60 विधायकों के आंकड़े को छूने के बाद भी क्या भाजपा और भी विधायकों को अपने दल में शामिल करने की मुहिम जारी रखेगी? इन दो सवालों के जवाब से काफी हद तक तय हो रहा है कि आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर पार्टी की रणनीति क्या रहेगी।
क्या है बीजेपी का चुनावी दांव?
रणनीति साफ है, अंदरूनी लोग बता रहे हैं कि भाजपा उन तमाम चेहरों को लुभाने और अपने पाले में लाने के लिए कोशिश कर रही है, जिनके जीतने की संभावना है। हालांकि नये चेहरों से पार्टी के स्थापित नेताओं के टिकट को लेकर खतरा पैदा हो रहा है इसलिए अंदरूनी विरोध के चलते फिलहाल पार्टी यह खुलकर नहीं कह रही कि ये नये सदस्य भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे या नहीं, लेकिन माना जा रहा है कि ‘लड़ेंगे’ ही।
पार्टी के भीतर हो रहे इस विरोध को लेकर शीर्ष पंक्ति के एक नेता ने कहा, ‘अच्छे लोगों को पार्टी से जोड़ने में क्या बुराई है,’ एक और नेता ने इशारा किया कि आने वाले दिनों में कांग्रेस के कुछ विधायकों समेत और नेता भी दलबदल कर सकते हैं। यहां गौरतलब है कि सांसद अनिल बलूनी पहले ही कह चुके हैं कि कांग्रेस के कई नाम भाजपा जॉइन करने वाले हैं और हो सकता है कि पूरा सदन ही भाजपा विधायकों का हो।
भाजपा के लिए कौन से फैक्टर हैं खास?
उत्तराखंड का सियासी इतिहास बताता है कि कभी भी सत्तारूढ़ पार्टी लगातार दूसरी बार चुनाव नहीं जीती। दूसरी तरफ, भाजपा इसी साल दो बार मुख्यमंत्री बदल चुकी है. पुष्कर सिंह धामी का राजपूत नेता होना भाजपा को फायदा पहुंचा सकता है क्योंकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत भी राजपूत समुदाय से आते हैं और कुमाऊं से भी। तो धामी उनके खिलाफ बड़ी चुनौती पेश कर सकते हैं।
हालांकि बड़ा सवाल अब भी यही है चूंकि चुनाव में थोड़ा ही समय बचा है इसलिए क्या इतने समय में धामी कोई जादुई उलटफेर कर सकेंगे या नहीं? इधर, किसानों के वर्चस्व वाले राज्य के मैदानी इलाकों में ‘सत्ता विरोधी’ लहर भी हावी है, जिससे बीजेपी को परेशानी हो सकती है। इस बारे में पार्टी के नेता संकेत दे चुके हैं कि इस बार चुनाव के लिए टिकट ‘कमज़ोरों’ को नहीं, ‘जीत की संभावना’ वालों को दिए जाएंगे और इसमें उम्र या पार्टी के प्रति वफादारी को भी ताक पर रखा जा सकता है।