* मनोवैज्ञानिक शोध से पता चला है कि खतरा तथा समाधान प्रभावित करता है बच्चों का विकास
(ब्यूरो ,न्यूज़ 1 हिन्दुस्तान )
हरिद्वार। बच्चों के जीवन से जुडी सभी छोटी बडी जरूरतों की पहचानकर तथा उसे समझकर पूरी करने के लिए माता-पिता सदैव सक्रिय रहते है। बच्चों के उपयोग की घरेलू चीजों से लेकर, स्कूल तथा सामाजिक उत्सवों मे प्रयोग होने वाली सभी चीजों को खरीद कर उसे हिफाजत से रखने मे माता-पिता सदैव सचेत रहते है। बच्चों की शिक्षा, हाॅबी, खेल तथा अन्य रूचिगत क्षेत्र का चयन करने मे माता-पिता तथा घर के बडे तथा अनुभव युक्त सदस्य उनका सहयोग करते है। इसलिए बडे बच्चों के मार्ग दर्शक होते है। लेकिन कोरोना महामारी के विषय मे यह बात विपरीत अनुभव मे आ रही है। कोरोना को लेकर बडों से ज्यादा बच्चे ज्यादा सतर्क एवं जागरूक है।
मनोवैज्ञानिक,डाॅ0 शिव कुमार बताते है कि कुछ परिवार के सदस्यों का कहना है कि आरोग्य सेतु, हाथों को बार-बार 20 सेकण्ड के लिए धोना, लाॅकडाउन तथा सामाजिक दूरी जैसी जानकारियो के संबंध मे बच्चों से बात की गई तो उनके संबध मे परिवार के बडों से ज्यादा प्रभावी, तार्किक एवं बोधात्मक तरीके से बच्चों ने ज्यादा जानकारी दी। बच्चों की कई तार्किक बातों को सुनकर तो माता-पिता भी हैरान हो जाते है।
मेरे परिवार में चचेरे भाई का 3 वर्ष का बच्चा राधव है जब उसके पापा फोन पर बात करते हुए अथवा किसी सामान के लिए घर से बाहर जाते है तो वह सहज भाव से पीछे से आवाज लगाकर कहता है कि पापा-पापा लाॅकडाउन चल रहा है। पुलिस पकड कर ले जायेगी। बाल मन पर कोरोना के कारण पैदा हुए लाॅकडाउन के खतरे का प्रभाव बच्चे की संवदेनशीलता का परिचायक है। छोटे बच्चे को ये बात कहां से पता चली उसका स्रोत हमारे आस पास ही है। टीवी अथवा प्रचार विज्ञापन के माध्यम से बच्चे चीजों को ज्यादा प्रभावी ढंग से समझते है। मनोवैज्ञानिक,डाॅ0 शिव कुमार बताते है कि यह सभी माध्यम बच्चों में सूझ विकसित करते है। इसलिए बच्चों का चिंतन हमे यह समझने पर विवश करता है कि परिस्थिति की गंभीरता क्या है। इन्टर नेशनल जर्नल आॅफ एप्लाईड बेसिक मेडिकल रिसर्च में चाईल्ड साइकोलाॅजी पर प्रकाशित एक शोध के माध्यम से यह पता चला है कि व्यवहार से जुडी समस्याएं बच्चे के शरीर पर प्रभाव डालती है तथा संवेगात्मक संरक्षण प्रदान करते हुए उसके व्यक्तित्व का निर्माण करती है। माता-पिता से प्राप्त इन गुणों तथा प्रकृति को ग्रहण करने पर बच्चे का भविष्य का विकास निर्भर रहता है। बाद मे इसके सहारे वह समस्याओं के समाधान तथा उससे होने वाले खतरे की पहचान करता है।