* जो जीव अपने मूल रंग को छोड़कर अन्य रंग को धारण करता है उस जीव का विनाश निश्चित होता है: मोरारी बापू
( ब्यूरो ,न्यूज़ 1 हिन्दुस्तान )
हरिद्वार । पतंजलि विश्वविद्यालय में आयोजित रामकथा जोकि ‘मानस गुरुकुल’विषय पर आधारित है, जिसका शुभारंभ हनुमान चालीसा से हुआ, जहां पर परम पूज्य स्वामी जी ने पतंजलि विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं के साथ एक भजन की प्रस्तुति पूज्य मोरारी बापू के समक्ष रखी। मंच पर आसीन मोरारी बापू ने पतंजलि के विद्यार्थियों की दिल से प्रशंसा की और कहा कि जहां पर स्वामी रामदेव व् आचार्य बालकृष्ण महाराज का आर्शीवाद हो ऐसे होनहार विद्यार्थियों को यहां पर सीचा जा रहा है, पर पल्लवित किया जा रहा है। इन विद्यार्थियों के मूल जिनके मूल में ‘वेद शास्त्रों रोपने का प्रयास किया जा रहा है। मोरारी बापू ने भक्ति पर बोलते हुए बताया कि जब भक्त अपने आराध्य में खोकर उसकी उपासना करता है, अपने इष्ट की आराधना करता है, उसकी स्तुति करता है तब उस भक्त में प्रीत का संचार होने लगता है वह अपने आराध्य की ओर इस प्रीत से खींचा चला जाता हैै।
भक्त जब प्रार्थना करता है तो उसमें अभिमानस आ जाती है जब उपासना करता है तो उसमें एकाकार की प्राप्ति होती है। जिसे महापुरुष शरणागति भी कहते है।
मोरारी बापू विद्यार्थियों को समझते हुए कहते है कि जब कभी भी आपको शीलवन्त साधु का दर्शन हो तो उसे बार-बार प्रणाम करना चाहिए, न कि किसी बलवान साधु को। जो मानव शील को धारण करता है, बल उसके पीछे-पीछे चलने लगता है। बल के बाद प्रतिष्ठा भी ऐसे मानव के साथ हो लेती है। और धन अनुगामी बनकर सदैव साथ चलता है। इसलिए मनुष्य को शीलता का परिचय देने की आवश्यकता है।
मोरारी बापू ने रूढ़िवादिता पर कटाक्ष करते हुए कहा कि एक समय ऐसा भी था जब संन्यासी न कोई गीत गा सकता था न कोई गीत बजा सकता था, न ही कोई नृत्य कर सकता था। यह सब संन्यासी जीवन में वर्जित था। मगर किसी ने इनमें रस देखने का प्रयास नहीं किया जबकि यह सब रस की श्रेणी में आते हैं यदि जीवन रस से दूर रहेगा, तो वह कभी भी प्रभु कृष्ण की प्राप्ति नहीं कर सकता रस से दूर रहना कृष्ण से दूर होने के बराबर है। जब कृष्ण को आ¬राध्य स्वीकारा जाता है तो उनके रसों को भी स्वीकारा जाना आवश्यक है।
आज संसार में चमत्कारों का दौर चल रहा है मुनष्य परपंच, फरैब, धोखा देने में आगे निकलता जा रहा है। ऐसे वातावरण के कारण सृष्टि में अंधकार फैलना आवश्यक है। इस अंधकार व इस समस्याओं का एक ही निराकरण है जोकि मानस में बताया गया है वह है मनुष्य को विप्र को स्वीकार करना चाहिए। जीवन में कभी भी किसी की निंदा नहीं करनी चाहिए। हमेशा निदान के प्रति अपना ध्यान लगाना चाहिए।
मुरारी बापू ने आज योग के प्रति सबको जागरूक करने की कोशिश भी की। सबसे अनुग्रह किया कि सब योग की शरण में आयें। योग के माध्यम से समाज में फैल रही बीमारियों को दूर करें। योग करने से काया निरोगी होती है, मनुष्य का उद्धार होता है।
मुरारी बापू ने उन दोहरे चरित्र वालों को भी आडे़ हाथों लिया और कहां जो जीव अपना मूल रंग बदला कर अन्य रंग को धारण कर लेता हो। ऐसा जीव चाहे किसी भी महापुरुष की शरण में ही क्यूं न हो ऐसे जीव का पतन अवश्य होता है।
इस अवसर पर स्वामी रामदेव महाराज ने कहा कि मोरारी बापू के मुख से निकला एक-एक शब्द, एक-एक वाक्यों पर एक-एक शास्त्रें की रचना की जा सकती है। बापू के वचनों से महापुरुषों का दर्शन, उनका मार्गदर्शन, उनका अनुग्रह प्राप्त होता है। उन्होने हम सब को मानस ब्रह्म सूत्र के आशीष से सबको कृतज्ञ किया। हम सभी उनका हृदय से आभार व्यक्त करते है।
राम कथा में आचार्य बालकृष्ण महाराज, उत्तराखण्ड सरकार के कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी, पदमसेन, माता प्रेमलता, साध्वी आचार्या देवप्रिया, डॉ. ऋतम्भरा शास्त्री, प्रो. महावीर अग्रवाल, ललित मोहन व श्रीमती शशी मोहन, बहन प्रवीण पूनीया, श्री निर्विकार, एन.सी. शर्मा सपत्नीक, बहन अंशुल, बहन पारूल, स्वामी परमार्थ देव, भाई राकेश कुमार, अनिल यादव, प्रो. के.एन.एस. यादव, प्रो. वी.के. कटियार व वी.सी. पाण्डेय के साथ-साथ पतंजलि विश्वविद्यालय के अधिकारी, शिक्षकगण, कर्मचारी तथा छात्र-छात्राओं, पतंजलि संन्यासाश्रम के संन्यासी भाई व साध्वी बहनों व विभिन्न प्रांतों से पधारे हजारों श्रद्धालुओं ने कथा श्रवण का लाभ लिया।