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बड़ी खबर : क्या वाकई ‘ संकट में है तीरथ सिंह रावत की कुर्सी ! क्या तीरथ सिंह रावत का उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद पर बने रहना संभव है? है तो कैसे और नहीं तो क्यों ?आखिर क्या है सच्चाई ? Tap कर जाने 

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( ब्यूरो ,न्यूज़ 1 हिन्दुस्तान )

देहरादून / दिल्ली। उत्तराखण्ड में 2022 में विधानसभा से पहले एक बार फिर उत्तराखंड राज्य में मुख्यमंत्री बदले जाने को लेकर कांग्रेस ने ‘ संवैधानिक संकट ‘का हवाला देकर बवंडर खड़ा कर दिया है। तो उधर भाजपा ने इसे महज ‘भ्रान्ति फ़ैलाने की कोशिस ‘कहकर रफा दफा किया है। लेकिन अब सवाल यह खड़ा होता है कि क्या तीरथ सिंह रावत का उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद पर बने रहना संभव है? है तो कैसे और नहीं तो क्यों? वास्तव में संकट यह है कि इस साल मार्च में रावत सीएम बनाए गए थे।  सामान्य नियम यह है कि किसी ऐसे नेता को सीएम बनाया जाए, जो विधायक न हो तो छह महीने के भीतर उसे विधायक का उपचुनाव जीतना होता है।  यहां पेंच फंस गया है क्योंकि उपचुनाव अभी संभव नहीं हो सकते। कांग्रेस की हरीश रावत सरकार में मंत्री रहे नवप्रभात ने हाल में इसी पेंच के हवाले से कहा था कि चूंकि विधानसभा चुनाव में अब एक साल से भी कम समय रह गया है इसलिए उपचुनाव हो नहीं सकता।  उन्होंने दावा किया था कि इस संवैधानिक संकट के चलते तीरथ सिंह रावत सीएम पद पर सितंबर के बाद नहीं रह सकेंगे।  यहां से बहस छिड़ गई कि नियम कायदे क्या हैं और भाजपा की रणनीति क्या है। 

उधर उत्तराखंड के सीएम पद पर रावत की नियुक्ति पर संकट संबंधी बयान को खारिज करते हुए भाजपा ने दो बातें प्रमुख तौर पर कहीं।  भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक ने कांग्रेस पर भ्रम फैलाने का आरोप लगाकर पहले यह कहा कि जब तीरथ सिंह रावत सीएम बने थे, तब विधानसभा चुनाव होने में एक साल से ज़्यादा का समय बाकी था।  दूसरी बात कौशिक ने यह कही कि चुनाव करवाना चुनाव आयोग का काम है।  ‘कल चुनाव भी करवा लिया जाए, तो हमारी पार्टी तैयार है। ‘ कांग्रेस और भाजपा के इस वाद विवाद में आपको संवैधानिक नियम कायदों को समझना चाहिए। 
क्या कहता है सेक्शन 151A?
रिप्रेज़ेंटेशन ऑफ द पीपल एक्ट के सेक्शन 151A के तहत चुनाव आयोग के लिए अनिवार्य है कि वह संसद या विधानसभा में किसी भी सीट के खाली होने के छह महीने के भीतर उपचुनाव करवाए।  इस एंगल से उत्तराखंड में दो विधानसभा सीटें खाली हुई हैं।  22 अप्रैल को विधायक गोपाल रावत के गुज़रने के बाद गंगोत्री और पिछले दिनों इंदिरा हृदयेश के निधन से हल्द्ववानी सीटें खाली हो गई हैं  ।  तो आयोग को यहां इस साल अक्टूबर से दिसंबर के बीच चुनाव करवाने होंगे। लेकिन क्या उपचुनाव टाले जा सकते हैं?


क्या कर सकता है चुनाव आयोग?
सेक्शन 151A के हिसाब से छह महीने के भीतर चुनाव करवाए जाने चाहिए, लेकिन सवाल है कि अगर विधानसभा चुनाव में साल भर से कम का समय बाकी हो, तो खाली सीट पर उपचुनाव को टाला जा सकता है? चुनाव आयोग के वैधानिक सलाहकार के तौर पर 50 सालों तक सेवा देने वाले एसके  मेहंदीरत्ता की मानें तो आयोग इस स्थिति में बेशक उपचुनाव करवा सकता है, भले ही एक साल के भीतर विधानसभा चुनाव होने ही हों। 
उदाहरण के तौर पर, ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री गिरधर गमांग 1998 में लोकसभा सदस्य चुने गए थे, लेकिन 1999 में उन्हें मुख्यमंत्री पद मिला।  उनकी नियुक्ति के समय से एक साल से भी कम समय के भीतर 2000 में विधानसभा चुनाव होने ही थे, फिर भी गमांग 1999 में उप चुनाव के ज़रिये विधायक बने थे।  अन्य विशेषज्ञ भी यही मानते हैं कि साल भर के भीतर चुनाव होने की स्थिति में उपचुनाव टालना कोई तयशुदा नियम नहीं है, बल्कि यह प्रशासनिक सुविधा की बात ज़्यादा है। 
गौरतलब है कि उत्तराखंड में पौड़ी गढ़वाल सीट से लोकसभा सांसद तीरथ सिंह रावत को पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह मार्च 2021 में मुख्यमंत्री बनाया गया था।  कांग्रेस ने दावा किया कि उपचुनाव संभव नहीं होने की वजह से रावत का सीएम पद पर बने रहना ‘संकट’ की स्थिति होगी, लेकिन विशेषज्ञ बता रहे हैं कि उप चुनाव करवाए जा सकते हैं। 

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