( ब्यूरो ,न्यूज़ 1 हिन्दुस्तान )
हरिद्वार। भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हरछठ का त्योहार मनाया जाता है। इसे हलषष्ठी, ललई छठ और ललही छठ के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व बलराम जी को समर्पित है। मान्यता है कि इस दिन भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था। ऐसा माना जाता है कि द्वापर युग में श्रीकृष्ण के जन्म से पहले शेषनाग ने बलराम के रूप में जन्म लिया था। हरछठ का व्रत संतान की दीर्घ आयु और उनकी सम्पन्नता के लिए किया जाता है। इस दिन माताएं संतान की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं और पूजा करती हैं। इस व्रत को करने से पुत्र पर आने वाले सभी संकट दूर हो जाते हैं। ऐसे में चलिए जानते हैं हरिद्वार स्थित नारायणी शिला के मुख्य सेवक ज्योतिषाचार्य पंडित मनोज त्रिपाठी हलषष्ठी व्रत की तिथि, मुहूर्त, महत्व और पूजा विधि…
हरछठ तिथि
पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि की शुरुआत 4 सितंबर 2023 को शाम 04 बजकर 41 मिनट पर हो रही है। इसका समापन अगले दिन 5 सितंबर 2023 को दोपहर 03 बजकर 46 मिनट पर होगा। उदया तिथि को देखते हुए इस साल हलषष्ठी 5 सितंबर 2023 को मनाया जा रहा है।
हरछठ पूजा विधि
* हलछठ वाले दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें।
* इसके बाद साफ कपड़े पहनकर गोबर ले आएं।
* फिर साफ जगह पर गोबर से पुताई कर तालाब बनाएं।
* इस तालाब में झरबेरी, ताश और पलाश की एक-एक शाखा बांधकर बनाई गई हरछठ को गाड़ दें।
*अंत में विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना करें।
* पूजा के लिए सात तरह के अनाज जैसे गेहूं, जौ, अरहर, मक्का, मूंग और धान चढ़ाएं इसके बाद हरी कजरियां, धूल के साथ भुने हुए चने चढ़ाएं।
* आभूषण और हल्दी से रंगा हुआ कपड़ा भी चढ़ाएं।
* फिर भैंस के दूध से बने मक्खन से हवन करें। अंत में हरछठ की कथा सुनें।
पूजा के बाद के महिलाएं भैंस के दूध से बने दही और महुआ को पलाश के पत्ते पर खाती हैं और व्रत का समापन करती हैं। इस व्रत को करने से व्रती को धन, ऐश्वर्य आदि की प्राप्ति होती है।
हरछठ व्रत महत्व
हरछठ व्रत के दिन महिलाएं अपनी संतान की लंबी उम्र और उनके सुखी जीवन के लिए पूजा करती हैं। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। साथ ही जीवन में खुशियां आती हैं ।