( ब्यूरो ,न्यूज़ 1 हिन्दुस्तान )
देहरादून। भारतीय जनता पार्टी में इस वक्त अनुशासन के बीच उनके ही नेताओ के बीच चल रहा द्वन्द अब सड़को पर आता दिखाई दे रहा है। सोमेस्वर विधयक और महिला और बाल विकास मंत्री रेखा आर्या ने अपने ही विभाग के अपर सचिव और सचिव के खिलाफ सिर्फ़ मोर्चा नहीं खोला है बल्कि भ्रष्टाचार का आरोप भी लगा दिया है। इसी तरह लोहाघाट के बीजेपी विधायक पूरन फर्त्याल ने भी टनकपुर-जौलजीवी मोटर मार्ग निर्माण में भ्रष्टाचार का आरोप लगाते विधानसभा सत्र में अपनी ही सरकार को मुश्किल में डालते हुए काम रोको प्रस्ताव ला दिया। सरकार के ज़ीरो टॉलरेंस के दावों पर अपनों के ही सवाल उठाने से विपक्ष को मौका मिल गया है। सबसे पहले बात करते है विधायक पूरन फर्त्याल की। लोहाघाट के भाजपा विधायक फर्त्याल टनकपुर-जौलजीवी मोटर मार्ग निर्माण में कथित टेंडर घोटाले की जांच को लेकर अपनी ही सरकार से ख़फ़ा हैं। उनका कहना है कि ठेकेदार ने यह ठेका फर्जी प्रमाण पत्रों के आधार पर लिया है। पहले जब ठेकेदार की जांच हुई थी तो उसके द्वारा लगाए गए 21 में से 17 दस्तावेज फर्जी निकले थे। तब इस मामले में तब 22 अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई हुई थी। कुछ को सस्पेंड किया गया तो कुछ को रिवर्ट किया गया था। फर्त्याल ने इसी हप्ते 23 सितंबर को हुए विधानसभा सत्र के दौरान सदन में यह मामला उठाया। फर्त्याल ने इस निर्माण कार्य में भारी भ्रष्टाचार होने का आरोप लगाते हुए कहा कि इसके चलते सरकार आर्बिटेशन के फैसले के खिलाफ कोर्ट नहीं जा रही। उन्होंने नियम 58 के तहत काम रोको प्रस्ताव लाकर इस पर चर्चा की मांग की।
सत्तापक्ष के ही विधायक द्वारा काम रोको प्रस्ताव लाए जाने से सत्तापक्ष सदन में असहज हो गया तो विपक्ष ने इसे हाथों-हाथ लपक लिया। विपक्ष का कहना था कि ये सरकार की असलियत है कि खुद उसके ही विधायक भ्रष्टाचार होने की बात कह रहे हैं।
इसे गंभीरता से लेते हुए प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत पिछले दो दिन में देहरादून से लेकर दिल्ली तक पार्टी के सीनियर लीडर्स से बात कर चुके हैं।
अब बात सोमश्वर से विधायक और सरकार में बाल विकास एवं महिला सशक्तिकरण विभाग में राज्य मंत्री रेखा आर्य की। रेखा आर्य विभाग में 380 लोगों की आऊटसोर्सिंग से भर्तियां किए जाने को लेकर अपने ही विभाग के अपर सचिव वी षणमुगम से भिड़ गई। रेखा आर्य का आरोप है कि अपर सचिव ने टेंडर में अनियमितताएं बरती हैं।
अपर सचिव का फोन नहीं मिला तो रेखा आर्य ने पुलिस में उनकी अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी। रेखा आर्य यहीं नहीं रुकीं, उन्होंने विभागीय सचिव सौजन्या पर भी प्रोटोकाल का पालन न करने और अपर सचिव को संरक्षण देने का आरोप लगाया। मामला मीडिया की सुर्खियां बना।
विपक्ष ने मुद्दे को हाथों-हाथ लिया तो एक बार फिर पार्टी और सरकार असहज हो गई। मामले में मुख्यमंत्री को हस्तक्षेप करना पड़ा और मुख्यमंत्री ने एक सीनियर आईएएस अफसर को जांच अधिकार बना सात दिनों में रिपोर्ट देने को कहा है। लेकिन रेखा आर्य इस जांच आदेश से संतुष्ट नहीं हैं। उनका कहना है कि एक आईएएस की जांच एक आईएएस करेगा तो क्या निकलेगा ?
मामला यहां थम भी जाता लेकिन सरकार के ही एक कद्दावर मंत्री सतपाल महाराज ने आग में घी डालने का काम कर दिया। सतपाल महाराज का कहना है कि रेखा आर्य मंत्री हैं, उनकी बात सुनी जानी चाहिए. सतपाल महाराज ने तो यहां तक कहा कि विभागीय मंत्रियों को सचिवों की सीआर लिखने का अधिकार मिलना चाहिए। वह कहते हैं कि सारे राज्यों में विभागीय मंत्री सचिव की सीआर लिखते हैँ, उत्तराखंड में ही न जाने कैसी परंपरा है।