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बड़ी खबर : उत्तराखण्ड में जीत की उम्मीद में कांग्रेस शायद इसीलिए पी गई अपमान का घूंट ,पूर्व CM सीएम हरीश रावत का भी समर्पण। आखिर क्यों ? Tap कर जाने

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( ब्यूरो ,न्यूज़ 1 हिन्दुस्तान )
देहरादून। एक पुरानी कहावत है कि ‘राजनीती में ना कोई मित्र होता है और ना ही शत्रु ‘किसी हदतक उत्तराखण्ड कांग्रेस के लिए यह कहावत सही बैठ रही है। कांग्रेस में हरक सिंह रावत की वापसी शायद इसी की बानगी हो सकती है। पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव में कांग्रेस उत्तराखंड की ओर बेहद उम्मीदों से देख रही है। जीत की उम्मीद में वह उस अपमान के घूंट को भी पी गई, जिसका विलाप वह पिछले पांच साल से करती आ रही थी।कांग्रेस आलाकमान के फैसले के आगे पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी समर्पण कर दिया। भाजपा से निकाले गए डॉ. हरक सिंह रावत भी जिद के पक्के निकले और वह कांग्रेस के दरवाजे से तब तक नहीं हटे जब तक कांग्रेस आलाकमान ने उनके लिए दरवाजा नहीं खोल दिया। हरीश रावत खेमे ने हरक सिंह रावत को कांग्रेस में आने से रोकने के लिए एडी चोटी का जोर लगा दिया था। 

रावत समर्थक विधायक मनोज रावत से लेकर राज्य सभा सांसद प्रदीप टम्टा तक ने लोकतांत्रिक मूल्यों की दुहाई देते हुए हरक का मुखर विरोध किया था। लेकिन पांच दिन के लंबे इंतजार के बाद हरक सिंह को कथित माफी के बाद कांग्रेस में एंट्री मिल गई।
सियासी हलकों में यह सवाल तैर रहा है कि आखिर कांग्रेस की ऐसी क्या मजबूरी रही कि उसे हरक सिंह रावत के दरवाजे खोलने पड़े? इसके जवाब में सियासी जानकार कहते हैं कि हरक सिंह को कांग्रेस तुरुप इक्के के तौर पर देख रही है। पंजाब, गोवा, उत्तरप्रदेश, मणिपुर और उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। उत्तरप्रदेश में कांग्रेस की हालत पतली है। पंजाब में भी उसकी सत्ता में वापसी बेहद चुनौतीपूर्ण मानी जा रही है। खुद कांग्रेस से जुड़े सूत्र मानते हैं कि उत्तराखंड राज्य में कांग्रेस को सत्ता में वापसी की उम्मीद नजर आ रही है। 
उम्मीद की किरण को रोशन करने के लिए कांग्रेस राज्य में हर वह दांव और पैंतरा चलना चाहती है जो उसे चुनावी फायदा दे सकता है। इसके लिए उसने हरक सिंह रावत के लिए भी रेड कार्पेट बिछा दी, जिन्होंने 2016 में उसे महा सियासी संकट में डाल दिया था। तब हरीश रावत मुख्यमंत्री थे और अपनी सरकार को महासंकट में डालने वालों को उन्होंने लोकतंत्र के महापापी की मिसाल दी थी। पांच साल उन्हें उज्याडू बल्द कहकर धिक्कारते रहे, लेकिन चुनावी सियासत और सत्ता की चाल के आगे उनके ये सारे आरोप और मिसालें हरक सिंह रावत की वापसी के साथ ही मिथ्या हो गए। 

राजनीतिक प्रेक्षकों की राय में चुनावी गणित को अपने पक्ष में हल करने के लिए कांग्रेस हरक सिंह को एक अचूक सूत्र के तौर पर देख रही है। कांग्रेस को लग रहा है कि हरक सिंह कम से कम गढ़वाल लोकसभा की विधानसभा सीटों पर उसे बढ़त दिलाने में मददगार साबित हो सकते हैं। इसलिए सत्ता की लालसा के आगे राजनीतिक शुचिता को भी कांग्रेस ने दांव पर लगा दिया। 
उत्तराखंड कांग्रेस सीधे-सीधे दो बड़े खेमों में बंटी दिखाई दे रही है। एक खेमे का पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गणेश गोदियाल का है तो दूसरा खेमा नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह और अन्य नेताओं का है। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा से दो बड़े दिग्गज यशपाल आर्य और हरक सिंह रावत कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। यशपाल आर्य कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं और हरक सिंह कांग्रेस में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका निभा चुके हैं। दोनों नेताओं के आने से कांग्रेस में उनके पुराने समर्थक में नई जान आ गई है। सियासी जानकारों का मानना है कि दोनों दिग्गजों के आने से पार्टी में दो और पावर सेंटर तैयार हो सकते हैं। शुरुआती दौर में प्रीतम खेमे का पलड़ा कुछ भारी होता दिखाई दे रहा है।

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