( ब्यूरो ,न्यूज़ 1 हिन्दुस्तान )
देहरादून। उत्तराखण्ड में लड़कियों को लेकर एक बड़ी सुखद और सुधारवादी खबर सामने आ रही है। जी हाँ , राज्य में लड़कियों के स्वास्थ्य अब सुधर दिखने लगा है। परन्तु इसके उलट चिंता जनक बात सामने यह आ रही है लड़को के स्वास्थ्य में गिरावट महसूस किये जा रहे है।
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस) पांच की रिपोर्ट के अनुसार,उत्तराखंड में 15 से 19 साल तक के लड़के और लड़कियों में खून की उपलब्धता को लेकर बड़ा बदलाव आया है।
उत्तराखंड में पहले, 15 से 19 वर्ष वर्ग की तकरीबन पचास फीसदी लड़कियां शरीर में खून की कमी की समस्या से जूझ रही थीं जबकि लड़कों के मामले में यह आंकड़ा 22 प्रतिशत था। लेकिन हाल में आई एनएफएचएस फाइव की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में लड़कियों की स्थिति में सुधार आया है। अब 42 फीसदी लड़कियों में ही खून की कमी पाई गई है जबकि लड़कों में समस्या बढ़ रही है। उत्तराखंड में अब 27 प्रतिशत लड़के खून की कमी की समस्या से ग्रस्त पाए गए हैं। हालांकि राज्य में ओवरऑल यह समस्या अब भी लड़कियों में ही ज्यादा है।
दवा खिलाने के बावजूद हाल खराब
राज्य में 15 से 19 साल के लड़के, लड़कियों को खून की कमी की समस्या से बाहर निकालने के लिए न्यूट्रेशन प्रोग्राम चल रहा है। महिला बाल विकास और स्वास्थ्य विभाग की ओर से चलाए जा रहे इस कार्यक्रम के तहत आयरन की गोलियां आदि दी जा रही हैं। लड़कियों में तो इन दवाओं का कुछ असर दिखता है लेकिन लड़कों में दवा खाने के बाद भी खून की समस्या बढ़ रही है। ऐसे में सवाल खड़े हो रहे हैं कि लड़के दवा खा भी रहे हैं या नहीं।
अन्य हर वर्ग की स्थिति में सुधार
सर्वे के अनुसार, छह से 59 साल आयु वर्ग में पहले 60 फीसदी महिलाओं में खून की कमी थी जो अब घटकर 58 प्रतिशत रह गई है। 15 से 49 साल आयु वर्ग की पहले 47 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं में पहले खून की कमी थी जो अब 46 प्रतिशत के करीब पहुंच गया है। पर 15 से 19 साल के लड़कों की स्थिति गिरावट दर्ज की गई है।
घर-घर जाकर हो रही स्क्रीनिंग: स्वास्थ्य मंत्री
सूबे के स्वास्थ्य मंत्री डॉ.धन सिंह रावत ने कहा कि एनएफएचएस के आंकड़ों को देखते हुए राज्य में जन आरोग्य अभियान शुरू किया गया है। इसके तहत सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी घर-घर जाकर लोगों की स्क्रीनिंग कर रहे हैं। यह कवायद इसीलिए की जा रही है ताकि लोगों की बीमारियों का पता लगाकर उनका इलाज किया जा सके। प्रदेश में अभी तक 18 लाख लोगों की स्क्रीनिंग की जा चुकी है। इस दौरान 12 अलग-अलग तरह की बीमारियों की पहचान की जा रही है।