( ब्यूरो ,न्यूज़ 1 हिन्दुस्तान )
चमोली। उत्तराखण्ड के पहाड़ों में अबतक पड़ी बर्फ़बारी के बाद तापमान गिरकर जहा – 17 तक पहुंच चूका है। वही पहाड़ों से गिरने वाले झरने जम गए है। हालत यह है कि जोशीमठ के पहाड़ों में बर्फबारी के बाद कड़ाके की ठंड पड़नी शुरू हो गई है और चमोली के ऊंचाई वाले इलाकों में लगातार सुबह शाम के तापमान में गिरावट आने की वजह से नदी नाले जम गए हैं। इधर, वैज्ञानिक कह रहे हैं चूंकि अक्टूबर के महीने में भारी बारिश हुई इसलिए इस बार उत्तराखंड में कड़कड़ाती ठंड मार्च तक खिंच सकती है और ज़्यादा भी पड़ सकती है।
चमोली के ऊंचाई वाले इलाकों की बात करें तो सबसे ज्यादा ठंड का असर नीति मलारी घाटी में दिखाई दे रहा है। नीति घाटी में चारों तरफ बर्फ की सफेद मोटी चादर जमी हुई बर्फ की शिलाएं नजर आ रही हैं। घाटी में -16 से -17 तक तापमान पहुंच चुका है। बर्फबारी का ये मंज़र सैलानियों के लिए भले ही आकर्षण का कारण हो, लेकिन स्थानीय लोग बेहाल हो गए हैं।
सब कुछ जम जाने से जो लोग इन दिनों मलारी गांव में रह रहे हैं, उन्हें हाड़ कंपाती ठंड में पीने के पानी के लिए मीलों पैदल जाना पड़ रहा है। नीति घाटी के मलारी गांव, कैलाशपुर, कोसा, गमशाली में ठंड की वजह से नदी नाले जमने के मंज़र हैं। गमशाली से लेकर नीति के बीच पूरी सड़क पर मोटी बर्फ बिछने से सेना का आवागमन प्रभावित है, तो सैलानियों के लिए स्टॉप पॉइंट दूर बनाए गए है। वहीं, चेतावनी यह है कि इस साल अधिक ठंड पड़ सकती है।
दिसंबर में पहाड़ों के घाटी वाले क्षेत्रों में सुबह से ही कोहरा छा रहा है और यह आलम इस बार मार्च के महीने तक रह सकता है। अक्टूबर की अत्यधिक बारिश से ज़मीन में नमी बनी है, जिससे कोहरे और बारिश की संभावना बढ़ गई है। वैज्ञानिक इस बारे में विस्तार से बता रहे हैं।
जीबी पंत हिमालय पर्यावरण संस्थान के निदेशक किरीट कुमार ने कहा कि पहला कारण ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव का है और दूसरा कारण इस बार अक्टूबर में हुई अधिक बारिश के चलते वातावरण में ज़्यादा नमी का। इससे होगा ये है कि यहां हाड़ कंपाने वाली ठंड के मौसम की अवधि करीब एक महीना और बढ़ जाएगी।
पूरे वर्षाकाल में 750 एमएम बारिश होती है, जबकि इस बार सिर्फ अक्टूबर में ही 300 एमएम से अधिक बारिश हो गई। लंबे समय तक अध्ययन करने वाले वैज्ञानिक संदीप मुखर्जी का भी मानना है कि यही अत्यधिक आर्द्रता का कारण है, जिससे अधिक ठंड बढ़ेगी और कोहरा भी रहेगा। यानी पर्यटकों के लिए मौसम सुहाना है लेकिन पहाड़ के निवासियों के लिए मुसीबत का पहाड़।