* कोरोना काल खामियों को दूर करने का विशेष अवसर :डा. महेन्द्र राणा
( ब्यूरो ,न्यूज़ 1 हिन्दुस्तान )
हरिद्वार। कोरोना पॉजिटिव मरीजों के आंकड़े लगातार बढ़ते जा रहे हैं ,सरकार एवं प्रशासन के लिए कोरोना महामारी (कोविड-19) बहुत बड़ी चुनौती है लेकिन इस संकट का समाधान खोजने का देश के विशेषज्ञों के लिए एक अवसर भी है ।
इसी खास विषय को लेकर भारतीय चिकित्सा परिषद उत्तराखंड के बोर्ड सदस्य डा. महेन्द्र राणा ने News 1 Hindustan से खास बातचीत के दौरान बताया कि हमें अपने चिकित्सा वैज्ञानिकों, आयुर्वेद शोध विशेषज्ञों ,प्रशासनिक अधिकारियों एवं डाटा इंजीनियरों के दल को इस संकट के समाधान के लिए नवोन्मेष प्रयोग कर उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए।
डा. राणा के अनुसार अगर कोरोना वायरस का संक्रमण स्थानीय स्तर पर होता है, तो आबादी का गरीब तबका मसलन ड्राइवर, घरेलू नौकरानियां, प्रवासी मजदूर और अन्य लोग निश्चित रूप से भारी नुकसान में रहेंगे, क्योंकि वे उतने शिक्षित नहीं हैं कि नए कोरोना वायरस के बारे में पर्याप्त रूप से अवगत हों। फिर वायरस की जांच सबके लिए नहीं है, ऐसे में उनकी जांच नहीं की जाएगी और आवश्यक चिकित्सा सुविधाओं तक उनकी पहुंच तो कठिन और असंभव है। सरकारी अस्पतालों में न तो पर्याप्त आईसीयू हैं और न ही वेंटिलेटर ! इसलिए गरीब लोग इससे ज्यादा प्रभावित हो सकते हैं। अभी तक वायरस के सामुदायिक स्तर पर प्रसार की पुष्टि नहीं हुई है। यानी सामान्य आबादी में वायरस की पहचान नहीं हुई है। जब सामुदायिक स्तर पर संक्रमण होता है, तो बीमारी इस तरह फैलती है कि संक्रमण के स्रोत का पता नहीं होता। कार्यस्थल पर या खरीदारी करते समय एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संक्रमण फैल सकता है और वैसे लोगों से भी संक्रमण फैलता है, जिन्हें संभवतः पता नहीं होता कि वे संक्रमित हैं।
डा. राणा बताते हैं कि भारत में अब तक बहुत से लोगों का परीक्षण ही नहीं किया गया है और इसके साथ शिक्षा, स्वस्थ आचरण के प्रति जागरूकता की कमी, गरीबी और देश के कई हिस्सों में कमजोर स्वास्थ्य प्रणाली आने वाले दिनों में चुनौती होगी। बार-बार साबुन से हाथ धोना एक अच्छा उपाय हो सकता है, जिसे कोई व्यक्ति मानक स्वास्थ्य सावधानी के साथ कर सकता है। इस मामले में भी भारत की स्थिति चुनौतीपूर्ण है। भले ही भारत के लगभग सभी घरों में (हालिया सर्वे के अनुसार 97 फीसदी घरों में) वाश बेसिन है, लेकिन केवल धनी और शहरी क्षेत्रों के ज्यादा शिक्षित परिवार ही हाथ धोने के लिए साबुन का प्रयोग करते हैं। अमीर और गरीब परिवारों के बीच भारी असमानता है। दस गरीब परिवारों में से केवल दो में ही हाथ धोने के लिए साबुन का प्रयोग होता है, जबकि दस अमीर परिवारों में से नौ में साबुन का इस्तेमाल होता है। विषमताओं को गहरा करने में जाति और वर्ग बराबर भूमिका निभाते हैं।
वर्तमान परिस्थितियों में एक सकारात्मक पक्ष रखते हुए डा. राणा ने बताया कि संकट एक अवसर भी बन सकता है। वर्ष 1994 में सूरत में प्लेग का प्रसार किस तरह स्थानीय प्रशासन में सुधार की वजह बना था, इसे लोग जानते हैं। 1990 के दशक के मध्य और उत्तरार्ध में सूरत के दो नगर आयुक्तों एस. आर. राव और एस. जगदीशन के प्रयासों से कचरा संग्रह और सड़कों की सफाई में आमूलचूल परिवर्तन आया, खाद्य प्रतिष्ठानों (होटलों) में स्वच्छता मानक को लागू किया गया और मलिन बस्तियों में पक्की सड़कों और शौचालयों की व्यवस्था की गई। ऐसे ही दूसरे बदलावों के फलस्वरूप एक गंदा, बाढ़ प्रभावित और बीमारी से ग्रस्त शहर सूरत देश के स्वच्छ शहरों में से एक बन गया। जनसंख्या में तेज वृद्धि के बावजूद मलेरिया जैसे मच्छर जनित परजीवी रोगों के मामले सूरत में तेजी से घटे हैं।
डा. राणा बताते हैं कि कोविड-19 एक नया वायरस है। इसका अब तक कोई टीका नहीं बना है, लेकिन बुनियादी स्वच्छता ,व्यक्ति की मजबूत रोगप्रतिरोधक क्षमता और रोकथाम के उपाय बहुत मायने रखते हैं। अगर इस वायरस का संक्रमण सामान्य आबादी में फैलता है, तो रोकथाम के उपाय बेहद महत्वपूर्ण होने वाले हैं, क्योंकि ज्यादातर राज्यों में स्वास्थ्य प्रणाली उतनी मजबूत नहीं है। तेज शहरीकरण ने कमजोर शहरी स्वास्थ्य प्रणालियों पर जिस तरह दबाव बनाया है, उसमें महामारी को कैसे रोकना है, सिर्फ यह जानना पर्याप्त नहीं है, लगातार सतर्कता और क्रियान्वयन ही सब कुछ है ।सरकार और प्रशासन को आम जनमानस को उनकी रोगप्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि के उपायों तथा निजी व सार्वजनिक स्वच्छता के लिए जागरूक करना आवश्यक होगा ।