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बड़ी खबर : पांच राज्यों के चुनाव परिणाम से तय हो जायेगा देश के अगले राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का गणित। आखिर कैसे ? Tap कर जाने

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( सुनील तनेजा )
नई दिल्ली। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव का गणित अभी खत्म नहीं हुआ है ,और 10 मार्च को इन पांचो राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम आ जाने के बाद देश में एक बार फिर से राजनीतिक गुणा-भाग का दौड़ शुरू हो जाएगा।  क्योंकि, इस साल ही देश के लिए नए राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चयन होना है।  राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में राज्य के विधानसभाओं और उनके प्रतिनिधियों की भी भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है।  ऐसे में हाल ही में संपन्न होने वाला विधानसभा चुनाव परिणाम बहुत हद तक देश की राजनीतिक दिशा तय कर सकता है।  ऐसे में अगर क्षेत्रीय दलों का दबदबा होता है तो जाहिर है कि संभावित राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में देश की दो बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों को क्षेत्रीय दलों से गंभीर चुनौती मिल सकती है। 
राजनैतिक जानकार मानते हैं कि अगर सत्ता पक्ष का समीकरण बिगड़ता है तो क्षेत्रीय दलों के सहयोग के बिना कोई भी गठबंधन अपने पसंद का राष्ट्रपति नहीं बना सकता है।  इसके साथ ही कई राजनेताओं और पार्टियों का भविष्य भी इस चुनाव के बाद तय होना है।  अगर पिछले कुछ दिनों में राजनीतिक मुलाकातों पर नजर डालें तो यह स्थिति और स्पष्ट हो जाती है। 
क्षेत्रीय दलों की भूमिका कितना अहम?

आपको बता दें कि पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव से शुरू हुई क्षेत्रीय पार्टियों की सक्रियता अब सतह पर आ गई है।  दिलचस्प है इन क्षेत्रीय पार्टियों का उदय तो क्षेत्रीय मुद्दों पर हुई हैं, लेकिन अब एक हो कर राष्ट्रीय पार्टियों खासकर बीजेपी और कांग्रेस को चुनौती देने का मन बना रही हैं।  हालांकि, यह आसान नहीं है क्योंकि एक दूसरे के खिलाफ इनका टकराव भी जगजाहिर है। 
क्या क्षेत्रीय दलों मे एकजूटता रहेगी बरकरार ?
पंजाब के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सीधी टक्कर आप और अकाली दल से है तो वहीं गोवा में ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी आप को विधानसभा में घुसने के विरोध में खड़ी है।  यही कारण है कि ममता यूपी के चुनाव में अखिलेश के साथ मिलकर बीजेपी को ललकार रही है, लेकिन पंजाब में कहीं नहीं दिखती है।  जाहिर इन पार्टियों के हितों का दायरा बहुत ही संकुचित है। 
किस दल की भूमिका होगी अहम ?

दूसरी तरफ, दक्षिण की क्षेत्रीय पार्टियां में इन दिनों दिल्ली में दखल को लेकर बैचेनी बढ़ी है।  भाजपा विरोधी अभियान के नाम पर इसी रविवार को तेलगांना के सीएम के चंद्रशेखर राव महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के साथ-साथ एनसीपी प्रमुख शरद पवार से मुम्बई में मुलाकात की।  इस मुलाकात के बाद दोनों मुख्यमंत्रियों ने प्रेस वार्ता कर अपने मकसद को भी साफ किया।  दोनों इस बात से सहमत थे कि देश की राजनीति में बदलाव की जरूरत है और इस मुलाकात को एक नई शुरुआत के तौर पर देखने की जरूरत है। 
दक्षिण भारत का गणित कितना होगा असरदार ?

अभी कुछ दिन पहले ही तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएमके नेता स्टालिन ने एक नई रणनीति के साथ आगे बढ़ने की कोशिश में दिख रहे हैं।  स्टालिन ने देश की छोटी-बड़ी 65 राजनीतिक दलों को एक साथ आने का न्योता दिया है।  इसके लिए उन्होंने सामाजिक न्याय मोर्चा का गठन किया है।  दक्षिण भारत से उठी यह नई राजनीतिक चेतना वास्तव में देश में शुरू हुई हिन्दुत्ववादी राजनीति का प्रतिशोध मात्र नहीं है। 
बीजेपी और कांग्रेस का गणित

RSS प्रमुख मोहन भागवत और सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के बीच मुलाक़ात से गरमाई यूपी की सियासत

वास्तव में इन क्षेत्रीय पार्टियों के निशाने पर फिलवक्त संभावित राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव है।  लोकसभा चुनाव से पहले इन राजनीतिक कसरतों के बहाने इन पार्टियों ने वास्तव में बीजेपी और कांग्रेस से बेहतर बारगेंनिग हो, इसके लिए मजबूत प्लेटफार्म बनाने में सक्रिय हैं। 
क्या कहते हैं जानकार
राजनीतिक विश्लेषक सुनील पांडेय इसे बहुत गंभीरता से नहीं लेते हैं।  वे कहते हैं, ‘इन क्षेत्रीय पार्टियों का स्वार्थ इतना सीमित होता है कि इनके बिखरने में देर नहीं लगती है। हां, मान-मनोब्वल में कुछ पाने में कामयाब होते रहे हैं।  जबकि भाजपा के सूत्रों से मिल रही जानकारी के अनुसार इस बार देश के प्रथम व्यक्ति के तौर पर चयन होने वालों में दक्षिण भारतीय को प्राथमिकता मिलने के संकेत मिल रहे हैं। ऐसे में क्षेत्रीय पार्टियों की एकता एकबार फिर से कुंद हो सकती है। 
भारत के वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद 24 जुलाई 2022 को सेवानिवृत्त हो जाएंगे।  वहीं, उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू 10 अगस्त को सेवानिवृत्त हो जाएंगे।  ऐसे में इन पांच राज्यों के चुनाव परिणाम से साफ हो जाएगा कि अगला राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनने में मौजूदा सत्ता पक्ष के लिए कितना आसान होगा और कितना मुश्किल। 

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