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उत्तराखण्ड की त्रिवेंद्र रावत सरकार  के तीन साल पुरे होने पर आखिर क्या कहाँ कांग्रेसी किशोर उपाध्याय ने ? जाने किशोर की जुबानी 

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  *“श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की सबसे बड़ी उपलब्धि तीन साल मुख्यमन्त्री बने रहना है।”  
(ब्यूरो ,न्यूज़ 1 हिन्दुस्तान )
देहरादून।
आज का दिन उत्तराखंड की राजनीति में एक काले धब्बे के रूप में अंकित है, जब 2016 में कांग्रेस की सरकार को गिराने का पाप भाजपा ने किया था, मैं उसकी अगली कड़ी लिखता, लेकिन आज के हालात कुछ और ही कह रहे हैं।
जब पूरी दुनिया “कोरोना” की दहशत में है, राष्ट्रपति से लेकर चपरासी तक डरा हुआ है। ऐसा तो नहीं है कि Virus बड़े-छोटे का भेदभाव करेगा, एक समय जिनके साम्राज्य में सूर्य अस्त नहीं होता था, उसका स्वास्थ्य मन्त्री कोरोना की चपेट में हैं तो स्थिति की गम्भीरता को समझना चाहिये था।
मैं पिछले तीन दिन से देख रहा हूँ किस तरह जनता के पैसे का उपयोग अपनी झूठी प्रशस्ति में किया जा रहा है।उस पैसे को अगर कोरोना के रोकथाम में लगाया जाता तो कितनी अच्छी बात होती।मैं पूरे देश की बात नहीं कर रहा, लेकिन देश की भी वही स्थिति है, जो अपने प्रदेश की है।
प्रदेश में अगर कोरोना से स्थिति बिगड़ती है तो क्या सरकार ने कोई वैकल्पिक योजना बनाई है? लोगों को अनाज कहाँ से मिलेगा?सब्ज़ियों का क्या होगा? दवाईयों का क्या होगा? हमारे अस्पतालों की क्षमता क्या है? आदि-आदि अनेक मसले हैं।

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अन्धी सरकार आत्म प्रशस्ति में व्यस्त है।
परिवहन व्यवसायियों का कितना नुक़सान हो गया? होटल इंडस्ट्री का क्या हाल है? रीयल एस्टेट सेक्टर जो सबसे अधिक रोज़गार देता है, उसका क्या हाल है?ग्रामीण क्षेत्र की तरफ़ तो ध्यान ही नहीं है और विशेषकर पर्वतीय क्षेत्र का?
अब तक कुल कितना नुक़सान हो गया है? कोई बताने वाला नहीं है?
बड़े लोग तो मास्क और सेनिटाईज़र यूज कर लेंगे, झुग्गी वाला क्या करेगा, गाँव का गरीब कैसे ज़िन्दा रहेगा?कोरोना से कैसे बचेगा? इन सब पर सरकार दृष्टि दोषग्रस्त हो गयी है।
Virus न तो राज निवास और मुख्यमंत्री आवास के सुरक्षा कर्मियों से रुक पायेगा और न ऊँची सुरक्षा दीवारों से।
मैंने आज श्रीमान मुख्यमंत्रीजी का एक वक्तव्य देखा, जिसमें वे कह रहे हैं कि “राजनीति में अड़ियल होना ज़रूरी है।”
मुख्यमंत्री जी वोट की राजनीति में अड़ियलपन नहीं, लचक और विनम्रता की ज़रूरत होती है।एक-एक वोट माँगकर यहाँ पहुँचा जाता है।माँगने वाले का सिर और हाथ दोनों झुके हुये और नीचे की ओर होते हैं, तभी माँगी हुयी चीज़ को सम्भाला जा सकता है।
2012 के विधान सभा चुनाव को याद करिये?
वैसे, अड़ियल घोड़े का इलाज़ सभी जानते हैं, वोटर ने चाबुक उठा दिया तो, उस समय के बारे में सोचिये।


वैसे अकड़ कौन जाता है?
सभी जानते हैं और आप भी।
अकड़ हो तो वीर चंद्रसिंह गढ़वाली जी जैसी।
और मुख्यमंत्री जी,
मज़ा तब आय,
जब आप कभी शाह-मोदी के सामने अड़ियलपन दिखा दें।
( लेखक ,कांग्रेस पार्टी के उत्तराखण्ड के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व् विधयक भी रहे है। )

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