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उत्तराखण्ड विधानसभा चुनाव 2022 : पंजाब के बाद अब उत्तराखण्ड में भी उठी वोटिंग डेट बदलने की आवाज़। आखिर क्या है चार बड़ी वजहें और किसने उठाई ? Tap कर जाने

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( ब्यूरो ,न्यूज़ 1 हिन्दुस्तान )
देहरादून / हरिद्वार। विधानसभा चुनाव की तारीखों के चुनाव आयोग के ऐलान के बाद जहा पंजाब में मतदान की तारीखों का आयोग ने बदलाव कर दिया है। वही अब उत्तराखण्ड में भी तारीखों के बदलाव की मांग उठाने लगी है। 
आपको बता दे कि पंजाब में सीएम चन्नी समेत सभी राजनीतिक दलों ने 16 फरवरी को रविदास जयंती के कारण चुनाव आयोग से मतदान की तारीख आगे बढ़ाने की मांग की थी।  आयोग ने पंजाब में 14 फरवरी की जगह मतदान की तारीख छह दिन आगे बढ़ाते हुए 20 फरवरी कर दी।  अब उत्तराखंड में भी ये मांग तेज़ी से उठने लगी है।  हरिद्वार के झबरेड़ा से बीजेपी विधायक देशराज कर्णवाल ने चुनाव आयोग को पत्र भेजकर यह मांग की है. इसके अलावा कुछ और नेता व सामाजिक कार्यकर्ता भी ऐसी मांग कर रहे हैं। 
कर्णवाल का कहना है कि उत्तराखंड में भी रविदास जयंती पर बड़ी संख्या में लोग वाराणसी जाते हैं।  उन्होंने कहा कि मैं खुद हर साल वाराणसी जाता हूं, लेकिन 14 फरवरी को मतदान की तारीख होने के कारण यह संभव नहीं हो सकेगा।  कर्णवाल ने मांग की है कि पंजाब की तरह उत्तराखंड में भी मतदान की तारीख आगे बढ़ाने पर विचार किया जाए।  दूसरी ओर समाज के विभिन्न वर्गों से भी अलग-अलग वजहों से मतदान की तिथि आगे बढ़ाने की मांग उठ रही है। इन कारणों में सबसे प्रमुख कारण मौसम उभरकर सामने आ रहा है, तो पलायन को लेकर भी एक चिंता है। 

क्या है फरवरी में मौसम फैक्टर?
उत्तराखंड विधानसभा के पूर्व सचिव सेवानिवृत जगदीश चंद्र कहते हैं कि उत्तराखंड में फरवरी में उच्च हिमालयी क्षेत्रों में ठंड और बर्फबारी के हालात के मद्देनज़र चुनाव आयोग को मतदान तिथि बढ़ाने पर विचार करना चाहिए।  पर्यावरणविद कल्याण सिंह रावत का कहना है कि सीमांत ज़िलों चमोली, पिथौरागढ़, उत्तरकाशी में कई मतदान केंद्र हाई एल्टीटयूड वाले एरिया में हैं।  फरवरी में बर्फ के मौसम के कारण मतदाताओं को मुश्किल होती है। मतदान प्रतिशत पर भी असर पड़ता है।

तो कब होनी चाहिए वोटिंग की तारीख?
चुनाव आयोग ने पिछले दिनों चुनाव कार्यक्रम घोषित करते हुए एक चरण में 14 फरवरी को ही उत्तराखंड में वोटिंग संपन्न कराए जाने की घोषणा की थी।  इसमें बदलाव की मांग उठ रही है।  कल्याण सिंह रावत का कहना है कि आयोग को मतदान तिथि मार्च के पहले हफ्ते तक खिसका देना चाहिए। पिछले कुछ दिनों से सोशल डेवलपमेंट फॉर कम्युनिटीज़ संस्था के प्रमुख अनूप नौटियाल भी इस तरह की मांग कर रहे हैं। वह 27 फरवरी से मार्च के दूसरे हफ्ते में मतदान की तारीख ठीक मान रहे हैं। 
कोविड और पलायन के कारणों पर भी चर्चा
उत्तराखंड में जिस तरह से कोविड के मामले बढ़ रहे हैं, उनके मद्देनज़र भी वोटिंग की तारीख बढ़ाए जाने की मांग की जा रही है।  इसके अलावा, नौटियाल पहाड़ी इलाकों से बड़ी संख्या में लोगों के प्रवासी होने को भी वजह बताते हैं।  उनका कहना है कि चुनाव अगर किसी रविवार को करवाया जाए, तो दिल्ली या पंजाब आदि राज्यों में रोज़गार के लिए गए उत्तराखंडी वोटरों के लिए वोटिंग करने आना आसान होता है। 
पहले कब होते रहे हैं चुनाव?
चुनाव का रिकॉर्ड देखा जाए तो उत्तराखंड में जनवरी या फरवरी मध्य में ही मतदान हुआ है।  2002 में जब उत्तराखंड में पहला विधानसभा चुनाव हुआ था, तब भी 14 फरवरी को मतदान हुआ था. 2007 के विधानसभा चुनाव में 21 फरवरी, 2012 में 30 जनवरी और 2017 में 15 फरवरी को मतदान हुआ था।  चारों चुनाव में मतदान प्रतिशत 50 फीसदी से ऊपर रहा. 2012 में जब 30 जनवरी को मतदान हुआ था, तब राज्य में अब तक का सर्वाधिक 66.17 फीसदी मतदान हुआ था। 

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