( ब्यूरो ,न्यूज़ 1 हिन्दुस्तान )
रुद्रपुर / पिथौरागढ़। उत्तराखण्ड विधानसभा चुनाव में नाम वापसी के बाद तस्वीरें हो चुकी है कि किस सीट पर मुकबला कितना रोचक होगा ? फिर भी मुक़ाबले के लिहाज से उत्तराखण्ड की तीन सीटें काफी दिलचस्प हो रही है। क्योंकि यहां कांग्रेस के सामने चुनौतियां अच्छी खासी दिख रही हैं। पिथौरागढ़ सीट पर जहां लंबे समय से पंत परिवार बनाम मयूख महर मुकाबले में भाजपा को बढ़त मिल चुकी है, तो वहीं, किच्छा सीट पर कांग्रेस के एक बागी ने लंबे समय से भाजपा के गढ़ को भेदने की कांग्रेस की राह में रोड़ा अटका रखा है। इसके साथ ही यमकेश्वर सीट ऐसी है, जहां कभी कोई पुरुष उम्मीदवार नहीं जीता और कांग्रेस को जीत हासिल नहीं हुई।
पहले बात करते हैं कि पिथौरागढ़ के रोचक मुकाबले की। बीजेपी से जुड़े पंत परिवार से स्व. प्रकाश पंत और कांग्रेस के मयूख महर के बीच पहला मुकाबला 2002 के चुनाव में हुआ था। तब पंत ने तकरीबन 5000 वोट से जीत दर्ज की थी। 2007 के चुनाव में महर ने कनालीछीना से चुनाव लड़ा और पहली बार विधायक बने। पंत पिथौरागढ़ से लगातार दूसरी बार एमएलए चुने गए। 2012 में फिर यही मुकाबला हुआ तो महर ने 13,000 से ज़्यादा वोटों के अंतर से जीत दर्ज की। पिछले चुनाव यानी 2017 में पंत की पत्नी चंद्रा पंत को बीजेपी ने टिकट दिया और वह विधायक बनीं. इस बार भी चंद्रा का सीधा मुकाबला महर से ही है।
पंत परिवार को मिल चुकी है बढ़त
अब महर अपने कार्यकाल में हुए विकास कार्यों को जीत का आधार बता रहे हैं। महर के मुताबिक पांच साल में उन्होंने पिथौरागढ़ में विकास के जितने काम किए, वो पंत परिवार 15 सालों के कार्यकाल में भी नहीं कर पाया। पंत परिवार और महर के बीच रोचक मुकाबले में अब तक पंत परिवार दो-एक से आगे रहा है। इस बार भी यहां काफी दिलचस्प मुकाबले की उम्मीद साफ नज़र आ रही है।
बागी हरीश पनेरू बने कांग्रेस के लिए सिरदर्द
किच्छा सीट पर कांग्रेस ने तिलकराज बेहड़ को टिकट दिया, जिनका विरोध कई दावेदार कर रहे थे। बेहड़ पांच रूठे दावेदारों को मनाकर डैमेज कंट्रोल कर चुके हैं, लेकिन बगावत कर निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में ताल ठोक रहे पार्टी के प्रदेश महामंत्री हरीश पनेरू ने पार्टी पर अन्याय के आरोप लगाए हैं। बेहड़ को टिकट देने से नाराज़ प्रदेश प्रवक्ता गणेश उपाध्याय का भी कहना है कि टिकट वितरण में पार्टी ने अपने नियम तोड़ दिए।
इधर, बेहड़ का कहना है कि अधिकांश असंतुष्टों को मनाया जा चुका है और शेष को मना लिया जाएगा। गौरतलब है कि किच्छा सीट 2017 और 2012 के पिछले दो चुनाव से बीजेपी के हाथ ही लगी है इसलिए यहां कांग्रेस के सामने चुनौती बड़ी है। ऐसे में, कांग्रेस को पार्टी के भीतर की इस कलह से निपटना ही होगा।