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हरकी पैड़ी पर गंगा नहीं शहर बह रहा है और कुंभ 2021की तैयारी चल रही है ,हरकी पैड़ी गंगा पर है तो 200 मीटर पीछे हटो। आखिर क्यों ? जाने 

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( रतनमणी डोभाल )
हरिद्वार।
शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक ने हर की पैड़ी पर गंगा लाने के लिए देहरादून में बैठक की। हरीश रावत सरकार ने हरकी पैड़ी पर बहने वाली जलधारा को गंगा के स्थान पर स्कैप चैनल ( नहर ) घोषित कर दिया था। आवास सचिव आर मीनाक्षी सुंदरम ने नए नामकरण का आदेश जारी किया था। हालांकि सिंचाई सचिव आनंदवर्धन ने इसको अपने अधिकार का अतिक्रमण मानते हुए आपत्ति करते हुए पत्र लिखा था। लेकिन मुख्यमंत्री के इसमें शामिल होने पर उन्होंने पीछे हटना ही बेहतर समझा।


अब हर की पैड़ी पर गंगा नहीं शहर बह रही है और कुंभ 2021की तैयारी चल रही है। सवाल यह उठ रहा है कि कुंभ कहां मथा जाए और अमृत कहां निकाला जाए। नहर में या गंगा में। शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक हर की पैड़ी पर गंगा लाने के लिए भगीरथ बनने का प्रयास कर रहे हैं। देहरादून की बैठक में इसका उल्लेख किया गया है कि कर्नल काटले की 1940 में प्रकाशित पुस्तक में गंगा की अविरल धारा का वर्णन किया गया है। 1916 में गंगा सभा और महामना पंडित मदनमोहन मालवीय के साथ ब्रिटिश हुक्मरान ने हर की पैड़ी पर गंगा की अविरल धारा का समझौता किया था। इससे कोई इंकार नहीं कर सकता है।
असली के दशक तक हर की पैड़ी निर्विवाद रूप से गंगा में थी।यह स्थिति ज्वालापुर से दुधाधारी चौक तक बाईपास मार्ग बनने से बदला है। पहले हर की पैड़ी से नील धारा तक गंगा नदी ही थी। बाईपास बनाने से गंगा बंट गई और डैम का बंधा हुआ जल ही अधिक हर की पैड़ी पर आता है जिसके विरोध ब्रिटिश के खिलाफ धार्मिक संग्राम हुआ था।


हर की पैड़ी क्षेत्र में गंगा को प्रदूषित किए जाने के खिलाफ उत्तर प्रदेश के एक श्रद्धालु आरके जायसवाल ने उच्च न्यायालय इलाहाबाद में जनहित याचिका दाखिल कर गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए सरकार को आदेश देने की मांग की।उनकी याचिका पर हाईकोर्ट ने प्रमुख सचिव सहित गंगा नदी के  किनारे के 32 शहरी क्षेत्रों से संबंधित जिलाधिकारियों को तलब किया था। वर्ष 1997 में हाईकोर्ट ने स्वतंत्र रूप से जल पुलिस का गठन करने का आदेश था। जिसको गंगा को प्रदूषित करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करनी थी। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने गंगा से 200 मीटर की परिधि में किसी भी प्रकार की निर्माण गतिविधियों को अनुमन्य नहीं करने का आदेश दिया था।
गंगा से 200 मीटर की परिधि में निर्माण पर प्रतिबंध का आदेश  ने हरिद्वार विकास प्राधिकरण के लिए जबरदस्त कमाई का द्वार खोला। उसने अपनी सुविधा के अनुसार कभी हर की पैड़ी को गंगा मानकर भवन निर्माण का नक्शा पास नहीं किया और अवैध निर्माण होने पर अवैध वसूली की। अवैध निर्माणों में ध्वस्तीकरण का आदेश पारित कराने की तो बोली ही लगने लगी थी। ध्वस्तीकरण आदेशों की संख्या हजारों में है जिनकी फाइल बंद हो चुकी है। जब मन करा 200 गंगा नदी से नाप लिया और जब मन किया  हर की पैड़ी से नाप लिया।
उत्तराखंड राज्य बनने के बाद लोकायुक्त जस्टिस रजा ने हाईकोर्ट इलाहाबाद के आदेश के अनुपालन में जल पुलिस के अलग से गठन होने तक वर्तमान पुलिस व्यवस्था में ही गंगा घाटों पर जल पुलिस नियुक्त करने का आदेश दिया था। कागजों में जल पुलिस घाटों पर आज भी तैनात है, लेकिन व्यवहार में नहीं है।


इलाहाबाद हाईकोर्ट का 1997 का आदेश आज भी विद्यमान है। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के अनुपालन में ही 2000 के बाद गंगा किनारे हुए निर्माणों को ध्वस्त करने का आदेश दिया था। इसके बाद एनजीटी ने भी गंगा से 200 मीटर परिधि निर्माण नहीं देने का आदेश दिया था।  प्राधिकरण को अवैध निर्माणों पर बुलडोजर चलाना था। जिससे उसके घूस खाउ अधिकारी पसीना पसीना हो गए थे।ध्वस्तीकरण में उन्हें अपनी पोल खुलने की उम्मीद थी इसलिए उनकी सलाह पर अवैध निर्माणकर्ताओं ने तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत पर डोरे डाले और उनके हित साधने के लिए उन्होंने गंगा को नहर घोषित कराकर हाईकोर्ट व एनजीटी के आदेश का निष्प्रभावी बना दिया। इस प्रकार गंगा से 200 मीटर की तलवार म्यान में चली गई।


चतुर राजनीतिक खिलाड़ी हरीश रावत अब इस पर भाजपा सरकार को ही कटघरे में खड़ा कर रहे हैं।उनका कहना कि उनसे गंगा को नहर बनाने की गलती हो गई है। जिसको भाजपा सरकार ठीक कर दे। सरकारों के निर्णय बदले भी जाते हैं।गलत है तो वह सुधार कर दें। हरीश रावत जानते हैं कि यह काम इतना आसान नहीं है क्योंकि तब उसको गंगा से 200 मीटर की परिधि से 2000 के बाद के निर्माण हटाने होंगे।तब वह इसकी मांग को लेकर भाजपा सरकार को घेरेंगे। उन्होंने भाजपा सरकार को फंसा दिया है नहर कहे तो मुश्किल गंगा कहे तो मुश्किल।जो लोग हर की पैड़ी पर गंगा मांग रहे हैं उन्हें 200 मीटर पीछे हरकर व्यवसाय के नहीं गंगा के प्रति श्रद्धा दिखानी होगी !

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