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घरेलु हिंसा के मामले दिन प्रति दिन लॉक डाउन में बढ़ रहे है। आखिर इसका क्या कारण हो सकता है आपसी मतभेद या अपनों के प्रति अविश्वास ? जाने ललित sir से 

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(ब्यूरो ,न्यूज़ 1 हिन्दुस्तान )

हरिद्वार / नैनीताल । लॉक डाउन में जहा कई समस्याए सामने आ रही है वही पर एक विचित्र बात भी सामने आई है लॉक डाउन के समय में कई अपनों को अपनों की हकीकत सामने ले आया हैI जहा परिवार एक साथ मिल कर करोना के विरुद्ध जंग लड़ रहा है। वही दूसरी तरफ परिवार में आपसी लड़ाई झगडे भी सामने आ रहे है और घरेलु हिंसा के मामले दिन प्रति दिन लॉक डाउन में बढ़ रहे है। इसका क्या कारण हो सकता है आपसी या अपनों के प्रति अविश्वास ? घरेलु हिंसा है क्या और इसमें कानून का क्या नजरिया है? इस संवेदनशील मुद्दे को भारतीय जागरूकता समिति की महिला विंग ने हाल फ़िलहाल ही उठाया है। जिसके संदर्भ में आज हम भारतीय जागरूकता समिति के अध्यक्ष एम् हाई कोर्ट के अधिवक्ता ललित मिगलानी से विशेष चर्चा में ये जानते है कि घरेलु हिंसा क्या होती है और पीडिता क्या क़ानूनी कदम उठा सकती है ?


Q-आज कल घरेलु हिंसा बढ़ रही है। क्या होती है घरेलु हिंसा और इसका बढ़ने का क्या कारण है?
Ans-घरेलू हिंसा  विवाह जैसे बंधनों के बाद घरेलू स्तर पर एक साथी का अन्य साथी के साथ मारपीट अथवा दुर्व्यवहार को प्रकट करने वाला शब्द है। अंतरंग साथी अथवा जीवन साथी के साथ दुर्व्यवहार भी घरेलू हिंसा की श्रेणी में आता है। घरेलू हिंसा विपरीत लिंगी अथवा समलैंगिक संबंधों में भी हो सकती है। घरेलू हिंसा के शारीरिक, भावनात्मक, मौखिक, आर्थिक और यौन शोषण सहित विभिन्न रूप हो सकते हैं, जिसमें धूर्तता से लेकर विवाह पश्चात बलात यौन सम्बन्ध और हिंसक शारीरिक शोषण भी शामिल हैं एवं इसके परिणामस्वरूप मानसिक अथवा शारीरिक विरूपण अथवा मौत भी संभव है। सामान्यतः पत्नी अथवा महिला साथी घरेलू हिंसा की शिकार अधिक होती है हालांकि इसका शिकार पुरुष साथी अथवा दोनों एक दूसरे के खिलाफ घरेलू हिंसा का शिकार हो सकते हैं अथवा दोषी आत्मरक्षा या प्रतिशोध के कारण भी घरेलू हिंसा का शिकार हो सकता है। जबकि विकसित विश्व में घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं को प्राधिकारियों के पास खुले आम शिकायत करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, यह तर्क दिया जाता है कि पुरुषों के साथ होने वाली घरेलू हिंसा को प्रतिवेदित नहीं किया जाता क्योंकि इससे उन्हें सामाजिक रूप से कायर और पुरुषत्वहीन माना जाता है। आज के समय घरेलु हिंसा का बढ़ने का सबसे बड़ा कारण अपनों का अपनों का अविश्वास और दुसरो का घरो में बेवजह दखल देना है?


Q-घरेलु हिंसा में किस प्रकार की हिंसा एम् दुर्व्यवहार आते है ?
Ans-इस क़ानून के तहत घरेलू हिंसा के दायरे में अनेक प्रकार की हिंसा और दुर्व्यवहार आते हैं। किसी भी घरेलू सम्बंध या नातेदारी में किसी प्रकार का व्यवहार, आचरण या बर्ताव जिससे (१) आपके स्वास्थ्य, सुरक्षा, जीवन, या किसी अंग को कोई क्षति पहुँचती है, या (२) मानसिक या शारीरिक हानि होती है, घरेलू हिंसा है। इसके अलावा घरेलू सम्बन्धों या नातेदारी में, किसी भी प्रकार का शारीरिक दुरुपयोग (जैसे मार-पीट करना, थप्पड़ मारना, दाँत काटना, ठोकर मारना, लात मारना इत्यादि), लैंगिक शोषण (जैसे बलात्कार अथवा बलपूर्वक बनाए गए शारीरिक सम्बंध, अश्लील साहित्य या सामग्री देखने के लिए मजबूर करना, अपमानित करने के दृष्टिकोण से किया गया लैंगिक व्यवहार, और बालकों के साथ लैंगिक दुर्व्यवहार), मौखिक और भावनात्मक हिंसा ( जैसे अपमानित करना, गालियाँ देना, चरित्र और आचरण पर आरोप लगाना, लड़का न होने पर प्रताड़ित करना, दहेज के नाम पर प्रताड़ित करना, नौकरी न करने या छोड़ने के लिए मजबूर करना, आपको अपने मन से विवाह न करने देना या किसी व्यक्ति विशेष से विवाह के लिए मजबूर करना, आत्महत्या की धमकी देना इत्यादि), आर्थिक हिंसा ( जैसे आपको या आपके बच्चे को अपनी देखभाल के लिए धन और संसाधन न देना, आपको अपना रोज़गार न करने देना, या उसमें रुकावट डालना, आपकी आय, वेतन इत्यादि आपसे ले लेना, घर से बाहर निकाल देना इत्यादि), भी घरेलू हिंसा है।
ललित मिगलानी कहते है कि घरेलू हिंसा की परिभाषा के दायरे में आने के लिए ज़रूरी नहीं कि कुछ किया ही जाए, कुछ परिस्थितियों में घरेलू सम्बन्धों में कुछ नहीं करना भी (चूक) जिससे किसी व्यक्ति के जीवन और कल्याण को चोट पहुंची हो, घरेलू हिंसा कहलाएगा; उदाहरण के तौर पर, घर का खर्च न उठाना, बच्चों की परवरिश हेतु धन न देना, आर्थिक शोषण माना जाएगा ।


Q-‘घरेलू संबंध की परिभाषा में इस्‍तेमाल अभिव्‍यक्ति’ विवाह की तरह का संबंध का अर्थ क्‍या है?
Ans-विवाह की तरह के संबंध का तात्‍पर्य वैसे संबंधों से है जिसमें दो व्‍यक्तियों के बीच किसी कानून के अंतर्गत विवाह की पवित्रता भाव से विवाह नहीं हुआ हो, फिर भी दोनों पक्ष दुनिया की निगाह में एक दूसरे को दंपत्ति दिखाते हैं और उनके संबंध में स्थिरता और निरंतरता है। ऐसे संबंध को समान कानून विवाह के रूप में भी जाना जाता है।
ऐसे संबंध के साक्ष्‍य होंगे : एक समान नाम का उपयोग, समान राशन कार्ड, एक पता आदि।
साझी गृहस्‍थी के प्रति पक्षों की प्रतिबद्धता,महत्‍वपूर्ण अवधि तक साथ-साथ रहना
पक्षों के बीच वित्‍तीय तथा अन्‍य निर्भरता का अस्तित्‍व। इसमें गृहस्‍थी के संदर्भ में महत्‍वपूर्ण पारस्‍परिक वित्‍तीय प्रबंध शामिल है। संबंध से बच्‍चों का अस्तित्‍व,गृहस्‍थी तथा बच्‍चों की देख-भाल में दोनों पक्षों की भूमिका। 


Q -क्या लिविंग रिलेशनशिप के रहने वाली महिला के उपर होने वाले अत्याचार  भी घरेलु हिंसा की परिभाषा में आता है ?
Ans-जी हाँ ऐसे दो अविवाहित पुरुष एम् महिला जो काफी लम्बे समय से एक साथ लिविंग रिलेशनशिप में रह रहे हो और उनके बिच कोई हिंसा होती है तो वो घरेलु हिंसा होगी I
वैसी महिलाएं जो विवाह किए बिना दाम्‍पत्‍य संबंध में साझी गृहस्‍थी में रह रही हैं।
समान कानून विवाह – जब दंपति वर्षों से साथ-साथ रह रहे हैं और बाहर की दुनिया को पति-पत्‍नी बता चुके हैं।


Q-क्‍या अभिव्‍यक्ति ‘विवाह की तरह के संबंध’ विवाह के बराबर है?
Ans-कानून सभी महिलाओं, चाहे वह बहन हो, मां हो, पत्‍नी हो या साझी गृहस्‍थी में सहभागी के रूप में साथ-साथ रह रहे हों, की सुरक्षा का प्रावधान करता है। सुरक्षा प्रदान करने तक कानून विवाहित और अविवाहित का फर्क नहीं करता, लेकिन कानून कहीं भी यह नहीं कहता कि एक अवैध विवाह वैध है। कानून हिंसा से सुरक्षा देता है, साझी गृहस्‍थी में रहने का अधिकार प्रदान करता है और बच्‍चों की अल्‍पकालिक संरक्षा प्रदान करता है। लेकिन पुरूष की संपत्ति के उत्‍तराधिकार या बच्‍चे की वैधता के लिए देश के सामान्‍य कानून और पक्षों की वैयक्तिक कानूनों पर भरोसा करना होगा।


Q-महिला किसके विरूद्ध शिकायत कर सकती है?
Ans-महिला हिंसा का अपराध (धारा-2(क्‍यू) किसी भी वयस्‍क पुरूष के विरूद्ध शिकायत दर्ज करा सकती है। ऐसे मामलों में जब महिला विवाहित है और विवाह की तरह संबंध में रह रही है, तो वह हिंसा, अपराध करने वाले पति/पुरूष के पुरूष या महिला संबंधियों के विरूद्ध भी शिकायत दर्ज करा सकती है। पीडब्‍ल्‍यूडीवीए में भारतीय दंड संहिता की धारा-498ए के अंतर्गत धारा-2(क्‍यू) शामिल किया गया। इससे क्रूरता के लिए पति के संबंधियों, चाहे वह पुरूष या महिला हो, के खिलाफ मुकदमा चलाना संभव है। ऐसे उदाहरणों में सास, ससुर, ननद आदि आते हैं।


Q-घरेलू हिंसा से महिलाओं के बचाव अधिनियम, 2005 अंतर्गत धन राहत की राशि की गणना किस प्रकार की जाती है?
Ans-अधिनियम की धारा 20 के अंतर्गत- धन राहत की राशि पर्याप्त, समुचित और वाजिब तथा पीड़ित महिला के पहले के जीवन स्तर के अनुरूप स्तर के अनुसार होनी चाहिए। धन राहत की राशि की गणना करते हुए अदालतें गुजारे भत्ते के कानून के अंतर्गत निर्धारित मानकों का पालन करेंगी।


Q- क्या कोई मुस्लिम महिला घरेलू हिंसा से महिलाओं के बचाव अधिनियम, 2005 के अंतर्गत धन राहत के आदेश का अनुरोध कर सकती है?
Ans-कोई मुस्लिम महिला जिसने तलाक नहीं लिया हो वह इस अधिनियम के अंतर्गत धन राहत की मांग कर सकती है। अगर वह तलाकशुदा है तो उसके अधिकार मुस्लिम महिला (तलाक के अधिकारों की रक्षा) अधिनियम, 1986 के अंतर्गत तय किए जाएंगे और उसे सीआरपीसी की धारा 125 के अंतर्गत कानून का सहारा लेना होगा।


Q-कोई मुस्लिम महिला अपने पुत्र के लिए धन राहत के आदेश के लिए आवेदन कर सकती है।
Ans-अदालत कैसे यह सुनिश्चित करेगा कि प्रतिवादी के पास राहत और मुआवजे के भुगतान करने के साधन नहीं होने पर किस तरह धन राहत और मुआवजे, वैकल्पिक आवास के आदेश लागू किया जाएं?
उच्चतम न्यायालय ने लीलावती बनाम स्टेट ऑफ उत्तर प्रदेश [1982 (1) एससीसी437] में राय दी है कि यदि कोई व्यक्ति स्वस्थ और स्वस्थ शरीर का है तो उसके पास अपनी पत्नी, बच्चों और अभिभावकों को मदद देने के अवश्य साधन होने चाहिए। न्यायालय सीआरपीसी की धारा 125(3) के अंतर्गत कार्रवाई शुरू कर सकता है और प्रतिवादी की गिरफ्तारी भी की जा सकती है अगर वह धारा 125 के अंतर्गत के आदेश पर भुगतान नहीं करता।


Q-धन राहत का आदेश का पालन नहीं किए जाने के मामलों में क्या प्रक्रिया अपनायी जाएगी?
Ans-नियम 10(ई) में प्रावधान है कि मजिस्ट्रेट द्वारा लिखित में निर्देश दिए जाने पर संरक्षण अधिकारी अधिनियम के अंतर्गत मजिस्ट्रेट द्वारा निर्धारित तरीके से न्यायालय के आदेश को लागू करने में मदद देगा। ऐसा करने के लिए धारा 12, 18, 19, 20, 21, 23 के अंतर्गत आदेश शामिल हैं।
घरेलू हिंसा से महिलाओं के बचाव अधिनियम, 2005 के अंतर्गत आदेशों के पालन की कार्रवाई सीआरपीसी की धारा 125(3) के अंतर्गत शुरू की जा सकती है। मजिस्ट्रेट देय राशि प्राप्त करने के लिए जुर्माना वसूलने के लिए निर्धारित तरीके के अनुरूप वारंट जारी कर सकता है और किसी व्यक्ति को मासिक राशि के किसी भाग या पूरी राशि के लिए या धनराहत के आदेश में वर्णित किसी अन्य राशि के लिए जेल भी भेज सकता है।
समुचित मामलों में न्यायालय प्रतिवादी के नियोक्ता को पीड़ित व्यक्ति को इस अधिनियम की धारा 20(6) के अंतर्गत सीधे भुगतान का निर्देश दे सकता है, इसके लिए सम्पति कुर्क आदि भी की जा सकती है।
मजिस्ट्रेट जब संरक्षण आदेश के साथ धन राहत का आदेश देता है तो आदेश का पालन नहीं किए जाने का मतलब अधिनयम की धारा 31 के अंतर्गत कानून का उल्लंघन होगा।


Q-पुलिस को आदेश का पालन कराने का अधिकार नहीं दिया गया तो ऐसे में आदेश लागू कैसे किया जाएगा?
Ans-पुलिस को जब आदेश दिया जाता है तो पीड़ित व्यक्ति को आदेश के पालन में पुलिस को सहायता देने का निर्देश का आदेश मांगना चाहिए।यदि ऐसा निर्देश नहीं दिया जाता तो घरेलू हिंसा का रिकार्ड पुलिस के पास रखा जाना जरूरी है ताकि पुलिस के पास मामले का इतिहास रहे और वह आवश्यकता पड़ने पर सहायता दे सकें। जब कोई संरक्षण आदेश धन राहत के आदेश के संयोजन में दिया जाता है तो संरक्षण आदेश का उल्लंघन संज्ञेय अपराध होता है और धारा 31 के अंतर्गत पुलिस के पास शिकायत दर्ज कराई जा सकती है।


Q-क्या कोई महिला इस आदेश के अंतर्गत बच्चों की देखरेख के लिए अपने पास रखने का अनुरोध कर सकती है?
जी हां अधिनियम की धारा 21 के अंतर्गत ऐसा किया जा सकता है। यह ध्यान रखना चाहिए कि देखरेख के आदेश के लिए आवेदन या संरक्षण या अन्य आदेशों के अलावा किया जाना चाहिए। इसका अर्थ है कि घरेलू हिंसा होने की स्थिति में महिला अगर संरक्षण आदेश आदि चाहती है तो वह अस्थाई देखरेख के आदेश के लिए आवेदन कर सकती है।
मजिस्ट्रेट केवल बच्चों की अस्थाई देखरेख के आदेश दे सकता है। इससे किसी अन्य पक्ष को किसी समुचित मंच पर बच्चों की स्थाई देखरेख या संयुक्त देखरेख का अनुरोध करने से रोका नहीं जा सकेगा।
अगर बच्चों की देखरेख के बारे में किसी न्यायालय में मामला लंबित है तो उसी न्यायालय में बच्चों के अस्थाई देखरेख का आवेदन दिया जा सकता है।


Q-क्या पुरुष भी घरेलु हिंसा का शिकार होते है उनके लिए कानून में क्या व्यवस्था है?
Ans-जी हाँ अक्सर देखा गया है घरेलु हिंसा में हर बार महिलाये ही पीडित नहीं होती कई बार पुरुष भी पीड़ित होते है कानून में फर्क इतना है महिलाओ के लिए विशेष अधिनियम बना हुआ हैI  लेकिन पुरुषो के लिए विशेष कानून उपलब्ध नहीं है इसका मतलब ये बिलकुल नहीं है, की पुरुष कुछ नहीं कर सकते अगर उनके साथ मार पिट गाली गलोच या अन्य तरीके का उत्पीड़न होता हैI तो वो भारतीय दण्ड सहिता के तहत मुकदमा दर्ज करा सकते हैI  लेकिन उत्पीड़न को साबित करने का भार उनपर ही होगा ।


Q-आप समाज को क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
समाज के हर परिवार के हर व्यक्ति को यही सन्देश देना चाहूँगा की अपना परिवार ही हर वक्त अपना होता हैI दुःख सुख में सबसे पहले अपना परिवार ही आपके साथ होता छोटे मोटे लड़ाई झगडे हर परिवार में होते है और वही झगडे प्यार बढ़ाते है । हमें अपनों को समझना चाहिये और अपनों की कद्र करनी चाहिये ।

  News 1 Hindustan का आपसे अनुरोध है कि आप प्यार से रहो और खुश रहो। ये थी नैनीताल हाईकोर्ट के अधिवक्ता ललित मिगलानी के साथ एक विशेष चर्चा । अगर आपके मन में कोई प्रश्न है और आप कोई जबाब वकील साहब से जानना चाहते है तो आप उनसे पूछ सकते है उनको mobile no. 9410559503 पर फोन करके ।

फिर मिलेंगे अगली चर्चा में ।

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