( ब्यूरो ,न्यूज़ 1 हिन्दुस्तान )
देहरादून। इंदिरा हृदेश उम्र के 80 के पड़ाव में पिछले कुछ समय से लगातार बीमार चल रही थी। कुछ दिनों पूर्व ही कोरोना को हरा कर लौटी थी। इस बीच रविवार को सुबह दिल्ली में उन्होंने प्राण त्यागा। पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा और नारायण दत्त तिवारी के दौर में राजनीति को जीने वाली स्वर्गीय हृदयेश का कद ऐसा था कि 20 साल की उम्र वाले उत्तराखंड राज्य में वो नेताओं और विधायकों के बीच ‘दीदी’ के नाम से जानी जाती थीं । क्या कांग्रेस, क्या भाजपा, दीदी के पास सभी सलाह-मशविरा करने आते थे ?
गौरतलब है कि 2016 में जब उत्तराखंड कांग्रेस में बगावत हो गई थी और पूर्व सीएम विजय बहुगुणा, हरक सिंह रावत, सुबोध उनियाल समेत 10 विधायक बीजेपी में शामिल हो गए थे। तब प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लग गया था। ऐसे समय में हरीश रावत की सरकार के साथ जो नेता लोहे की दीवार की तरह खड़ी रही थीं, वो थीं इंदिरा हृदयेश। कई मौके ऐसे आए जब राजनीतिक तौर पर हरीश रावत और इंदिरा हृदयेश के बीच मतभेद दिखे, लेकिन संकट के समय हृदयेश ने रावत का साथ नहीं छोड़ा। बतौर नेता विपक्ष और संसदीय कार्यमंत्री स्वर्गीय हृदयेश की बातों की काट ढूंढना मुश्किल था। संसदीय मामलों में बीजेपी के नेता भी उनसे सलाह करते थे। उनको याद करते हुए पूर्व सीएम विजय बहुगुणा ने बताया कि स्वर्गीय इंदिरा हृदयेश पहली व्यक्ति थीं, जिन्होंने उनको राजनीति में आने की सलाह दी थी। जब उनके पिताजी और यूपी के पूर्व सीएम हेमवती नंदन बहुगुणा का निधन हो गया था।
1974 में पहली बार उत्तर प्रदेश विधान परिषद में बतौर शिक्षक नेता चुन कर पहुंचीं इंदिरा हृदयेश अक्सर कहती थीं, राजनीति में सम्बन्ध ही सब कुछ हैं । विचारधारा अलग हो सकती है, लेकिन मनमुटाव के लिए राजनीति में कोई जगह नहीं है।
1941 में कुमायूं के ब्राह्मण परिवार में जन्मी स्वर्गीय हृदयेश उत्तर प्रदेश विधान परिषद में लगातार मेंबर रहीं। जब 2000 में यूपी से अलग होकर उत्तरांचल (बाद में उत्तराखंड) राज्य बना, तब वह विपक्ष की नेता रहीं। 2002 चुनाव में वो हल्द्वानी से चुनकर विधानसभा में पहुंचीं और नारायण दत्त तिवारी की सरकार में सबसे ताकतवर मंत्री के तौर पर उभरकर सामने आईं। PWD मंत्री के तौर पर उन्होंने पहचान छोड़ी। हालांकि 2007 के चुनाव में इंदिरा हृदयेश हल्द्वानी से हार गईं और ये टीस हमेशा उनके मन में रही। 2022 में होने वाले चुनावों के लिए वो काफी सक्रिय थीं। दो दिन पहले कांग्रेस के तेल की बढ़ती कीमतों के विरोध में हुए प्रदर्शन के दौरान वह नजर आईं। इंदिरा हृदयेश के जाने के बाद उत्तराखंड कांग्रेस में पहले से ही बना वैक्यूम अब और गहरा गया है।